Homeपरिदृश्यटॉप स्टोरीये साथ, क्या विपक्षी एकजुटता की राह का 'टर्निंग प्वाइंट' बनेगा...?

ये साथ, क्या विपक्षी एकजुटता की राह का ‘टर्निंग प्वाइंट’ बनेगा…?

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुहासिनी) : 2024 के लोकसभा चुनाव साल भर के फासले पर रह गए हैं। विपक्षी दलों की एकता की खातिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर सक्रिय़ हुए हैं। उन्होंने इस सिलसिले में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की है। नीतीश कुमार के साथ राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी थे। इन नेताओं ने इस मुलाकात को ऐतिहासिक बताया और विपक्षी एकता की दृष्टि से एक टर्निंग प्वाइंट करार दिया।

बड़ा सवाल चेहरा नहीं, विपक्ष की एकजुटता

विपक्षी दलों को एकजुट करने की इस कवायद को लेकर कई सवाल उठे और पूछे गए। सबसे बड़ा सवाल तो यही था कि क्या विपक्षी गठबंघन किसी एक चेहरे के नेतृत्व को स्वीकर करने की स्थिति में है ?  क्या किसी नाम पर चर्चा या सहमति बनती नजर आ रही है ?

हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नीतीश कुमार दोनों ही सवाल को मुस्कुरा कर टाल गए। सूत्रों की मानें तो इस मुलाकात के दौरान चेहरे और नेतृत्व के सवाल पर कोई चर्चा ही नहीं हुई। अभी जोर सिर्फ विपक्ष के बिखरे कुनबे को एकजुट करने पर है। पिछले साल सितंबर में भी नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता के लिए इस तरह की पहल की थी और उन्होंने तब साफ कहा था कि प्रधानमंत्री पद की उन्हें कोई लालसा नहीं है और न ही वे इस पद के लिए विपक्षी गठबंधन का चेहरा बनना चाहते हैं।

नीतीश कुमार विपक्षी दलों को एकजुट करने के क्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भी मिलने वाले हैं।

सूत्रों के अनुसार, विपक्षी दलों को एकजुट करने के क्रम में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को साधने का जिम्मा तेजस्वी यादव को सौंपा गया है। वैसे भी मुलायम सिंह यादव और लालू यादव के परिवार में रिशेतदारी है और लालू यादव नहीं चाहते कि विपक्षी एकता की राह में अखिलेश यादव की तरफ से कोई बाधा पैदा हो।

जानकारी के अनुसार, विपक्षी दलों के बीच तालमेल करने की जिम्मेदारी नीतीश कुमार ने संभाल रखी है। अगर सब कुछ तयशुदा योजना के अनुसार होता रहा तो जल्दी ही विपक्षी एकता और साझी चिंताओं के सामाधान के लिए एक कमेटी का गठन भी किया जा सकता है। फिलहाल, इस वक्त जोर संयुक्त विपक्ष के चेहरे पर नहीं बल्कि विपक्षी दलों की एकजुटता पर है।

कांग्रेस कमजोर ही सही, पर क्यों है जरूरी ?

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद देश में कांग्रेस को लेकर एक सकारात्मक संदेश तो गया लेकिन पार्टी नेतृत्व को लेकर अब भी संशय बरकरार है। ये सही है कांग्रेस चाहे जिस स्थिति में हो लेकिन देश के हर राज्य में उसकी मौजूदगी है। यही कारण है कि लालू प्रसाद यादव से लेकर शरद पवार और फारूक अब्दुल्ला तक ये मानते हैं कि कांग्रेस के बिना विपक्ष का कोई सश्कत गठबंधन संभव नहीं। नीतीश कुमार, एनडीए गठबंधन से अलग होने के बाद इस दलील के और बड़े मजबूत पैरोकार बन कर सामने आए।

क्या कांग्रेस को बैक सीट मंजूर होगी ?

कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉंफ्रेंस में कहा था कि कांग्रेस हमेशा से चाहती रही है कि जहां जो मजबूत है वह अपनी लड़ाई मजबूती से लड़े। कांग्रेस पार्टी किसी के ऊपर खुद को थोपना नहीं चाहती। उन्होंने कहा था कि ये सही है कि भारतीय राजनीति में आज क्षेत्रीय ताकतें बहुत ज्यादा प्रासंगिक हैं लेकिन सवाल राष्ट्रीय पटल का भी तो है। कहीं न कहीं इस बारे में भी सोचना होगा। अब सवाल ये है कि क्या कांग्रेस क्षेत्रीय दलों और क्षेत्रीय राजनीति के आगे समझौते के लिए तैयार होगी ? सूत्रों की माने तो पार्टी ने इस बारे में गहन मंथन किया है और आने वाले समय में वो इस मसले पर अपने दृष्टिकोण को सामने रखेगी।

क्या चेहरे के बिना चमकेगा विपक्षी गठबंघन ?
राजनीतिक विश्लेषक रमन कुमार का कहना है कि, लोकतांत्रिक व्यवस्था की यही तो खूबी है कि जनता कब क्या करेगी इसे भांपना कई बार बड़े-बड़े सूरमाओं के लिए भी मुश्किल हो जाता है। जेपी आंदोलन के समय देश में किस प्रधानमंत्री का चेहरा सामने था। जेपी पहले ही कह चुके थे कि वे सत्ता की राजनीति से दूर रहेंगे। चेहरे कई थे, चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, जगजीवन राम, मोरार जी, चंद्रशेखर। बस उनका मकसद एक था इंदिरा गांधी को हटाना। देश में इस बार भी माहौल कुछ इसी तरह का बन रहा है। चेहरे तो तैयार हो जाते हैं पहले जमीन तो तैयार होनी चाहिए।

रमन कुमार कहते हैं कि, भारतीय लोकतंत्र स्वरूप बदल रहा है। अब राजनीतिक दलों की नहीं, चेहरों की राजनीति शुरू हो गई है। ये संसदीय व्यवस्था से उलट मामला है। हम अमेरिका तो नहीं है जहां राजनीतिक दलों की पहचान चुनावों में एक चेहरे से होती है। वे मानते हैं कि, देश में सत्ता पक्ष के पास नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत चेहरा है इसलिए वो विपक्ष को इस मुद्दे पर घेरने की कोशिश करेगा लेकिन विपक्षी दलों को बजाए इस जाल में फंसने के उनकी पहली कोशिश विपक्षी दलों की एकजुटता होनी चाहिए।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया   

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