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पैगासस प्रोजेक्ट : मोदी सरकार खुद शक के घेरे में, जवाब तो देना होगा

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नई दिल्ली, न्यूज़ डेस्क (गणतंत्र भारत) : ऑपरेशन पेगासस ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया है। राजनेता, मीडिया, समाज कार्यकर्ता, अदालतें सभी सकते में हैं। ऐसा देश में पहली बार हुआ है कि फोन हैकिंग और टैपिंग का मामला इतने बड़े पैमाने पर और इतना विवादस्पद हुआ है। संसद का मानसून सत्र चल रहा है। लगातार गतिरोध बना हुआ है। विपक्षी दल सरकार से इस मामले की संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग के साथ गृहमंत्री अमित शाह के इस्तीफ़े और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका की जांच की मांग कर रहे हैं। सरकार भी इस मसले पर कुछ साफ – साफ नही बोल रही है। सरकारी बयान में इसे अंतर्राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा बताया जा रहा है।

लेकिन क्या इसे अंतर्राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा बता देने मात्र से मामला रफा- दफा हो जाता है। अगर सरकार की दलील को ही मान लिया जाए तो ये मामला कहीं ज्यादा गंभीर हो जाता है। इस मामले में दो स्थितियां बनती हैं। या तो भारत सरकार ने पैगासस के इस्तेमाल से खुद ही जासूसी कराई या फिर किसी दूसरे देश ने इस काम को किया।

दूसरे देश की बात गले नहीं उतरती। दूसरे देश की रंगन गोगोई पर यौन उतत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला और उसके परिवार में क्या दिलचस्पी हो सकती है, ये सवाल उठता है। पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, तमाम पत्रकार, वायरोलॉजिस्ट गगन दीप कांग इन सबमें किसी देश की दिलचस्पी क्यों हो सकती है, ये भी एक प्रश्न है।

सरकार शक के घेरे में

भारत सरकार की तरफ से जो बयान सामने आया उसने इस मामले को ठंडा करने का काम कम उसे भड़काया ज्यादा। संसद में तमाम हंगामें के बाद भी सरकार इस मामले में कोई ठोस जवाब या कार्रवाई का ब्लूप्रिंट पेश नहीं कर पाई। सरकार पर संदेह तब और बढ़ जाता है जब फोन हैकिंग और टैपिंग की सूची में ऐसे लोग ही ज्यादातर नजर आ रहे हैं जो सरकार या नरेंद्र मोदी की नीतियों के मुखर विरोधी रहे हैं।

अशोक लवासा के फोन को तब सर्वेलेयांस पर लिया गया जब उन्होंने नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत पर कदम उठाने की सिफारिश की। बाकी दो चुनाव आयुक्त इसके पक्ष में नही थे। लवासा निशाने पर आ गए और उन्हें चुनाव आयोग से जाना पड़ा। पत्रकार रोहिणी सिंह तब पैगासस के निशाने पर आईं जब उन्होंने अमित शाह के बेटे जय शाह और एक उद्योगपति के बीच संबंधों की रिपोर्ट की छानबीन की।

प्रशांत किशोर से लेकर राहुल गांधी और उनके करीबियों के अलावा मौजूदा सरकार के आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव और एक अन्य मंत्री प्रहलाद पटेल तक पैगासस के निशाने पर रहे। पैगासस के निशाने पर पत्रकार और संपादक भी वे ही रहे जो मौजूदा सरकार की नीतियों और कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते रहे। तो, ऐसे में सरकार पर शक उठना लाजिमी है।

इस सर्वेलियंस सॉफ्टवेयर को बनाने वाली इस्राइली कंपनी एनएसओ ने भी साफ कहा है कि वो अपना उत्पाद सिर्फ सरकारों या सरकारी मान्यता प्राप्त एजेंसियों को ही बेचती है। फिर, इसे किसने खरीदा और किसने इसके लिए पैसा दिया ये जानना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

फ्रांस स्थित संस्था ‘फॉरबिडन स्टोरीज’ और लंदन, स्थित एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मिलकर सरकारों द्वारा पेगासस सॉफ्टवेयर वेयर की मदद से जासूसी करने से जुड़ी जानकारियों को इकट्ठा किया और फिर दुनिया के कुछ चुनिंदा 16 मीडिया संस्थानों के साथ इस जानकारी को साझा किया। इस अभियान को ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ नाम दिया गया। भारत का न्यूज़ पोर्टल द वायर उन चुनिंदा मीडिया संस्थानों में शामिल था जो ऑपरेशन से संबद्ध था।  

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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