नई दिल्ली, 29 जुलाई (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : बहुत सी ऐसी एंटीबायोटिक दवाएं हैं जो अब चलन से बाहर हो चुकी हैं। इसकी वजह ये है कि बैक्टीरिया पर इनका असर नहीं हो रहा था और उनमें इन दवाओं के लिए प्रतिरोध पैदा हो गया था। इस श्रेणी में सामान्य संक्रमण के साथ ही टीबी की दवाएं भी शामिल हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने अब चलन से बाहर हो चुकी इन दवाओं की वापसी का रास्ता तलाशा है। माना जा रहा है कि ये दवाएं विभिन्न रोगों में पहले से ज्यादा कारगर साबित हो सकती हैं।
साइंस एंड टेक्नॉलजी विभाग के बेंगलुरु स्थित संस्थान- जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया कि अगर इन दवाओं को हाइड्रोफोबिक यानी जल से दूरी बनाने वाले घटकों के साथ प्रयोग किया जाए तो ये पहले की तरह रोगों का सफाया कर सकती हैं।
इस बाबत किए गए परीक्षणों के कामयाब रहने का दावा इन वैज्ञानिकों ने किया है। इस तरीके से तैयार की गई दवा बैक्टीरिया की बाहरी झिल्ली को कमजोर कर देती है और उसका सफाया हो जाता है। गौरतलब है कि बैक्टीरिया में दवाओं के लिए बढ़ रहे प्रतिरोध के कारण कार्बापेनेम जैसे नई पीढ़ी के एंटीबायोटिक्स भी बेअसर हो रहे हैं और वैज्ञानिकों को नए एंटीबायोटिक्स की खोज करनी पड़ रही है।
भारत में टीबी के केस में ऐसा देखा गया है कि कई तरह की एंटीबायोटिक्स इसके बैक्टीरिया के आगे फेल हो गईं। इसके कारण नई दवाओं की खोज एक मजबूरी बन गई। पुरानी एंटीबायोटिक्स को फिर से इस्तेमाल कर सकने की भारतीय साइंटिस्ट्स की तकनीक अगर कामयाब हो गई तो नए एंटीबायोटिक्स की खोज पर लगने वाला पैसा और समय बच सकेगा। साथ ही मरीजों को तत्काल राहत मिल सकेगी और महंगे एंटीबायोटिक्स पर खर्च होने वाला पैसा भी बचेगा।
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