नई दिल्ली, 25 अगस्त (गणतंत्र भारत के लिए न्यूज़ डेस्क ) : बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने सवाल करे हुए पूछा है कि रातो-रात ऐसा क्या हो गया कि गुजरात सरकार ने दोषिय़ों को रिहा करने का फैसला कर लिया। शीर्ष अदालत ने इस मामले में दोषियों को प्रतिवादी बनाने के साथ राज्य सरकार और दूसरे संबद्ध पक्षों को नोटिस जारी कर दिया है।
इस रिहाई के खिलाफ मार्क्सवादी नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल और समाज कार्यकार्ता रूपरेखा वर्मा की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश जारी किया। याचिका में कहा गया था कि पूरे मामले की जांच सीबीआई ने की थी इसलिए गुजरात सरकार दोषियों को सजा में छूट का एकतरफा फैसला नहीं ले सकती। आपराधिक दंड संहिता के सेक्शन 435 के तहत राज्य सरकार को इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय से सलाह लेना अनिवार्य है।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा मुख्य न्य़ायाधीश एनवी रमन्ना ने कहा था कि हर हाल में इस मामले को सुनवाई के लिए 26 अगस्त या उससे पहले शीर्ष अदालत की बेंच के सामने रखा जाए।
आपको बता दें कि इस याचिका के अलावा 6000 से ज्यादा बुद्धिजीवियों और पूर्व नौकरशाहों की तरफ से इस रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की गुहार की गई थी। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इस रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दाखिल कर रखी है। दोषियों की रिहाई के बाद ऐसी तस्वीरें और वीडियो भी सामने आए जिसमें इन सबका मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किए जाते देखा गया था। याचिका में कहा गया है कि दोषियों के स्वागत से इस मामले में ‘राजनीतिक एंगल’ साफ़ दिखता है।
साल 2002 में गुजरात में हुए दंगों में बिल्किस बानो के साथ समूहिक बलात्कार किया गया और उसके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या कर दी गई। गुजरात में मामले की सुनवाई के दौरान उसे लगातार जान से मारने की धमकी मिलती रही। बाद में सुप्रीम कोर्ट के दखल से इस मामले को मुंबई के सेशंस कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया और बिलकिस को मामले की पैरवी के लिए वकील के सुविधा मुहय्या कराई गई।
मामले की जांच सीबीआई ने की थी। 2008 में सीबीआई की विशेष अदालत ने 13 में से 11 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। 2017 में बॉंबे हाईकोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल रखा। पिछले दिनों गुजरात सरकार ने इन 11 दोषियों को अच्छे चाल-चलन के आधार पर जेल से रिहा करने का फैसला किया। उसके बाद से ही इस मामले में विवाद ने तूल पकड़ लिया।
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