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कानपुर दंगों पर एसआईटी, सिख-किसान वोटों को साधने की कोशिश तो नहीं ?

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लखनऊ / कानपुर ( गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्रा):

बात ज्यादा पुरानी नहीं है। बीती 3 फरवरी को भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने जींद की महापंचायत से  दिल्ली की नरेन्द्र मोदी सरकार को दो टूक चुनौती देते हुए कहा था कि राजा जब डरता है तो किलेबंदी करता है। यही वजह है कि मोदी सरकार किसानों के डर से देश की राजधानी नई दिल्ली की चौतरफा किलेबंदी करने में जुटी है। पश्चिम यूपी के इस किसान नेता के इन तेवरों ने न सिर्फ मोदी सरकार बल्कि यूपी की योगी अदित्यनाथ सरकार को परेशान कर दिया है।

पंचायत चुनाव सिर पर हैं और अगले साल विधान-सभा चुनाव होने है। सरकार के असहज होने का कारण चुनाव ही है। आशंका है कि किसान और सिख वोटरों की नाराजगी यूपी की योगी सरकार को भारी पड़ सकती है। ऐसे में यूपी की योगी सरकार को अपने एक साल पुराने उस आदेश को झाड़-पोछकर निकालना पड़ा जिसको लेकर योगी के अफसरों ने लंबे समय तक शासनादेश तक जारी नहीं किया था। ये आदेश 1984 के सिख दंगों की एसआईटी जांच कराने के सबंध में था। इस आदेश को अब उस वक्त अमल में लाया गया जब सरकार को लगा कि किसान आंदोलन की आंच यूपी में भारतीय जनता पार्टी के चुनावी समीकरण बिगाड़ सकती है।  गौरतलब है कि कानपुर में सिख समुदाय बहुतायत में रहता है। उसके सम्बंधी और शुभचिन्तक भी ज्यादातर संख्या मे उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र से लेकर तराई के पीलीभीत, शाहजहांपुर सहित लखीमपुर खीरी व बहराइच जिलों में भारी तादाद में हैं और धन बल से प्रभावी भी हैं। ऐसे में ये लोग न केवल किसान आंदोलन से सीधे तौर पर अथवा परोक्ष रूप में जुड़े है। प्रदेश की बीजेपी गठबंधन सरकार का आशंकित होना लाजिमी है। सरकार ऐसा नहीं होने देना नहीं चाहती। उसने न केवल एसआईटी को सक्रिय किया बल्कि जिन सिख किसानों  को पुलिस प्रशासन के जरिए  नोटिस तामील कराई  उनके घरों पर  स्थानीय पुलिस को भेजा भी।    

बता दें कि करीब दो साल पहले  5 फरवरी 2019 को योगी सरकार ने 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कानपुर में हुए सिख विरोधी दंगे की जांच दोबारा कराने का आदेश दिया था। शासन ने उस वक्त कहा था कि पूर्व डीजीपी अतुल के नेतृत्व में गठित एसआईटी 6 माह के अंदर जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को देगी। उस वक्त प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने इस संबध में बताया था  कि उच्चतम न्यायालय में दाखिल याचिका मनजीत सिंह व अन्य बनाम भारत सरकार व अन्य में सिख दंगों की जांच दोबारा कराए जाने की मांग की गई थी।

 पूर्व डीजीपी अतुल की अध्यक्षता में गठित इस एसआईटी में सेवानिवृत्त जिला जज सुभाष चंद्र अग्रवाल और सेवा निवृत्त अपर निदेशक अभियोजन  को बतौर सदस्य व कानपुर के एसएसपी को सदस्य सचिव बनाया गया था । उस वक्त सरकार की तरफ से ये भी कहा गया था कि साल 1984 में कानपुर हुए सिख दंगों के संबंध में दर्ज एफआईआर जिनमें अंतिम रिपोर्ट लगा दी गई हो की दोबारा पड़ताल कर ली जाए। इतना ही नहीं प्रमुख सचिव गृह की ओर से ये भी कहा गया है कि जिन मामलों में न्यायालय ने अभियुक्तों को दोषमुक्त करार दिया हो उनका भी परीक्षण कर लिया जाए।

2019 के बाद से ये आदेश सत्ता के गलियारे में धूल फांकता रहा। गृह विभाग के नए हुक्मरानों ने भी योगी सरकार के इस आदेश का शासनादेश जारी करने की कोई सुध नहीं ली। सूत्रों ने बताया कि इस कमेटी के अध्यक्ष  ने इसको लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात भी की थी।  उन्होंने इस मुलाकात में मुख्यमंत्री  को बताया कि सरकार के आदेश के बाद भी अभी तक इस सबंध में शासनादेश जारी नहीं किया गया है।  इस कारण ये आयोग काम नहीं कर पा  रहा है। सारे तथ्यों की जानकारी होने पर नाराज मुख्यमंत्री ने अफसरों को लताड़ा भी। पर  सरकार के मुंहलगे अफसरों ने  इसके बाद भी इस आदेश को फाइलों से बाहर नहीं निकाला । इस रवैए  के कारण  जिस एसआईटी को 6  महीनें में अपनी जांच रिपोर्ट सौंपनी थी वो तय समय तक अपना काम  नहीं शुरू कर पाई। इस लेट लतीफी से लगने लग गया था कि योगी सरकार ने ये दांव लोकसभा चुनाव में सिखों को साधने के लिए किया था और चुनावी हित सधते ही सरकार को लगने लगा कि अब इसकी जरूरत ही नहीं पड़नी है पर किसान आंदोलन ने पूरी तस्वीर ही बदल डाली।

इसी बीच, किसान आंदोलन ने धार पकड़ ली और पश्चिम यूपी समेत पूरे प्रदेश के किसान खेती बिल के विरोध में लामबंद हो गए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और यूपी के तराई इलाकों में रहने वाले सिख किसान तो सरकार के खिलाफ बेहद मुखर हो गए।  सरकार को लगने लगा कि यूपी में गांव-गांव तक फैल रही किसानों की ये नाराजगी सरकार के सारे समीकरण बिगाड़ सकती है। इस आशंका से परेशान सरकार ने इस एसआईटी का कार्यकाल मई 2021 तक बढ़ा दिया।  सरकार की कोशिश है कि इस जांच के बहाने  सिखों को साधा जा सके और किसान आंदोलन से होने वाले डैमेज को कंट्रोल में किया जा सके।

कानपुर में हुए सिख विरोधी दंगों में 127 लोगों की हत्या हुई थी। इसे लेकर 1,251 मुकदमे दर्ज हुए थे। स्थानीय पुलिस ने इनमें से 153 मामलों को छोड़ अन्य सभी में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी थी। एसआईटी ने दर्ज मामलों में से 39 केस चिह्नित किए। इनमें से 11 में चार्जशीट लग चुकी है जबकि 28 में पुनर्विवेचना की अनुमति मांगी गई है। बहरहाल,अब सरकारी मशीनरी और एसआईटी तो सक्रिय हो गए हैं लेकिन सरकार की ये कवायद सिख किसानों पर कितना असर डाल पाएगी ये एक बड़ा सवाल है।

फोटो सौजन्य सोशल मीडिया

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