नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : मॉनसून की बारिश का दौर शुरू होते ही इस साल भी देश के कई शहरों-कस्बों और अन्य इलाकों में पानी भर गया। दिल्ली में तो दो दिन की बारिश से जमा हुआ पानी निकला भी न था कि यमुना के पानी ने बड़े इलाके में कहर मचा दिया। बारिश और बाढ़ के इस पानी ने देश के सिस्टम की एक बार फिर पोल खोल दी है। बता दिया है कि इस देश के नेता, अफसर और इस सबके लिए जिम्मेदार लोग कितने काबिल और संवेदनशील हैं। बता दिया है कि बाढ़ और जलभराव को रोकने के लिए खर्च होने वाला भारी भरकम बजट कहां बह रहा है।
मॉनसून के सीजन में शहरी इलाकों में सबसे ज्यादा पानी आमतौर पर मुंबई में रुकता है। इस बार कई शहरों में ऐसा देखा गया। मुंबई की महानगर पालिका एशिया की सबसे बड़ी महानगर पालिका है और इसका बजट किसी छोटे देश के बजट से ज्यादा है। इसका मौजूदा वित्त वर्ष का बजट 52 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का है, जो कि देश के छह राज्यों के बजट से ज्यादा है। बावजूद इसके, चाहे सरकार किसी भी दल की हो, मॉनसून के सीजन में मुंबई पानी में डूब जाती है। इसके ड्रेनेज सिस्टम को पुख्ता बनाने की कोशिश अब तक किसी भी दल ने नहीं की है। इस बार मुंबई के साथ ही दिल्ली, इससे सटे गुरुग्राम, नोएडा और कई शहरी इलाकों में बारिश के पानी ने लोगों को भारी दिक्कत में डाल दिया।
सवाल यह है कि क्या हमारे इंजीनियर इतने काबिल नहीं हैं कि वह किसी भी शहर या कस्बे के लिए कामयाब ड्रेनेज सिस्टम का विकास कर सकें। ऐसा हो सकता है, लेकिन अफसरशाही और करप्शन के कारण यह नहीं हो पा रहा है। तंग और निचले इलाकों में भी पानी की निकासी के लिए जरूरी इंतजाम किए जा सकते हैं। दिल्ली में सरकार चाहे किसी भी दल की रही हो, उसने राजधानी को डूबने से बचाने के ठोस उपाय करने में कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। बारिश का दौर शुरू होने से पहले न ठीक से नालों और नालियों की सफाई की जाती है और न ही सड़कों से लगे ड्रेनेज सिस्टम को साफ किया जाता है। अलबत्ता यह काम कागजों में जरूर कर लिया जाता है। दिल्ली में इस बार जब बाढ़ का पानी कई इलाकों में भर गया तो आम आदमी पार्टी ने इसके लिए हरियाणा सरकार को जिम्मेदार बताया। कहा कि उसने जानबूझकर हथिनी कुंड बैराज से ज्यादा पानी छोड़ा, ताकि दिल्ली डूब जाए।
अब बाढ़ का दौर
भारी बारिश और कई पहाड़ी इलाकों में बादल फटने के कारण इस समय देश की ज्यादातर नदियां उफनाई हुई हैं। इस बार भारी बारिश और बाढ़ ने हिमाचल प्रदेश, गुजरात और उत्तराखंड में तबाही मचाई हुई है। अकेले हिमाचल प्रदेश में इस मॉनसून के सीजन में करीब 90 लोगों की मौत हो चुकी है और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हो चुका है। ज्यादातर जगह यह देखने में आ रहा है कि लोगों और सरकारों ने नदियों के डूब क्षेत्र में निर्माण कर दिए हैं और अब नजीता सामने आ रहा है। मसलन, यमुना कभी दिल्ली के लाल किले के बगल से होकर गुजरती थी। अब यमुना से सटे इलाके में नदी को पीछे धकेलकर इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम, बस अड्डा, बस डिपो, मेट्रो यार्ड और न जाने कितनी इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। यमुना में पानी बढ़ा तो वह अपने पुराने रास्ते तक आ गई। ऐसा ही हाल हिमाचल और उत्तराखंड में देखने को मिला। यहां नदी के डूब क्षेत्र में कई मकान और होटल बना दिए गए, जिनमें से कई व्यास और पार्वती नदी के कहर के शिकार हो गए। ऐसा ही हाल कई अन्य राज्यों में है। नोएडा के पास लोग हिंडन के डूब क्षेत्र में घुस गए हैं। यहां भी कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है।
डूब क्षेत्रों को चिन्हित करें
सरकारों को चाहिए कि वह अपने-अपने राज्य में डूब क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से चिन्हित करें और वहां किसी भी तरह का कोई निर्माण न होने दें और न ही किसी को वहां किसी भी रूप में बसने दें। शहरी इलाकों में डूब क्षेत्र के बाद मजबूत तटबंध बनाए जा सकते हैं, ताकि आबादी वाले इलाकों में नदियों का पानी न भर सके। अगर दिल्ली में यमुना के किनारे, पूरे आबादी क्षेत्र में ऐसा किया गया होता तो दिल्ली का बड़ा इलाका बाढ़ के पानी में न डूबता। इन तटबंधों पर इतना खर्च नहीं आएगा, जितना कि बाढ़ के पानी से नुकसान होता है। वैसे, यह खर्च जनता के टैक्स के पैसे से ही होगा, न कि किसी नेता या अफसर की जेब से।
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