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कांग्रेस की ‘अप्रासंगिकता’ पर बीजेपी के दावे कितने जमीनी, समझिए तथ्य और तर्क?

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : बजट सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों में प्रधानमंत्री का भाषण कांग्रेस पर केंद्रित था। नेहरू –गांधी परिवार, जवाहर लाल नेहरू की किताब और भारत के पिछले 70 साल। चिंता का विषय ये भी था कि कांग्रेस सत्ता में खुद वापस नही आंना चाहती। प्रधनामंत्री ने ये भी बताया कि कांग्रेस के अहंकार ने उसे गर्त में पहुंचा दिया है। जनता ने उसे खारिज कर दिया है। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के खिलाफ दलीलें भी कांग्रेसी पृष्ठभूमि से ही तलाशीं। जवाहर लाल नेहरू कि किताब भारत एक खोज और नेहरू के वक्तव्यों से ही कांग्रेस को देश की विरासत और संस्कृति से परिचित कराया गया। देश आज जिन हालात से गुजर रहा है उसमें उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री कुछ इस तरह की बातें करेंगे जो निराशा से निकलने का रोडमैप होगा, कांग्रेस के खिलाफ स्यापा नहीं।

सवाल ये भी है कि कांग्रेस अगर इतनी अप्रासंगिक हो चली है तो प्रधानमंत्री संसद में अपना कीमती वक्त कांग्रेस पर क्यों बर्बाद करते हैं? आखिर क्यों, प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के मंत्री से लेकर संतरी तक कांग्रेसमुक्त भारत की बात करते हैं? और क्या वास्तव में कांग्रेस देश में अप्रासंगिक हो चुकी है ?

कांग्रेस कमजोर, तो तवज्जो क्यों ?

देश ने 2014 में भारतीय जनता पाटी को बहुमत देकर दिल्ली की गद्दी पर बैठाया। नरेंद्र मोदी एक करिश्माई नेता के तौर पर उभरे। यूपीए के 10 साल के शासन पर भ्रष्टाचार से लेकर अकर्मण्यता के आरोप लगे। नरेंद्र मोदी की तरफ बहुत उम्मीदों से देख रहा था देश। कालाधान, बेरोजगारी, विकास, भ्रष्टाचार से मुक्ति जैसे तमाम विषय चुनावी मुद्दे थे। उम्मीद थी कि नरेंद्र मोदी सत्ता संभालेंगे और सब ठीक हो जाएगा।

दूसरी तरफ, कांग्रेस में नेतृत्व का संकट नजर आ रहा था। मनमोहन सिंह की ब्रांडिंग कथित तौर पर कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में मीडिया पर की जा रही थी। राहुल गांधी और सोनिया गांधी से पार्टी संभल नहीं रही थी। राहुल गांधी को देश के सामने पप्पू साबित किया जा रहा था। राहुल की राजनीतिक अपरिपक्वता कांग्रेस के लिए संकट थी। पार्टी राज्य़ों में लगातार चुनाव हार रही थी। कांग्रेस की इस कमजोरी का बीजेपी ने फायदा उठाया और जनता ने उसे मैंडेट देकर दिल्ली की गद्दी सौंप दी।

पत्रकार सुनयना मूर्ति बताती हैं कि, बड़ी विजय, बड़ी उम्मीदें और बड़ी जिम्मेदारी लेकर आती है। बीजेपी पर जनता ने जमकर भरोसा किया। लेकिन वक्त बीतने के साथ पार्टी ने खुद के वादों को ही जुमला कहना शुरू कर दिया। कुछ फैसले लिए लेकिन जनता को उनसे राहत कम परेशानी ज्यादा मिली। सुनयना के अनुसार, बीजेपी एक अतीतजीवी पार्टी बन गई। अपने हर गलत कदम के लिए 70 साल की दलील अब लोगों के गले कम उतरने लगी। उनका कहना है कि, 70 सालों की बीजेपी की इसी दलील ने कांग्रेस को भी जिंदा रखा। इन 70 सालों में कांग्रेस ने 60 साल तो शासन किया है।

