नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : भारत जोड़ो यात्रा अगले हफ्ते राजस्थान में प्रवेश करने वाली है। राजस्थान अब तक इस यात्रा के दौरान पहला राज्य है जहां कांग्रेस का शासन है। लेकिन यात्रा राजस्थान पहुंचे इसके पहले ही वहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पार्टी नेता सचिन पायलट के कैंप में एक बार फिर से तलवारें खिंच गई हैं। अशोक गहलोत ने हाल ही में एक समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में सचिन पायलट के बारे में खुल कर काफी-कुछ कह दिया। उन्होंने सचिन पायलट को गद्दार बताते हुए कहा कि उनके पास 10 विधायक भी नहीं है, उन्हें कैसे मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है ? गहलोत ने ये भी कहा कि उनके पास सबूत हैं कि पायलट खेमा बीजेपी के इशारों पर खेलता रहा है। उन्होंने कहा कि, उनके पास पार्टी हाईकमान की तरफ से ऐसा कोई इशारा नहीं है कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की कोई बात है।
अशोक गहलोत, स्वभाव से शांत और गांधी परिवार के लॉयल लोगों में गिने जाते रहे हैं। वे विवादों से आमतौर पर दूर ही रहते हैं। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने सचिन पायलट को खुल कर काफी कुछ कह दिया। इसके पीछे क्या वजह हो सकती है और क्या वाकई सचिन पायलट की दावेदारी में कोई दम है भी या सिर्फ हवा-हवाई मामला है? कहीं ऐसा तो नहीं कि सचिन पायलट राजस्थान की राजनीति में शक्ति संतुलन साधने का एक मोहरा भर बन कर रह गए हैं ? या फिर उन्होंने अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल कर सेल्फ गोल कर लिया है ?
जयपुर में वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा के अनुसार, गहलोत राजस्थान में आज भी कांग्रेस के सबसे मजबूत नेता हैं। सचिन पायलट के पास अगर विधायक होते तो वे मानेसर जाकर जोर-जुगाड़ न करते, सीधे एआईसीसी जाते और मुख्यमंत्री की कुर्सी से गहलोत आउट हो चुके होते होते।
अनिल शर्मा मानते हैं कि, कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में गहलोत के नाम की चर्चा के साथ सचिन पायलट फिर से आशावान हुए थे। गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के स्थिति में संभव है कि शीर्ष नेतृत्व से सचिन पायलट को कुछ आश्वासन मिला हो लेकिन अब तो वो बात रही नहीं। वे कहते हैं कि, सचिन पायलट को लेकर राहुल गांधी की तरफ से कोई आश्वासन सामने आया हो ऐसा कभी नहीं हुआ।
नई कहानी की शुरुवात कहां से ?
अशोक गहलोत के खिलाफ ताजा बवाल के पीछे की पृष्ठभूमि भी कम दिलचस्प नहीं है। एक नवंबर को मानगढ़ धाम में एक सामरोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अशोक गहलोत की तारीफ की। 2 नवंबर को उसी तारीफ का हवाला देते हुए सचिन पायलट और उनके खेमे ने पार्टी आलाकमान से राज्य में नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता के माहौल को खत्म करने की अपील की। इसके ठीक बाद सचिन पायलट समर्थक नेताओं ने झालावाड़, कोटा और बूंदी जिलों में प्रेस कांफ्रेंस की और पार्टी आलाकमान से राज्य़ में नेतृत्व सहित तमाम दूसरे लंबित मसलों को हल करने का आग्रह किया। बात यहीं तक होती तो ठीक थी। दबाव बनाने के लिए घोषणा कर दी गई कि अगर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो भारत जोड़ो यात्रा का राजस्थान में विरोध किया जाएगा।
आपको बता दें कि, भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में हाड़ौती अंचल के झालवाड़ से प्रवेश करेगी। यात्रा कई दिनों तक राजस्थान के विभिन्न जिलों से गुजरेगी और इनमें अधिकतर वे जिले हैं जहां गुर्जर, मीणा और मेव समुदायों का दबदबा है। पाय़लट खुद गुर्जर समुदाय से है।
इसके अलावा पाय़लट समर्थक गुट ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लिखे अजय माकन के उस पत्र को भी मु्द्दा बनाया जिसमें उन्होंने गहलोत समर्थक गुट के नेताओं, संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल, पार्टी के चीफ व्हिप महेश जोशी और राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेद्र राठौड़ के खिलाफ कार्रवाई न करने पर नाराजगी जताई थी। इन नेताओं पर अनुशासनहीनता के आरोप में नोटिस जारी करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। पाय़लट कैंप के विधायक वेद प्रकाश सोलंकी और दिव्या मदेरणा ने इस मामले में खुलकर अपनी नाराजगी जताई।
क्या गहलोत का कोई तोड़ है ?
राजस्थान की राजनीति को जानने वाले बखूबी जानते हैं कि, कांग्रेस और गांधी परिवार के प्रति अशोक गहलोत की निष्ठा सवालों से परे हैं। वे राजनीति के ऐसे माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं जो अपनी हर चाल फूंक-फूंक कर चलते हैं। आक्रामकता उनके व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं है लेकिन राजनीति में एक बड़े मैनिपुलेटर के तौर पर उन्हें देखा जाता हैं। गहलोत का सचिन पाय़लट के खिलाफ अचानक बेहद आक्रामक हो जाना उनकी राजनीतिक शैली में नहीं आता। ऐसे में सवाल यही है कि क्या गहलोत ने आर-पार के लिए जो मोर्चा खोला है वो उनका अपना खुद का है या फिर राजस्थान की राजनीति में संतुलन बनाए रखने के आलाकमान के ‘खेल’ का सिर्फ एर हिस्सा भर है।
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