नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए लालचंद्र सिंह):
नई दिल्ली: भारत के किसी भी शहर, कस्बे या गांव में चले जाइए आपको पटरी पर लगा बाजार देखने को मिल जाएगा। ये कहानी दिल्ली, मुंबई से लेकर पटना, लखनऊ तक कमोवेश एक जैसी ही है। इन बाजारों में आपको सब कुछ मिलेगा। खाने पीने की चीजों से लेकर घर-गृहस्थी का हर सामान। रोजगार और कारोबार के नजरिए से इन बाजारों की अहमियत बहुत ज्यादा है। करोड़ों लोगों की रोजीरोटी हैं ये बाजार तो यहां अरबों का कारेबार भी होता है। कहा जाता है कि एक जमाने में आगरा से फतेहपुर सीकरी के बीच लगने वाला पटरी बाजार यूरोप के तमाम देशों के शानदार बाजारों को मात देता था। दिल्ली के चोर बाजार की तो बात ही निराली है। लेकिन जहां इन बाजारों का एक पक्ष रोजगार और कारोबार से जुड़ा है वहीं इसका दूसरा पक्ष यहां उपभोक्ता के छले जाने का है। नकली और मिलावटी सामानों की बिक्री का है।
क्या है रेहड़ी – पटरी बाजार ?
आमतौर पर सड़को के किनारे लगा बाजार देखने को मिल जाएगा। तमाम सामान और सब्जी बेचने वाले आपके मोहल्लों और घरों तक आते हैं। आमतौर पर ठेलों और रेहड़ियों पर चलने वाला ये बाजार स्थायी नहीं होता। ये दुकानदार दिनों और समय के हिसाब से अपनी जगह बदलते रहते हैं। कहीं-कहीं पर स्थायी रूप से सड़क किनारे दुकानें लगाई जाती हैं। इन दुकानों में रोजमर्रा घरों में इस्तेमाल में आने वाले सामान के अलावा कपड़े, सब्जियां और खाने पीने की चीजें मिल जाती हैं। सामान्य भाषा में हम इन्हें ‘स्ट्रीट वेंडर्स’ भी बोल सकते हैं। स्ट्रीट वेंडर्स की परिभाषा में वो लोग आते हैं जो बिना एक स्थाई निर्मित ढांचे के एक अस्थाई ढांचे जैसे थड़ी या मोबाइल स्टॉल जैसे ठेले या साइकिल रिक्शा आदि के माध्यम से कारोबार करते हैं। भारत में पटरी पर लगने वाले ऐसे लाखों बाजार हैं और इनकी सही सही संख्या का अनुमान लगा पाना भी मुश्किल है।
व्यापक बाजार, अरबों का कारोबार
भारत में ऐसे निर्माताओं और विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या है जिनके सामान बनाने या बेचने का कोई स्थाई ठिकाना नहीं है। यह समस्या केवल देश के ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में ही नहीं है बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी बहुत बड़ी तादाद में ऐसा कारोबार फैला हुआ है। ये वितरक या विक्रेता भारतीय बाजार में न केवल बहुत बड़ी संख्या में हैं, बल्कि बाजार व्यवस्था में इनका योगदान भी महत्वपूर्ण है। एक अनुमान है कि देश की आबादी के लगभग दो प्रतिशत लोग इस तरह के कारोबार में जुड़े हैं। अकेले मुंबई में ही लगभग ढाई लाख लोग, कोलकाता में लगभग दो लाख पटरी कारोबारी और दिल्ली में लगभग चार लाख लोग पटरी पर कारोबार कर रहे हैं। रेहड़ी पटरी वालों के सबसे बड़े संगठन नासवी का दावा है कि इस तरह के कारोबार से देश के करीब 15 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हुए हैं। असंगठित क्षेत्र में होने के कारण इस बाजार के कारोबार का ठीक-ठीक अनुमान लगाया जाना असंभव है लेकिन बाजार के कुछ मानकों को ध्यान में रखा जाए तो निश्चित रूप से यहां अरबों का कारोबार होता है।
क्या कहता है कानून ?
सरकार की तरफ से स्ट्रीट वेंडर्स को नियंत्रित करने के लिए अलग से कोई विषेष कानून या नियम नहीं बनाया गया है लेकिन उपभोक्ता संरक्षण कानून व उपभोक्ता को संरक्षण देने वाले दूसरे कानून जिनमें खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम एवं बाट एवं माप कानून इन पर भी उसी प्रकार लागू होते हैं, जैसे कि अन्य निर्माताओं और विक्रेताओं पर लागू होते हैं।
इस दिशा में सरकार की ओर से एक महत्वपूर्ण कानून वर्ष 2014 में बनाया गया। इससे पहले भी सरकार इस दिशा में कार्रवाई करती रही है और ऐसे लोगों को सामाजिक सुरक्षा और रोजगार अधिकार देने के लिए 2004 में पटरी दुकानदारों के लिए नीति पेश की गई थी जिसे बाद में 2009 में नेश्नल पॉलिसी ऑन अर्बन स्ट्रीट वेंडर्स के नाम से संशोधित किया गया। 2014 में कानून को स्ट्रीट वेंडर्स (प्रोटेक्शन ऑफ लाइवलीहुड एंड रेगुलेशन ऑफ स्ट्रीट वेंडिंग) एक्ट 2014 के नाम से जाना जाता है। इस एक्ट की कुछ खास बातें इस प्रकार हैं-
- वेंडिंग सर्टिफिकेट
इसमें सभी वेंडर्स को जो कि 14 साल से ऊपर है, वेंडिंग का सर्टिफिकेट दिए जाने का प्रावधान है। यह सर्टिफिकेट उसी स्थिति में दिए जाने का प्रावधान है जबकि विक्रेता यह अंडरटेकिंग देता है कि वह यह कारोबार स्वयं के द्वारा या केवल घरेलू सदस्यों की मदद से कर रहा है और उसके पास जीविकोपार्जन के लिए कोई और साधन नहीं है।
- नो वेंडिंग जोन में कारोबार नहीं
सरकार ने इस कानून के जरिए इस बात को भी सुनिश्चित किया है कि ऐसा कोई भी वेंडर नो वेंडिंग जोन में इस तरह का कारोबार नहीं कर सकता।
- टाउन वेंडिंग कमेटी
इसी प्रकार कानून के तहत स्थानीय प्राधिकरणों या नगर पालिका क्षेत्रों के लिए टाउन वेंडिंग कमेटी बनाए जाने का भी प्रावधान किया गया है। इन टाउन वेंडिंग कमेटियों को सभी वेंडर्स का सर्वे करने के लिए भी जिम्मेदार बनाया गया है और यह सर्वे हर पांच साल में किया जाना चाहिए, यह व्यवस्था की गई है।
विशेषज्ञों की राय
भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकारण के पूर्व अध्यक्ष आशीष बहुगुणा का कहना है कि इस बाजार की सबसे समस्या ही इसके 90 प्रतिशत विक्रेताओं का असंगठित क्षेत्र में होना है। उनकी कोई एक पहचान नहीं है। इसकी वजह से खाद्य पदार्थों में मिलावट की गंभीर समस्या बनी हुई है। कार्रवाई उसी पर हो सकती है जिसका कोई पता ठिकाना हो, कहीं कोई पंजीकरण हो। ये विक्रेता आज यहां कल वहां काम करते हैं। इनके नियमन की जरूरत है। साथ ही जरूरत इस बात की भी है कि किस पदार्थ में क्या मिलावट होती है उसकी समझ लोगों में विकसित की जा सके।