जयपुर (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : राजस्थान में पशुधन तमाम आदिवासी समुदायों की आजीविका का साधन रहा है। राज्य के रालका और रबारी समुदाय का ताल्लुक ऊंट पालन और उससे जुड़े कारोबार से रहा है। लेकिन राज्य में एक ऐसा कानून लागू है जिसके कारण ऊंट पालन और उसके कारोबार से जुड़े इस समुदाय के लिए अपनी आजीविका चलाना मुश्किल हो गया है। यही नहीं, इस कानून के कारण राज्य में लगातार ऊंटों की संख्या कम होती जा रही है।
राजस्थान में 2015 में तत्कालीन वसुंधरा राजे सिंधिया की सरकार ने एक कानून बनाया था जिसका नाम था द राजस्थान कैमल ( प्रॉहिबिशन ऑफ स्लॉटर एंड रेगुलेशन ऑफ टेंपरेरी माइग्रेशन एंड एक्सपोर्ट) एक्ट।
क्यों बनाना पड़ा कानून
राज्य सरकार का ऐसा मानना था कि, राजस्थान में ऊंटों के वध या दूसरे राज्यों को इस उद्देश्य से ऊंटों को बेचे जाने के कारण उनकी तादाद लगातार कम हो रही है और जानवरों के ये प्रजाति खतरे में पड़ गई है। वसुंधऱा सरकार का कहना था कि क्योंकि राज्य की तमाम आदिवासी जनजातियां ऊंट पालन या उससे जुड़े रोजगार से संबद्ध हैं इस कारण ऊंटों की संख्या के लगातार क्षरण को रोकना होगा और उसके लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। इसी के बाद वसुंधऱा सरकार ने ये कानून बनाया।
कानून के मुताबिक, राज्य में ऊंटों के वध पर पूर्ण निषेध लगा दिया गया। राज्य से बाहर ऊंटों को बेचने पर भी रोक लगा दी गई। कुछ विशेष परिस्थितयों में ये अनुमति दी जा सकती थी लेकिन उसके लिए जिला प्रशासन को तमाम तरह की अंडरटेकिंग देनी पड़ती है। जैसे कि ऊंट का वध नहीं किया जाएगा। इसे किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही राज्य से बाहर भेजा जा रहा है, आदि। कानून के अनुसार, राज्य के ऊंट पालक किसी भी दूसरे राज्य में अपने ऊंटों को नहीं बेच सकते थे।
कार्तिक पूर्णिमा और पुष्कर मेला
राजस्थान के अजमेर जिले में पुष्कर में हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है। ऐसे पशु मेले राज्य में कई और स्थानों पर भी होते हैं लेकिन पुष्कर का पशु मेला सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण माना जाता है। मेले में राज्य के विभिन्न स्थानों से पशुपालक अपने जानवरों को बेचने और खऱीदने के लिए यहां आते हैं। यहां सबसे ज्यादा खरीद फरोख्त ऊंटों की होती है।
आंकड़ों पर जाएं तो देश में ऊंटों की कुल संख्या का करीब 84 प्रतिशत अकेले राजस्थान में है। राजस्थान पशुधन विकास विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार, 2019 में राज्य में कुल ऊंटों की संख्या करीब 2,12000 के आसपास थी। 2012 में यही संख्या 3,20000 थी। पुष्कर मेले में 2019 में 3,298 ऊंटों को बिक्री के लिए लाया गया जबकि 2011 में यहां इसी काम के लिए 8,238 ऊंटों को लाया गया।
कानून का प्रभाव
कोई भी कानून बने उसके पीछे कुछ भी तर्क हों लेकिन उसका असर कई बार उल्टा ही पड़ा है। यही हाल इस कानून का भी है। राज्य में इस कानून के लागू होने के बाद ऊंटों पर आश्रित समुदायों के सामने रोजी रोटी का संकट उठ खड़ा हुआ है। वे राज्य से बाहर ऊंटों को बेच नहीं सकते और ऊंटों को पालना कोई आसान काम नहीं रहा। रालका और रबारी समुदाय के लोगों का कहना है कि ऊंट को तमाम शर्तों के साथ बेचना भी बहुत मुश्किल काम है और कई बार जिला प्रशासन से इसकी अनुमति लेने में ही महीनों लग जाते हैं। नतीजे में, राज्य में ऊंटों और उनसे संबंधित कारोबार पर निर्भरता कम से कमतर होती जा रही है। ऊंटों की संख्या भी इसी कारण से लगातार कम हो रही है।
कानून में बदलाव संभव
रालका और रबारी समुदाय की दिक्कतों और आवाज को ध्यान में रखते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने इस मामले में खुद संज्ञान लेते हुए इस कानून में आवश्यक बदलाव की सिफारिश की है। राज्य के कृषि एवं पशुधन विकास मंत्री लाल चंद्र कटारिया के अनुसार, सरकार को इस कानून से हो रही परेशानियों की जानकारी है और वो जल्दी ही इस कानून में संशोधन की पहल करेगी।
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