राजनीति विज्ञानी राधारमण के अनुसार, भारतीय राजनीति में प्रतिक्रियावाद के सहाररे बहुत दिनों तक सरकारे नहीं चलतीं। इंदिरा गांधी के आपातकाल की गलतियों को कितनी जल्दी जनता ने भूल कर वापस उन्हें गद्दी पर बैठा दिया था। उनका कहना है कि, यही गलती बीजेपी कर रही है। देश ने उसे सत्ता पीछे देखने और दूसरे की गलती गिनाने के लिए नहीं सौपी थी। कांग्रेस में कमियां थी तभी तो जनता ने उसे खारिज किया। वे मानते हैं कि, आज की तारीख में बीजेपी अपने वादों पर बुरी तरह से नाकामयाब साबित हुई है। महंगाई, बेरजोगारी, कमजोर विदेश नीति, चीन, अर्थव्यवस्था, किसी भी मोर्चे पर पार्टी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है। बचाव का रास्ता क्या है दोष पिछले 70 सालों पर मढ़ना।

कांग्रेसमुक्त भारत क्यों ?

सुनयना के अनुसार, बीजेपी कांग्रेस को चाहे जितना कोस ले लेकिन उसे पता है कि राष्ट्रीय स्तर पर अगर कोई पार्टी उसके सामने चुनौती है तो वो सिर्फ कांग्रेस ही है। कांग्रेस की कमजोरी ये है कि उसे भी नेहरू-गांधी परिवार के नेतृत्व से ही मजबूती मिलती है। उनका कहना है कि, इसीलिए बीजेपी का अधिकतर हमला कांग्रेस के बहाने नेहरू-गांधी परिवार पर रहता है। आप देखेंगे कि बीजेपी नेताओ से लेकर पार्टी के आईटी सेल की तरफ से इस परिवार पर निजी आक्षेप लगाए जाते हैं और यहां तक कि चरित्र पर भी सवाल उठाए जाते है। बीजेपी जानती है कि कमजोर गांधी परिवार मतलब कमजोर कांग्रेस और कांग्रेस मुक्त भारत मतलब बीजेपी का एकक्षत्र राज।

क्या वास्तव में कांग्रेस अप्रासंगिक हो चुकी है ?

भारतीय जनता पार्टी भी काडर आधारित पार्टी है लेकिन उसका काडर पार्टी का कम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ज्यादा है जो खुद को एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन बताता है। काग्रेस 147 सालल पुरानी पार्टी है। देश के हर कोने और गांव पार्टी का कोई न कोई आदमी मिल जाएगा। पार्टी कमजोर हुई तो संगठन भी कमजोर हुआ और उसके प्रति निषठावान कार्यकर्ता भी कम हुए। लेकिन कांग्रेस का बेस अभी भी बना हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस अभी भी एक धुरी की तरह से काम करती है। इसीलिए बीजेपी के खिलाफ किसी भी मंच को कांग्रेस की मौजूदगी के बिना अधूरा माना जाता है। सुनयना के अनुसार, काग्रेस कमजोर जरूर हुई है लेकिन उसे अप्रासंगिक कहना ठीक नहीं। बीजेपी भी अपनी खामियों से जूझ रही है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ही वो पार्टी रही जिसने लगातार बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चे को खोले रखा। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी से जिस तरह से मोर्चा लिया उससे ये भी संदेश गया कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी अपराजेय़ नहीं है।

राधारमण मानते हैं कि, कांग्रेस को अप्रासंगिक मानना गफलत में जीने जैसा है। वे कहते हैं कि, भारतीय राजनीति में कांग्रेस एक राजनीतिक संस्कृति है। मौजूदा दौर में तो बीजेपी ने ही कांग्रेस की जगह ले ली है। वे सारी कमियां जिनके लिए कांग्रेस बदनाम रही वे सबके सब बीजेपी का हिस्सा बन गई हैं।  

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया        

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