देशहित में मजबूत कांग्रेस जरूरी, गडकरी की इस सोच के पीछे क्या है दलील?

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क ) :  एक तरफ जहां बीजेपी में एक तबका ऐसा है जो कांग्रेस मुक्त भारत की बात करता है वहीं दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा है कि क्षेत्रीय पार्टियों को मजबूत होने से बचाने के लिए जरूरी है कि कांग्रेस मजबूत हो। गडकरी ने आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस के नेताओं को पार्टी के साथ बने रहने और कांग्रेस के प्रति निष्ठावान बने रहने को कहा।  

नितिन गडकरी ने ये बात पुणे में एक पत्रकारिता सम्मान के वितरण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करते हुए कही। सवाल जवाब के दौर में नितिन गडकरी ने काफी कुछ वो कहा जहां वे किसी पार्टी के नेता कम देशहित में सोचने वाले एक विचारक ज्यादा लगे। उन्होंने कहा कि, एक स्वस्थ लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका बहुत अहम है। उन्होंने कहा कि, मैं दिल से कामना करता हूं कि कांग्रेस मजबूत बनी रहे। आज जो भी लोग कांग्रेस में हैं उन्हें पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध बने रहना चाहिए और पार्टी को छोड़ने की सोचने के बजाए हार से निराश न होते हुए पार्टी को मजबूत बनाने के लिए एकजुट रहते हुए काम करना चाहिए।

नितिन गडकरी ने कहा कि किसी को भी सिर्फ चुनावी हार की वजह से निराश होकर पार्टी या विचारधारा नहीं छोड़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि, हर पार्टी का दिन आता है। बात ये है कि काम करते रहना है। सत्ताधारी दल और विपक्ष लोकतंत्र के दो पहियों की तरह हैं।

गडकरी की इस सोच के पीछे के पीछे की दलील

दरअसल, नितिन गडकरी की मजबूत कांग्रेस की दलील के पीछे देश में क्षेत्रीय दलों की मजबूती और क्षेत्रीय हितों की कीमत पर राष्ट्रीय हितों को चोट पहुंचने की सोच है। नितिन गडकरी ने समारोह में जाहिर किया कि क्षेत्रीय दल कहीं कांग्रेस की जगह न ले लें इसलिए जरूरी है कि कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभर कर सामने आए।

इस समय, देश में तमाम क्षेत्रीय दल हैं जो राज्यों में सत्ता में हैं और दिलचस्प बात ये है कि उनमें से बहुत से दल कांग्रेस से टूट कर बने हैं। उन दलों ने मूल रूप से कांग्रेस के जनाधार को ही कमजोर किया है।

मैं प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं   

पुरस्कार समारोह में नितिन गडकरी ने ये भी कहा कि वे प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल नहीं हैं। उन्होंने कहा कि, मैं एक राष्ट्रीय नेता हूं और अब इस पड़ाव पर वापस महाराष्ट्र की राजनीति में आने में मेरी दिलचस्पी नहीं है। एक समय था जब मैं केंद्र की राजनीति में नहीं जाना चाहता था, लेकिन मैं अब वहां खुश हूं। मैं सिद्धांतों पर राजनीति करता हूं न कि महत्वकांक्षाओं के आधार पर। उन्होंने याद दिलाया कि, 1950 के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा चुनाव हार गए थे, इसके बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उनका बहुत सम्मान करते थे। यही एक स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा है।

फोटो सौजन्य सोशल मीडिया

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