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धामी ने जीता चंपावत…उत्तराखंड में बीजेपी के मजबूत नेता के रूप में उभरे

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देहरादून (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) :  उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव जीत लिया है। उन्होंने 13 राउंड मतों की गिनती के बाद 55025 वोटों से जीत दर्ज की। मुख्यमंत्री धामी ने कांग्रेस की निर्मला गहतोड़ी को करारी शिकस्त दी और कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई।

धामी की ये जीत क्यों है खास ?

इस जीत के साथ ही पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड की राजनीति में खुद को स्थापित करने में सफल हो गए हैं। उनकी ये जीत कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहला, खटीमा से आने वाले धामी ने चंपावत से चुनाव जीत कर ये साबित कर दिया कि उनका कद अब सिर्फ खटीमा तक सीमित नहीं रह गया। दूसरा, उनकी जीत का अंतर काफी बड़ा है। आमतौर पर उन्हें जीत के लिए कड़ी टक्कर झेलनी पड़ी है यानी उत्तराखंड की जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है। एक और खास बात ये रही है इस उप चुनाव में कुल तकरीबन 64 फीसदी वोट पड़े थे और उनमें से 94 फीसदी वोट सीधे तौर पर पुष्कर सिंह धामी की झोली में गए।

बाहरी-भीतरी का मुद्दा

चंपावत उपचुनाव में बाहरी-भीतरी का मुद्दा भी जमकर उठा। पुष्कर सिंह धामी खटीमा से आते हैं जबकि कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी चंपावत की ही हैं। चुनाव प्रचार के दौरान ये बात जोरशोर से कांग्रेस की तरफ से उठाई गई और धामी को घेरने की कोशिश की गई। लेकिन चंपावत के लोगों ने एक तरह से धामी के रूप में मुख्यमंत्री को चुनाव जिताया और अपना समर्थन दिया। कांग्रेस प्रत्याशी स्थानीय होते हुए भी अपनी जमानत नहीं बचा पाईं।

आगे का रास्ता
उत्तराखंड में जिस प्रकार से पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता का मामला उठाया है और अन्य योजनाओं की बात कर रहे हैं। उससे संकेत साफ है कि वे हिंदुत्व वाले एजेंडे पर ही आगे बढ़ते दिखेंगे। ऐसे में उत्तराखंड बीजेपी के उन नेताओं की परेशानी बढ़ेगी, जो खुद को मध्यमार्गी बताते रहे हैं। दरअसल, उत्तराखंड विधानसभा के चुनाव के नतीजों में धामी की पराजय के बाद ऐसे नेता काफी खुश दिखाई दे रहे थे। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की बात भी की जा रही थी लेकिन, अब ये आवाजें बंद होंगी। उत्तराखंड में अब धामी एक स्थिर चलाने में कामयाब होंगे। अगर वे सबको साथ जोड़कर चलने में कामयाब होते हैं तो निश्चित तौर पर वे अपना कार्यकाल पूरा करने में भी सफल होंगे। धामी अगर ऐसा कर पाने मे सफल हुए तो उत्तराखंड की राजनीति में वे एक नई इबारत लिखने में कामयाब होंगे।

फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया

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