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तुलसी अम्मा के पराक्रम ने रच डाला, जीवन और जंगल का नया शब्दकोश…

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बेंगलुरू (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : भारतीय गणतंत्र की विकास यात्रा ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। कई बार ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे गणतंत्र शर्मसार हुआ तो कई पड़ाव ऐसे भी आए जब गणतंत्र गौरवान्वित हुआ। गणतंत्र के परिष्कार में कई ऐसे गेम चेंजर्स हुए जिनके प्रयासों और मजबूत इच्छाशक्ति ने पटकथा को ही बदल कर रख दिया।

आज हम ऐसी ही गेम चेंजर तुलसी गौड़ा की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री पुरस्कार से नावजा है। तुलसी गौड़ा 72 वर्ष की है और उन्होंने देश में पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया है।  

तुलसी गौड़ा को जंगल के शब्दकोश के रूप में पहचाना जाता है। ये पहचान उन्हें ऐसे ही नहीं मिली। नंगे पांव चलने वाली तुलसी गौड़ा के पास जंगल से जुड़ी ऐसी जानकारियों की भरमार है जो अच्छे-अच्छे जानकारों के पास नहीं होती। उन्होंने अपने जीवन में करीब 50 हजार पेड़ों को रोपित करके उन्हें पाला पोसा है।  

कर्नाटक के गरीब परिवार में जन्मी तुलसी गौड़ा कर्नाटक में हलक्की स्वदेशी जनजाति से तालुल्क रखती हैं। वे पारंपरिक पोशाक पहनती हैं। गरीबी के कारण बड़ी मुश्किल से उनका भरण पोषण हो पाया। इसी कारण उनकी शिक्षा दीक्षा संभव नहीं हो पाई। उन्होंने पढ़ाई भले न की हो लेकिन जंगल पर उनके ज्ञान का लोहा पूरी दुनिया मानती है। इसी वजह से उन्हें जंगल के शब्दकोश के रूप में जाना जाता है। पेड़-पौधों और जंगल की अद्भुद जड़ी बूटियों के बारे में उन्हें विषद जानकारी है।         

पेड़ – पौधों से अद्भुद लगाव

तुलसी गौड़ा को पेड़ पौधों से लगाव बचपन से रहा। 12 साल की उम्र से वे अपने यहां पेड़-पौधे लगा रही हैं। अब तक उन्होंने हजारों पेड़ लगाए और उनका ख्याल रखते हुए उन्‍हें पाला –पोसा। बताया जाता है कि, वे एक अस्थायी स्वयंसेवक के रूप में भी वन विभाग में शामिल हुईं  जहां उन्हें प्रकृति संरक्षण के प्रति उनके समर्पण के लिए जाना जाने लगा। बाद में उन्हें विभाग में स्थायी नौकरी की पेशकश की गई।

जुनून ने उम्र को मात दी

तुलसी गौड़ा के जुनून ने उनकी उम्र को मात दे दी। 72 साल की उम्र में भी वे अपने काम में शिद्दत से जुटी रहती हैं। पेड़ पौधे हमारे पर्यावरण का आधार होते हैं। लेकिन तुलसी गौड़ा ने पेड़-पौधों का पोषण किया। उनके रोपण से लेकर उनके स्वावलंबन तक उन पेड़ों को उनके मां-बाप की तरह से संरक्षित किया। यही नहीं, जंगल से जुड़े अपने विशाल ज्ञान भंडार को वे युवा पीढ़ी के साथ साझा करना भी नहीं भूलतीं। वे मानती है कि जंगल का ज्ञान एक सभ्यता का ज्ञान है। उसे समझे बिना कोई भी ज्ञान अधूरा है। वे अपनी इस सभ्यता को अपने अलावा दूसरों से भी बंटना चाहती हैं ताकि लोग जंगल को समझ सकें। उसके दुख-दर्द को समझ सकें, उसे बांट सकें या कम से कम उसके दुख-दर्द को बढ़ाने का काम न करें।  

राष्ट्रपति भवन से दी गई जानकारी के अनुसार, तुलसी गौड़ा को उनके सामाजिक कार्यों और पर्यावरण के प्रति उनके योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया है। उन्होंने अपने अब तक के अपने जीवन में हजारों पौधों को रोपित किया और उनका संरक्षण किया।

आदिवाससी समाज से आने वाली तुलसी गौड़ा ने जंगल को समझा, उसे संरक्षित करने का प्रयास किया और भावी पीढ़ी को जंगल को समझाने की अनवरत कोशिश में लगातार जुटी हुई हैं। उनका जीवन भारतीय गणतंत्र के परिष्कार के जीवन गाथा है। उनका जीवन एक ऐसी जीवन गाथा है जो दूसरों को भी इस बदलाव में हिस्सेदार बनने के लिए प्रेरित करती है।    

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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