नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए न्यूज़ डेस्क) : पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के खत्म होने के साथ देश में इस साल के अंत में होने वाले कुछ राज्यों के चुनावों की तैयारियां शुरू हो गई हैं। फिर अगले साल मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव होंगे। और फिर 2024 मे देश में लोकसभा चुनाव होने हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इस बात पर जोर देते रहे हैं कि लोकसभा और विधानसभाओं के लिए चुनाव पूरे देश में एक साथ होने चाहिए। उनकी दृष्टि में एक साथ चुनान होने से धन और समय दोनों की बचत होगी और हमेशा चुनावी मोड में रहने वाले चुनाव आयोग पर दबाव भी कम होगा।
अब चुनाव आयोग ने भी प्रधानमंत्री के इस दृष्टिकोण से सहमति जताई है। मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने समाचार एजेंसी एएनआई के साथ बातचीत में कहा है कि चुनाव आयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच के अनुरूप देश भर में एक साथ चुनाव, यानी एक देश एक चुनाव के विचार पर काम करने को तैयार है। लेकिन इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ेगी। उन्होंने बताया कि देश में पहले तीन चुनावों में लोकसभा के साथ ही विधानसभाओं के लिए भी चुनाव हुए लेकिन बाद में मध्यावधि चुनावों का सिलसिला शुरू होने के साथ ये परंपरा बाधित हो गई और राज्यों लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग होने लगे। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग पूरे देश में सभी चुनाव एक साथ कराने में सक्षम है।
एक देश एक चुनाव के पीछे क्या है सोच ?
एक देश-एक चुनाव के पीछे जो तर्क दिया जाता है उसमें सबसे बड़ी बात समय और संसाधनों के बचत के साथ चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर पड़ने वाले बोझ को कम करना शामिल है। बार- बार चुनाव से चुनाव मशीन लगातार दबाव में बनी रहती है और पैसे और समय की बर्बादी अलग से।
आपको बता दें खर्च के हिसाब देखा जाए तो 1952 में देश में हुए पहले आम चुनावो में प्रति वोटर तकरीबन 87 पैसे का खर्च आया था और इन चुनावों में लगभग 10.43 करोड़ रुपयों का कुल खर्च आया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में यही खर्च बढ़कर तकरीबन 70 रुपए प्रति वोटर हो गया।
कार्नेगी एंडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस थिंक-टैंक में साउथ एशिया प्रोग्राम के वरिष्ठ फेलो और डायरेक्टर मिलन वैष्णव ने बताया के अनुसार, 2016 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव और कांग्रेस चुनाव में कुल 6.5 (पांच खरब रुपए) अरब डॉलर खर्च हुए थे। जो आंकड़े हमारे पास आते हैं उनका विश्लेषण करने पर पता चलता है कि भारतीय आम चुनाव अमेरिकी चुनावों से भी ज्यादा खर्चीले होते हैं।
क्या हैं दिक्कतें ?
एक देश- एक चुनाव के रास्ते में कई संवैधानिक अड़चनें हैं। लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव के बाद पांच वर्षों की समयावधि तक ही उनकी वैधता रहती है। समयसीमा समाप्त होने के पहले नई लोकसभा या विधानसभा का चुनाव हो जाना जरूरी है। उदाहरण के लिए 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं। मई 2024 तक मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव अभी संपन्न हुए हैं और अगला चुनाव 2027 में होना है। ऐसी स्थिति में लोकसभा और राज्य विधानसभा की समयावधि में अंतर है। एक देश –एक चुनाव की स्थिति तभी संभव है जबकि उत्तर प्रदेश विधानसभा को समय से पहले भंग कर दिया जाए और 2024 में लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा के लिए भी मत डाले जाएं। इसके लिए संसद को कानून में संशोधन करना होगा और चुनावों को एकसाथ कराने के लिए संवैधानिक प्रवाधान करने होंगे।
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