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‘बैकफुट’ पर बीजेपी, मलिक के आरोपों का उत्तर नहीं, निजी हमलों से जवाब…

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए लेखराज ) : जम्मू –कश्मीर के पूर्व राज्यपाल और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्य़क्ष सत्यपाल मलिक ने पुलवामा हमला, भ्रष्टाचार और राजनीतिक शैली को लेकर बीजेपी पर जो आरोप लगाए हैं उसे गंभीरता से लेने की जरूरत है या उसे राजनीतिक कुंठा का नाम देकर मटिय़ाया जा सकता है? सोशल मीडिया पर मलिक के आरोपों को लेकर चर्चा का बाजार गर्म रहा। हालांकि मुख्यधारा के मीडिया ने इस विषय पर चुप्पी साधे रखी।

सत्यपाल मलिक ने ये आरोप जाने-माने पत्रकार करण थापर को दिए एक इंटरव्यू में लगाए। सत्यपाल मलिक का ये इंटरव्यू कई मायनों में सनसनीखेज रहा। इस इंटरव्यू में मलिक ने  2019 में पुलवामा हमले, भ्रष्टाचार को लेकर प्रधानमंत्री की सोच और बीजेपी के कई नेताओं पर भ्रष्ट आचरण के आरोप लगाए हैं। सत्यपाल मलिक का इंटरव्यू न्यूज़ वेबसाइट ‘द वॉयर’ के लिए किया गया था।

मलिक ने इंटरव्यू में क्या कहा ?

अपने इंटरव्यू में करन थापर ने आरोप लगाया कि 2019 में पुलवामा में सीआरपीएफ के काफ़िले पर हुआ हमला सिस्टम की ‘अक्षमता’ और ‘लापरवाही’ का नतीजा था। उन्होंने इसके लिए सीआरपीएफ और केंद्रीय गृह मंत्रालय को ख़ासतौर से ज़िम्मेदार बताया। उस समय राजनाथ सिंह गृह मंत्री थे। मलिक ने कहा कि सीआरपीएफ ने सरकार से अपने जवानों को ले जाने के लिए विमान उपलब्ध कराने की मांग की थी, लेकिन गृह मंत्रालय ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्होंने सीआरपीएफ का काफ़िला जाते वक़्त रास्ते की उचित तरीक़े से सुरक्षा जांच न कराने का भी आरोप सरकार पर लगाया।

मलिक ने इस हमले के लिए ख़ुफ़िया एजेंसियों की विफलता को भी ज़िम्मेदार ठहराया। उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान से 300 किलोग्राम आरडीएक्स लेकर आया कोई ट्रक 10 से 15 दिनों तक जम्मू-कश्मीर में घूमता रहा, लेकिन इंटेलिजेंस एजेंसियों को इसकी भनक तक न लगी।

उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हमले के बाद जिम कार्बेट पार्क से जब उन्हें कॉल किया, तो उन्होंने इन मसलों को उनके समक्ष उठाया। उनके अनुसार, इस पर प्रधानमंत्री  ने उन्हें चुप रहने और किसी से कुछ न बोलने को कहा। मलिक ने बताया कि यही बात राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी उनसे कही। उन्होंने कहा कि तभी उन्हें अनुभव हो गया था कि सरकार का इरादा इस हमले का ठीकरा पाकिस्तान पर फोड़कर चुनावी लाभ लेना है।

सत्यपाल मलिक ने पुलवामा के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भ्रष्टाचर को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि, हकीकत ये हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भ्रष्टाचार से कोई बहुत नफरत नहीं है। उन्होंने ये कहा कि प्रधानमंत्री को कई बार विषयों की ठोस जानकारी नहीं होती। विशेषकर कश्मीर के मामलों में कई बार उनके पास या तो जानकारी थी ही नहीं और थी भी तो गलत। मलिक ने जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे के खात्में को एक राजनीतिक गलती करार दिया।

सत्यपाल मलिक ने बीजेपी नेता राम माधव से जुड़े एक विवाद पर अपने पुराने आरोप को दोहराते हुए कहा कि, राम माधव एक दिन सुबह सात बजे उनके पास आए और कहा कि एक पनबिजली परियोजना और रिलायंस की एक बीमा योजना को मंज़ूरी देने के बदले उन्हें 300 करोड़ रुपए मिल सकते हैं। मलिक ने दावा किया कि उन्होंने उस पेशकश ख़ारिज कर दिया और कहा कि वे ग़लत काम नहीं करेंगे।

कांग्रेस ने सवाल पूछा   

सत्यपाल मलिक के बयान के बाद विपक्ष हमलावर हो गया। कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से किए ट्वीट में कहा कि, ‘नरेंद्र मोदी जी, पुलवामा हमला और उसमें 40 जांबाज़ों की शहादत आपकी सरकार की ग़लती से हुई। अगर हमारे जवानों को एयरक्राफ्ट मिल जाता, तो आतंकी साज़िश नाकाम हो जाती। आपको तो इस ग़लती के लिए एक्शन लेना था और आपने न सिर्फ़ इस बात को दबाया बल्कि अपनी छवि बचाने में लग गए। पुलवामा पर सत्यपाल मलिक की बात सुनकर देश स्तब्ध है।’

बीजेपी ने कहा मलिक कुंठित हैं

सत्यपाल मलिक के इंटरव्यू के बाद बीजेपी के लिए पसोपेश की स्थिति पैदा हो गई। पार्टी ने मलिक के आरोपों का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि पार्टी की तरफ से सोशल मीडिया पर मलिक के खिलाफ निजी हमलों का तांता लग गया। शुरुवात बीजेपी की तरफ से अमित मालवीय ने की। उन्होंने इंटरव्यू में खोट निकालते हुए मलिक के बयान को अविश्वसनीय बताया। पार्टी प्रवक्ता तुहिन सिन्हा ने सत्यपाल मलिक के बयान को पद से हटाए जाने की कुंठा बताया।

मलिक पहले से रहे हैं बागी

सत्यपाल मलिक बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में शामिल रहे हैं। वे नितिन गडकरी और अमित शाह के साथ पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हुआ करते थे। आपात काल के दौरान वे अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के साथ कई महीनों तक जेल में रहे। किसान आंदोलन के दौरान भी सत्यपाल मलिक ने बीजेपी सरकार को आड़े हाथों लिया था और किसानों की मांग मान लेने को कहा था। बाद में किसानों के आगे सरकार को झुकना पड़ा और तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया  

 

 

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