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पहाड़ों में ‘भू-जिहाद’, ‘लव-जिहाद’…सिर्फ नैरेटिव गढ़ने की कवायद तो नहीं…?

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देहरादून / नई दिल्ली, (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) :  उत्तराखंड के कई शहरों में इन दिनों भू जिहाद के साथ लव जिहाद शब्द की भी काफी गूंज है। सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो देखे जा रहे हैं जिनमें वीडियो को बनाने वाला तो नहीं दिख रहा लेकिन उन विडियोज़ में राज्य के पहाड़ी शहरों में कथित तौर पर संदिग्ध लोगों की आवाजाही और उनकी गतिविधियों पर सवाल उठाया गया है। आरोप लगाया जा रहा है कि, ये लोग मुसलमान हैं और अपनी पहचान छिपाकर छोटे –मोटे कारोबार की आड़ में जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं और स्थानीय लड़कियों को बरगला रहे हैं।

जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड के कई पर्वतीय शहरों विशेष कर गढ़वाल अंचल के शहरों में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन निकाले गए हैं। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने इस बारे में एक रिपोर्ट छापी है। रिपोर्ट में इस सिलसिले में जानकारी देते हुए बताया गया है कि उत्तरकाशी के बाजारों में मुसलमान व्यापारियों की दुकानों पर देव भूमि रक्षा अभियान के नाम से पोस्टर चिपकाए गए हैं जिनमें दुकानदारों को 15 जून के पहले-पहले अपनी दुकाने खाली कर  वहां से चले जाने को कहा गया है। इन पोस्टरों में ये भी कहा गया है कि 15 जून को राज्य में लव जिहाद के खिलाफ महापंचायत का आयोजन किया गया है और अगर इन व्य़ापारियों ने अपनी दुकानें खाली नहीं कीं तो अंजाम भुगतने की जिम्मेदारी उनकी खुद की होगी।

राज्य की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने इन घटनाओं के प्रकाश में आने के बाद प्रशासन को कड़ी  कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। पुलिस ने ऐसे पोस्टरों को हटा दिया है। अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।

क्या है समस्या ?

जानकारों के अनुसार, उत्तराखंड के कई जिलों, खासकर गढ़वाल अंचल के पर्वतीय जिलों में इन दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर, सहारनपुर, बिजनौर, मेरठ और बागपत जिलों के लोगों का पहाड़ों की तरफ रुख देखने में आया है। इन लोगों में अधिकतर मुसलमान हैं और वे छोटे-मोटे कारोबार या धंधे की तलाश में इन इलाकों में आ रहे हैं। स्थानीय स्तर पर विरोध से बचने के लिए वे अपनी असली पहचान और पते को छिपा रहे हैं। कई जगहों पर उन्होंने कारोबार करने के लिए जमीनें वगैरह भी खरीद ली हैं। स्थानीय लोग इन लोगों का विरोध  कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि, ये लोग पहाड़ों में आकर जमीनों को कब्जाने के साथ स्थानीय गरीब लोगों की बहू-बेटियों को अपने जाल में फंसा रहे हैं। लड़कियो के गायब होने के कई मामले भी सामने आए है।

27 मई को उत्तर काशी में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था जब स्थानीय लोगों ने एक नाबालिग लड़की को दो युवकों के साथ पकड़ा था। इन युवकों में से एक मुसलमान था। दोनों युवकों के खिलाफ कड़ी धाराओं में मामले दर्ज किए गए जिसमें पॉक्सो एक्ट जैसा कठोर कानून भी शामिल है। उत्तर काशी की सड़कों पर इस घटना के खिलाफ काफी  जमकर विरोध प्रदर्शन हुआ और 15 जून को देवभूमि रक्षा अभियान के तहत महा पंचायत भी बुलाई गई हैं।

