नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए जे पी सिंह ):: अक्सर हम खेती-किसानी में जब कामयाबी की बात करते हैं तो बड़ी जोत वाले, बड़े किसानों की और बड़ी कामयाबी की चर्चा होने लगती है। इसमें लाखों-करोड़ों की आमदनी और बड़े पुरस्कारों तक की बात हम करने लगते हैं लेकिन ज़रूरी नहीं, कि हर किसान के पास बड़े खेत हों। छोटे और सीमांत किसान भी नई तकनीक की न सिर्फ़ चाहत पाल सकते हैं बल्कि उसे अपने छोटे खेतों में आजमा भी सकते हैं। अब जैसे मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के छोटे से गांव बसाड के दिव्यांग किसान नरेश पाटिल का उदाहरण देखिए। एक तो बहुत कम ज़मीन से ज्यादा आय और दूसरी, अपने पैरों की दिक्कत। लेकिन उन्होंने अपनी इन परेशानियों को कभी अपनी खेती के आड़े नहीं आने दिया।
आधा एकड़ खेत से 7-8 लाख सालाना कमाई
उन्होंने अपने मात्र आधा एकड़ खेत में जब नई तकनीक और नई फ़सल को अपनाया तो उसके बाद से 7-8 लाख रुपए सालाना तक की शुद्ध कमाई कर रहे हैं। उन्होंने अपने 2000 स्क्वायर मीटर खेत में एनएचबी की मदद से पॉलीहाउस लगवाया है जिसमें वे डच-रोज की खेती सफलता के साथ कर रहे हैं।
दिव्यांग की ‘गुलाबी खेती’
दरअसल आज के दौर में डच रोज की मांग काफी है और ये धीरे-धीरे और बढ़ रही है। इसकी खेती का पॉलीहाउस में ज़बरदस्त सक्सेस रेट है। नरेश पाटिल ने जानकारी कर इसकी पूरी तकनीक समझी, बेड बनवाया, थ्रिप्स और माइट जैसे कीटों से बचाव और पौधों के पोषण के लिए सही खाद-फर्टीलाइजर की व्यवस्था की। वे बताते हैं कि इस खेती के मेंटनेंस में 25-30 हज़ार प्रति माह का खर्च भी है जिसमें लेबर से लेकर पैकिंग तक के खर्चे शामिल हैं।
लागत और मार्केटिंग की व्यवस्था
नरेश पाटिल को उपज की मार्केटिंग के लिए ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ता। वे इंदौर मंडी के कॉन्ट्रैक्टर से संपर्क में रहते हैं जो उनकी उपज की सप्लाई के मुताबिक उन्हें भुगतान करता रहता है। वहां के कृषि अधिकारी बताते हैं कि कैसे नरेश को उनके 18 लाख के इस पॉलीहाउस के प्रोजेक्ट में सरकार की तरफ़ से 9 लाख रुपए की सब्सिडी मिली। सरकार की ऐसी योजना का लाभ उठाकर कई किसान ऐसी गुलाबी खेती से 5 से 7 हज़ार तक प्रति दिन की आमदनी कर रहे हैं
दिव्यांग किसान बने प्रेरणा स्रोत
दिव्यांग होते हुए भी नरेश पाटिल ने सरकारी योजना का लाभ उठाकर नए ढंग से खेती की और सफल रहे। ऐसे लोग बड़ा नाम भले न बनें पर कई लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत ज़रूर हैं। आप इनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।
फोटो सौजन्य- एजेंसियां