RTI कानून में छूट का फायदा जानकारी छिपाने में किया जा रहा है?

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र):

सूचना के अधिकार की धार कमजोर पड़ती जा रही है। साल 2019-2020 में इस कानून के तहत रदद् किए गए आरटीआई आवेदनों में से आधे से अधिक को विभिन्न कारणों से खारिज कर दिया गया। आवेदनों को खारिज करने का मुख्य आधार निजी सूचना के सार्वजनिक होने की दलील और सुरक्षा एवं खुफिया जानकारी का हवाला रहा। केंद्रीय़ सूचना आयोग की वार्षिक रिपोर्ट के विशेलषण में ये तथ्य उभर कर सामने आए हैं।

मांगी गई जानकारी को इस कानून की धारा 8, 9 11 और 24 में दी गई छूट के तहत ही खारिज या मना किया जा सकता है लेकिन रिपोर्ट के विश्लेषण से साफ होता है कि ऐसा नहीं हुआ बल्कि विभिन्न सरकारी विभागों ने जानकारी नहीं देने और आवेदनों को खारिज करने के लिए अन्य श्रेणी के विकल्प का भी जमकर हवाला दिया। इसका सीधा से मतलब हुआ कि जानकारी को छिपाने का पर्याप्त आधार नहीं था और इसी कारण एक ऐसा रास्ता अपनाया गया जो भ्रम के स्थिति पैदा कर दे।

केंद्रीय सूचना आयोग की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 – 20 में खारिज किए गए आरटीआई आवेदनों में 56 फीसदी को खारिज करने का आधार निजी सूचना के सार्वजनिक होने तथा सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों को प्राप्त छूट रहा। सीआईसी के अनुसार, 2019-20 में 13.74 लाख से अधिक आरटीआई आवेदन आए, जो अब तक के सबसे ज्यादा आवेदन हैं। कुल 62,123 आवेदन खारिज किए गए, जिनमें 38,064 आरटीआई कानून के छूट उपबंध के तहत, जबकि 24,059 ‘अन्य’ कारण के तहत अस्वीकार कर दिेए गए। आश्चर्य की बात ये रही कि केंद्रीय सूचना आयोग ने भी अन्य श्रेणी के इस्तेमाल की कोई छानबीन किए बिना ही उसे स्वीकरा करते हुए वार्षिक रिपोर्ट मे उसे सम्मिलित कर लिया।

समाचार एजेंसी पीटीआई ने इस बारे में एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव के वेंकटेश नायक ने इस रिपोर्ट का विश्लेषण किया है और कुछ तथ्यों को उजागर किया है। वेंकटेश के अनुसार, आरटीआई अधिनियम की धारा 7 (1) के अनुसार, एक सार्वजनिक सूचना अधिकारी केवल धारा 8 और 9 के तहत निर्दिष्ट कारणों के लिए एक आरटीआई आवेदन को अस्वीकार कर सकता है। इसके लिए धारा 11 और 24 की सूची भी जोड़ी जा सकती है, जो विशिष्ट परिस्थितियों में सूचना तक पहुंच से इनकार करने का वैध आधार बन सकती है। आरटीआई अधिनियम के तहत अस्वीकृति के लिए कोई अन्य कारण या बहाना स्वीकार्य नहीं है। आयोग ने खुद 2011-12 की रिपोर्ट में ‘अन्य’ श्रेणी के लिए ‘सघन जांच और निरीक्षण’ को अस्वीकृति का आधार माना था, लेकिन आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई।

वेंकटेश के अनुसार, आरटीआई आवेदनों के 12,962 मामलों को आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (जे) और 8,504 मामलों में धारा 24 का हवाला देते हुए खारिज कर दिया गया।  धारा 8 (1) (जे) व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित है और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा धारा 24 के तहत आंशिक प्रतिरक्षा के हवाले का फायदा उठाया गया। कुल 38,064 आरटीआई आवेदनों में से 56 प्रतिशत से अधिक को जायज कारणों के आधार पर खारिज कर दिया गया।

वेंकटेश ने बताया कि, धारा 24, केवल 26 खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को दी गई आंशिक प्रतिरक्षा से संबंधित है जबकि नामंजूर किए प्रत्येक पांच आरटीआई आवेदनों में से एक में इसी का हवाला दिया गया है।

फोटो सौजन्य सोशल मीडिया

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