राजनीतिक एंगल

उत्तराखंड में पर्वतीय क्षेत्रों के अलावा एक बड़ा भू भाग और आबादी मैदानी इलाकों की है। देहरादून, हरिद्वार, कोटद्वार, हल्द्वानी, ऊधमसिंह नगर आदि वे जिले हैं जहां राज्य की बड़ी  आबादी निवास करती हैं। इन इलाकों में मिश्रित जनसंख्या है और इनमें हिंदुओं के अलावा मुसलमान भी काफी तादाद में हैं। ये जिले उत्तर प्रदेश के उन क्षेत्रों से जुड़े हैं जहां मुसलमान काफी संख्या में हैं।

बताया जा रहा है कि, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ की सरकार की नीतियों के कारण राज्य में मुसलमान काफी दबाव में हैं और वे सुरक्षा और कारोबार के लिहाज से दूसरे ठिकानों की खोज में हैं। उत्तराखंड की तरफ पलायन उनकी इसी सोच का नतीजा है।

लेकिन क्या यही सच है ? या ये सच का सिर्फ एक पहलू है ? देहरादून में वरिष्ठ पत्रकार भूपेश पंत, इन घटनाओं के पीछे गहरी साजिश की बात करते हैं। वे कहते हैं कि, ‘ये सब एक राजनैतिक नैरेटिव गढ़ने की कोशिश का हिस्सा है। उत्तराखंड के राजनीतिक दल और नेतृत्व राज्य के विकास के नाम पर पूरी तरह से फेल हैं। वे हमेशा इस तरह के मसलों की आड़ में अपने लिए छांव की तलाश में रहते हैं।’ भूपेश मानते हैं कि, ‘उत्तराखंड के साथ कई तरह की विसंगतियां भी जुड़ी रहीं। यहां नौकरशाही से लेकर राजनीति तक में ज्यादातर वे लोग प्रभावी रहे जिनका पहाड़ से नाता नाम का था। पहाड़ उनके लिए अय्याशी के अड़्डे से ज्यादा कुछ नहीं रहा। वैसी ही नीतियां बनीं और आज उत्तराखंड वही भुगत रहा है।’

भूपेश पंत के अनुसार, ‘उत्तराखंड में निवेश के नाम पर जो लूट खसोट का धंधा चालू हुआ वो रुकने का नाम नहीं ले रहा। ऊपर पहाड़ों में लोग गरीब हैं, सुविधाओं तक उनकी बमुश्किल पहुंच है। उनके पास बाप-दादा की थोड़ी-बहुत जमीनें हैं। पैसे का लालच देकर उनसे अब जमीनें भी छीनी जा रही हैं। जमीन को छीनने वालों में पैसे वाले ही हैं वे हिंदू भी हैं और मुसलमान भी। कोई रिजॉर्ट के नाम पर जमीन खरीद रहा है तो कोई कारोबार के नाम पर। उसमें पहाड़ और पहाड़ी का हित कहीं नहीं है। विशुद्ध बनियागीरी है, तात्कालिक फायदे के लिए सब कुछ बर्बाद हो रहा है।’

योगेश छौनियाल, उत्तराखंड से हैं और वे एक विदेशी रेडियो सेवा से जुड़े हैं। योगेश दिल्ली में रहते हैं लेकिन उनका गांव पौड़ी जिले हैं। वे बताते हैं कि, ‘उत्तराखंड के ऊपरी जिलों में इन दिनों संदिग्ध किस्म के लोगों का मूवमेंट देखा तो जा रहा है। चीनी सीमा के पास ऐसी बसावटें भी हैं जो पहले उतनी घनी नहीं थीं। सरकार देखे, अगर वहां संदिग्ध किस्म के लोग हैं तो ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा हैं।’ छौनियाल के अनुसार, ‘लव जिहाह, भू जिहाद जैसे शब्द तो अब राजनीतिक ज्य़ादा हैं, उत्तराखंड की समस्या को बड़़े  फलक पर देखने की जरूरत है।’ वे कहते हैं कि, ‘उत्तराखंड के गठन को दो दशक से ज्यादा हो गए। इस दौरान, कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों की सरकारें रहीं। निवेश और उद्योगों के नाम पर जमीनों की खूब लूट हुईं। नियम ऐसे बनाए गए कि पहाड़ का विकास हमेशा हाशिए पर रहा।’

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया                            

 

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