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श्रीलंका के हालात, भारत के लिए क्यों ‘अवसर’ के साथ एक ‘सबक’ भी ?

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कोलंबो ( गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : श्रीलंका के हालात अराजक हैं। आर्थिक संकट के बाद श्रीलंका में जनता विद्रोह पर उतारू है। देश में एक महीने के भीतर दूसरी बार आपातकाल लगा दिया गया है। जनता के दबाव में प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया है। राजधानी कोलंबो समेत देश के विभिन्न शहरों से हिंसा और आगजनी की खबरें हैं। एजेंसी की खबरों के अनुसार, हिंसक प्रदर्शनों में कम से पांच लोगों की मौत हो गई है जबकि 150 के आसापास प्रदर्शनकारी घायल हैं। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे देश में अंतरिम सरकार बनाने की कवायद में जुटे हैं। जनता उनके त्यागपत्र की भी मांग कर रही है। श्रीलंका के हालात पर भारत सरकार बहुत नजदीकी से निगाह रखे हुए है।

कोलंबों से निकलने वाले अखबार ‘कोलंबो पेज’ के अनुसार, देश में सत्तारूढ़ दल के समर्थकों और विरोधियों के बीच कई जगहों पर संघर्ष हुआ है। सत्तारूढ़ दल अपने समर्थकों को बसों में भर कर विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों के सामने पहुंचा रहे है। प्रदर्शकारियों ने कई सांसदों और प्रधानमंत्री के अवास टेंपल ट्रीज़ के सामने खड़े वाहनों को आग लगा दी है। हालात को काबू में करने के लिए कोलंबों में सेना को तैनात कर दिया गया है।

श्रीलंका के रक्षा सचिव ने देश में शांति बनाए रखने के लिए जनता से समर्थन देने का आग्रह किया है, जबकि पुलिस की सहायता के लिए तीन सशस्त्र बलों को बुलाया गया है। सभी पुलिसकर्मियों की छुट्टी अगले आदेश तक रद्द कर दी गई है।

वर्ष 1948 में ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद श्रीलंका अब तक के सबसे गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। देश में विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो चुका है। एटीएम खाली हैं। महंगाई चरम पर है और जनता को तेल और गैस जैसी बुनियादी चीजों की भारी किल्लत से जूझना पड़ रहा है। आर्थिक स्थिति इतनी खराब है सरकार के पास विदेश से जरूरी चीजों के आयात करने के लिए भी पैसा नहीं है।

श्रीलंका के हालात भारत के लिए अहम क्यों ?

श्रीलंका भारत का पड़ोसी देश है और कूटनीतिक दृष्टि से भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ वर्षों में श्रीलंका चीन के काफी प्रभाव में रहा और भारतीय हितों की लगातार अनदेखी करता रहा। श्रीलंका ने सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कुछ द्वीपों को भी एक तरह से चीन के हवाले कर रखा है। इन द्वीपों से भारत के सुरक्षा हितों और हिंद महासागर और अरब सागर में उसके दबदबे पर असर पड़ता है। चीन ने इन श्रीलंकाई द्वीपों के एवज में श्रीलंका को काफी कर्ज दे रखा है। फिलहाल श्रीलंका इस स्थिति में नहीं है कि वो चीन को उसके कर्ज का ब्याज भी चुका सके। भारत, श्रीलंका की भरसक मदद करने की कोशिश कर रहा है लेकिन किस हद तक ये संभव हो पाएगा इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

श्रीलंका में आज जो हालात हैं उसकी पृष्ठूभूमि 7-8 साल पहले ही तैयार होने लगी थी। श्रीलंका सिंहली बहुल देश है जिसकी तकरीबन 80 फीसदी जनसंख्या सिंहली है और 20 प्रतिशत तमिल और अन्य समुदायों के लोग हैं। श्रीलंका की मौजूदा सरकार ने बहुसंख्यक सिंहली जनसंख्या के ध्रुवीकरण के लिए तमाम ऐसे अभियान चलाए जिनसे उनके वोट हासिल हो सकें। लेकिन इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था दलदल में फिसलती गई और महंगाई और बेरोजगारी आसमान छूती चली गई। जब तक लोगों को समझ में आया तब तक काफी नुकसान हो चुका था।

श्रीलंका के मौजूदा हालात खस्ताहाल अर्थ व्यवस्था की देन तो हैं ही साथ ही सत्ता पर काबिज राजपक्षे बंधुओं के खिलाफ भी हैं। प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे ने तो इस्तीफा दे दिया है लेकिन छोटे भाई गोटाबाया राजपक्षे अभी भी श्रीलंका के राष्ट्रपति पद पर बैठे हुए हैं। भारत के लिए सबसे बड़ी  चुनौती ही यही है कि वो गोटाबाया सरकार के साथ किस तरह से डील करे। जनता अपनी सरकार के खिलाफ है और भारत किसी भी सूरत में श्रीलंका की जनता की गुडविल को खोना नहीं चाहता। दूसरी तरफ गोटाबाया की मदद से दूर रह कर भारत, चीन को यहां और पांव परासने का मौका दे सकता है जो वो किसी भी सूरत में नहीं चाहेगा।

श्रीलंका में बीबीसी ब्यूरो प्रमुख अर्चना शुक्ला के अनुसार, श्रीलंका घोर अनिश्चितता के दौर में है। देश के सामने सबसे बड़ा मुद्दा आर्थिक संकट का है और सबसे पहले उसी से निपटे जाने की ज़रूरत है। लोगों को तेल, गैस, दवाइयां नहीं मिल रही हैं। उसके लिए श्रीलंका अभी दूसरे देशों पर निर्भर है। विश्व बैंक पर निर्भर है। दूसरे देशों से इमर्जेंसी के रूप में मिलने वाले कर्ज़ पर निर्भर है। इस आर्थिक संकट को डील करना सबसे अधिक ज़रूरी है।

वरिष्ठ पत्रकार टीआर रामचंद्रन के अनुसार, श्रीलंका के मौजूदा हालात बहुत ही गंभीर हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि आर्थिक तौर पर उनकी हालत बहुत ख़राब है। उनके पास सरकार चलाने के लिए पैसे नहीं हैं। वे जहाँ-जहाँ से क़र्ज़ ले सकते हैं, उसकी तलाश में हैं। लोगों में अपने नेतृत्व को लेकर घोर निराशा है। ये और खतरनाक बात है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया    

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