नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र): कुरान की आयतों पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल वसीम रिजवी की जनहित याचिका ने एक पुरानी बहस को नई शक्ल दे दी है। बहस के कई विषय हैं। आखिर, रिजवी की ये याचिका कैसे जनहित का मुद्दा बन गई ? रिजवी को इस्लाम से जुड़े मसलों की कितनी जानकारी है ? इस याचिका का मकसद क्या है ? और क्या वास्तव में किसी धार्मिक ग्रंथ पर न्यायिक पुनरीक्षण का अधिकार अदालतों को है भी या नहीं ?
वसीम रिजवी ने अपनी याचिका में कुरान की 26 आयतों पर सवाल उठाते हुए मांग की है कि उन्हें असंवैधानिक और गैर प्रभावी घोषित किया जाए। याचिका में दलील दी गई है कि इनके अध्ययन से धार्मिक अतिवाद के साथ आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है और देश की अखंडता और संप्रभुता के लिए इससे गंभीर खतरा पैदा होता है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में इस्लामी अध्ययन विषय के प्रोफेसर डॉक्टर इक्तेदार मोहम्मद खान, मानते हैं कि इस तरह के सवाल आमतौर पर धर्म ग्रंथों के बारे में सतही जानकारी रखने वाले लोग ही उठाते हैं। उन्हें ना तो विषय का पर्याप्त ज्ञान होता है और ना ही उससे जुड़े संदर्भों का। उनका कहना है कि, दुनिया का कोई भी धर्म शांति का विरोधी नहीं है। कुरान शरीफ को भी 23 वर्षों के कालांतर में लिखित शक्ल दी गई और उसकी आयतों के मायने को समझने के लिए उनके संदर्भों को भी समझना होगा।
डॉक्टर खान के अनुसार, इस देश में हर भारतीय को वैयक्तिक आजादी है। वो किसी भी मजहब को मान सकता है। यहां तक कि उसे उसके प्रचार-प्रसार की भी आजादी है लेकिन किसी दूसरे धर्म को कमतर बताते हुए या गलत तरीके से उसकी व्याख्या करते हुए उस पर सवाल उठाना गलत है। वे कहते हैं कि, इस्लाम कभी भी आक्रामक नहीं रहा। अगर होता तो लड़ाइय़ां मदीने के करीब में ना होतीं जहां पैगंबर साहब रह रहे थे। हमलावर मक्के से आते थे जो वहां से करीब साढ़े चार सौ किलोमीटर दूर है। अगर देखेंगे तो अधिकतर लड़ाइयां आत्मरक्षा में लड़ी गईं।
क्या है रिजवी की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता वसीम रिजवी की पृष्ठभूमि काफी दागदार रही है। उन पर शिया वक्फ बोर्ड की जमीन हड़पने से लेकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाधी पर अभद्र टिप्पणी करने के मामले दर्ज हैं। वक्फ बोर्ड के मामले में तो बीजेपी सरकार ने ही उनके खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश की थी और वे इस समय सीबीआई के निशाने पर हैं। इसके अलावा भी उन पर कई मामले दर्ज हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस जनहित याचिका से वसीम रिजवी को क्या फायदा मिलने वाला है। रिजवी ने अभी हाल ही में एक वीडियो जारी करके कहा है कि वे इस याचिका को दाखिल करने के बाद इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए हैं। उनके खिलाफ फतवा जारी किया गया है और उन्हें हिंदूवादी ताकतों का मोहरा कहा जा रहा है। दरअसल, रिजवी की इसी टिप्पणी में उनकी मंशा भी छिपी हुई है। लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार हरीश मिश्र मानते हैं कि तमाम मामलों में उलझे हुए वसीम रिजवी को सत्ता पक्ष से एक कवर चाहिए और इस्लाम पर सवाल उठा कर वे सरकार को अपना एक अलग चेहरा दिखाना चाहते हैं। इससे वास्तव में उन्हें कोई फायदा हो भी पाएगा ये सोचने का विषय है।
क्या ये न्यायिक पुनरीक्षण का विषय है
कतई नहीं। प्रोफेसर डॉक्टर इक्तेदार मोहम्मद खान के अनुसार, अदालतें मजहबी धर्म ग्रंथों पर कभी सवाल नहीं उठाती बल्कि वे तो धार्मिक आजादी को संरक्षित करती हैं। कुरान, वेद, गीता, बाइबिल या गुरु ग्रंथ साहब एक सभ्य इंसानी समाज के आधार की तरह से हैं और ये एक बेहतर जीवन कैसे जिया जाए उसके बारे में समाज को निर्देशित करते हैं।
ऐसा नहीं है कि कुरान पर ऐसे सवाल पहली बार उठाए गए हैं। साल 1985 में कलकत्ता हाईकोर्ट में चंदरमल चोपड़ा ने एक याचिका दाखिल करके कुरान पर रोक लगाने की मांग की थी। दलील थी कि ये हिंसा को बढ़ावा देती है और समाज के विभिन्न वर्गो के बीच वैमनस्य फैलाती है। लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में 1958 के वीरबद्रन चेट्टियार केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि कुरान में मुसलमानों की आस्था है और वो एक पवित्र ग्रंथ है। इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 295 के तहत ईश निंदा के आरोपों के दायरे में नहीं रखा जा सकता। शीर्ष अदालत ने इस मामले में अपना नजरिया सामने रखते हुए कहा कि, कुरान पर प्रतिबंध लगाने का मतलब संविधान के अनुच्छेद 25 और संविधान की प्रस्तावना का उल्लंघन होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि वो किसी भी सूरत में कुरान, गीता, बाइबिल और गुरूग्रंथ साहब जैसे पवित्र धर्म ग्रंथों के बारे में कोई फैसला नहीं सुना सकती।
अदालत ने याचिकाकर्ता के विवेक पर ही सवाल उठा दिया। अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता ने धर्म ग्रंथ को सही संदर्भों में नहीं समझा और उनका ज्ञान भी इस मामले में काफी सीमित है। उनकी ऐसी हरकतों से समाज में वैमनस्य फैलने का खतरा कहीं ज्यादा है।
क्या वसीम रिजवी की याचिका पर भी सुप्रीम कोर्ट से कुछ ऐसा ही आदेश मिलने वाला है ये एक सवाल है, जिसके जवाब का इंतजार है।
फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया