नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुहासिनी ) : भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ महिला पहलवानों के धरने को कई दिन बीतने आए लेकिन एफआईआर दर्ज करने के बावजूद अभी तक दिल्ली पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इस दौरान, बृजभूषण शरण सिंह ने अपने बचाव में कई तरह की दलीलें दी हैं और दावा किया है कि महिला पहलवानों के आऱोपों के पीछे गहरी राजनीतिक साजिश है। उन्होंने ये भी कहा कि अगर पार्टी कहेगी तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। बाद में उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कहेंगे तो इस्तीफा दे दूंगा।
जंतर-मंतर पर पहलवानों के समर्थन में राजनेताओं के अलावा आम लोगों का भी जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। किसान संगठनों ने पहलवानों के प्रति अपना समर्थन जताया है।
इस बीच, कई मंचों पर इस खबर को राजनीतिक एंगल से परोसने से कोशिश की जा रही है। बृजभूषण शरण शरण सिंह पहले से ही पहलवानों के धरने को राजनीति से प्रेरित बताते रहे हैं। गणतंत्र भारत ने आरोपों की तह तक पहुंचने के लिए इन आरोपों की छानबीन की।
ये तो पक्का नहीं कहा जा सकता कि महिला पहलवानों के धरने के पीछे सिर्फ राजनीतिक एंगल है लेकिन हां इस खबर का एक राजनीतिक पहलू है जरूर।
क्या हैा राजनीतिक एंगल ?
राजनीतिक साजिश का आरोप बृजभूषण शरण सिंह ने लगाया। उन्होंने कहा कि पहलवानों को मोहरा बना कर भारतीय कुश्ती संघ पर कब्जे की कोशिश की जा रही है। आपको बता दें कि, बृजभूषण शरण सिंह का कार्यकाल अगले कुछ दिनों में खत्म हो रहा है और कुश्ती संघ के अध्यक्ष का चुनाव होना है। बृजभूषण सिंह पिछले 12 सालों से कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं। पिछले चुनावों में उन्होंने दीपेंद्र हुड़़्डा को हराया था। उनका आरोप है कि पहलवानों को भड़काने के पीछे दीपेंद्र हुड्डा और हरियाणा की एक लॉबी काम कर रही है।
ऐसा देखा भी गया कि, धऱना स्थल पर पहलवानों को समर्थन देने के लिए सबसे पहले पहुंचने वाले राजनेताओं में दीपेंद्र हुड़्डा शामिल थे। बाद में वे प्रियंका गांधी को भी वहां लेकर गए। बृजभूषण का आरोप है कि, उन पर आरोप लगाने वाली पहलवानों में सिर्फ हरियाणा की लड़कियां ही शामिल हैं। देश के दूसरे प्रांतों की लड़कियों की तरफ से ऐसे आरोप क्यों नहीं लगाए गए, इस पर भी गौर किया जाना चाहिए।
कुश्ती संघ पर काबिज बृजभूषण का परिवार
अब इस खबर के एक दूसरे पहलू को भी देखने की जरूरत हैं। बृजभूषण सिंह भारतीय कुश्ती संघ पर तकरीबन डेढ़ दशक से काबिज हैं और ऐसी खबर भी आ रही है कि वे अगले चुनाव में अपनी कुर्सी अपने बेटे प्रतीक भूषण सिंह को सौंपना चाहते हैं। प्रतीक इस समय बीजेपी से विधायक हैं। इसके अलावा बृजभूषण के एक बेटे कर्ण भूषण सिंह भारतीय कुश्ती संघ के उपाध्यक्ष पहले से हैं। इसको अलावा, उनके बेटे के साले आदित्य प्रताप सिंह कुश्तती संघ के संयुक्त सचिव हैं जबकि बृजभूषण शरण सिंह के दामाद विशाल सिंह बिहार कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं।
कुल मिलाकर देखा जाए तो बृजभूषण शरण सिंह के परिवार ने भारतीय कुश्ती संघ पर काफी समय से कब्जा करके रखा हुआ है और वे आसानी से इसे छोड़ने को तैयार नहीं। बृजभूषण के इस एकाधिकार को हरियाणा से चुनौती मिलती रही है। कुश्ती संघ पर कब्जे को लेकर रंजिशें तक हो गईं हैं। एक बार फिर कुश्ती संध के चुनाव होने हैं और इस बार बृजभूषण के आधिपत्य को तोड़ने के लिए पुरजोर कोशिशें जारी हैं।
महिला पहलवानों के मोर्चे का ऐसे समय पर लगना एक संयोग भी हो सकता है, इसलिए इसे महज राजनीति के चश्मे से देखना भी शायद उचित न हो। लेकिन, ये सही है इससे बृजभूषण सिंह के परिजनों के कुश्ती संघ पर कब्जे की लड़ाई जरूर कमजोर होगी।
बृजभूषण पर शक क्यों न हो ?
बृजभूषण सिंह पर महिलाओं ने जो आरोप लगाए हैं वे बेहद गंभीर किस्म के हैं और उनके खिलाफ कानूनी जांच और कार्रवाई तो होनी ही चाहिए। लेकिन अभी तक जिस तरह से इस मामले में पुलिसिया लीपापोती हो रही है उससे ये जरूर जाहिर होता है कि उन पर कार्रवाई से सरकार हिचकिचा रही है। उन पर एफआईआर भी सुप्रीम कोर्ट के दबाव में हुई। एफआईआर किन धाराओं में हुई ये भी नहीं सार्वजनिक किया गया। उन पर एक मामला को पॉक्सो एक्ट के तहत आता है जिसमें फौरन गिरफ्तारी होनी चाहिए लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ। बीजेपी की तरफ से भी अब खुल कर बृजभूषण का समर्थन किया जा रहा है और महिला पहलवानों के समर्थकों के धमकियां भी दी जा रही हैं। इसका क्या मतलब है ?
वरिष्ठ पत्रकार राजन सुंदरम के अनुसार, ‘महिला पहलवानों के साथ ऐसा कुछ नहीं हो रहा जो अपेक्षित नहीं था। उन्हें राजनीतिक साजिश का मोहरा बताया जा रहा है। किसानों को आंदोलन के समय खालिस्तानी बताया गया, एनआरसी और सीएए का विरोध करने वालों को पाकिस्तानी करार दिया गया, छात्रों ने विरोध किया तो वे देशद्रोही हो गए और तो और जिन पत्रकारों ने इनके समर्थन में लिखा उन पर राष्ट्रद्रोह का केस दर्ज कर दिया गया।’
वे कहते हैं कि, ‘आखिर, बृजभूषण शरण सिंह को क्यों इतनी छूट मिली हुई हुई, उस पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही, क्या जब तक सुप्रीम कोर्ट दखल नहीं देगा पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेगी ? एक तरह से तो ये शीर्ष अदालत की अवमानना का मामला भी है।’
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिय़ा