Homeपरिदृश्यटॉप स्टोरी'मोदी-मोदी' का 'अर्धसत्य'..क्या है, सिडनी की कहानी का 'असली सच'...?

‘मोदी-मोदी’ का ‘अर्धसत्य’..क्या है, सिडनी की कहानी का ‘असली सच’…?

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : अभी दो दिन पहले की बात है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिय़ा में थे। प्रधानमंत्री के सम्मान में ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले प्रवासी भारतीयों ने सिडनी में एक मेगा शो का आयोजन किया। इस आयोजन में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथोनी एल्बेनीज़ भी शामिल हुए। इसी दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री को ‘बॉस’ कह कर संबोधित किया। इस आयोजन को भारतीय मीडिया में भी काफी प्रमुखता से दिखाया गया। दावा किया गया कि इस आयोजन में ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले प्रवासी भारतीयों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और वे प्रधानमंत्री से मिलने के लिए बेताब थे।

सिडनी ओलंपिक पार्क में 23 मई को हुए इस आयोजन में दावा किया गया कि 20 हजार भारतीय प्रवासियों की भीड़ एकत्र हुई। भारत में मुख्यधारा के मीडिया और सोशल मीडिया पर जम कर प्रधानमंत्री की तारीफ की गई और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेदह लोकप्रिय़ और भारत को विश्व गुरू के रूप में प्रतिष्ठित करने वाले नेता के तौर पर बताया गया।

खैर, ये तो था एक पक्ष। अब गणंतत्र भारत, इस आयोजन और इसके आयोजकों के बारे में आपको कुछ चौंकाने वाली जानकारी दे रहा है। सबसे पहले बात, ऑस्ट्रेलिय़ाई मीडिया ने इस आयोजन को कैसे लिया, इस पर चर्चा। अखबार ‘ऑस्ट्रेलियन’ ने इस बारे में शीर्षक दिया कि, ‘स्विंगिग इन टू एनटेरमेंट, मोदी ऐज़ द बॉस टेक्स द सेंटर स्टेज विद स्टाइल’। शीर्षक से आशय साफ था कि, इस आयोजन और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री का संबोधन मजाकिया लहजे में की गई टिप्पणी थी। इसे बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं थी।

लेकिन इससे भी दिलचस्प जानकारी साकेत गोखले नाम के एक शख्स ने दी जो पहले एक भारतीय अखबार के विदेश संवाददाता थे। उन्होंने ट्विटर पर इस आयोजन और आयोजकों के नाम को सार्वजनिक करते हुए टिप्पणी की कि भारत के प्रधानमंत्री की यात्रा भारतीय करदाताओं के पैसे पर 2024 के चुनावों के सिलसिले में बीजेपी के प्रचार अभियान के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय मंच की तलाश थी। उन्होंने कहा कि इस आयोजन  के पीछे का मकसद सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी की छवि को इस रूप में दिखाना था कि वे भारत में तो सबसे लोकप्रिय नेता हैं ही विश्व स्तर पर भी दुनिया उनकी मुरीद बन चुकी है।

गोखले ने अपने ट्वीट में कुछ चौंकाने वाली जानकारियां भी दीं। उन्होंने बताया कि, सिडनी में हुए इस आयोजन के पीछे दो संगठन थे। पहला, फ्रेंड्स ऑफ इंडिया-ऑस्ट्रेलिया और दूसरा, इंडियन ऑस्ट्रेलियन डाय़स्पोरा फाउंडेशन। इन दोनों संगठनों का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और दूसरे हिंदू संगठनों से करीबी रिश्ता है। अपने ट्वीट में साकेत गोखले ने दावा किया कि सिडनी में हुए आयोजन में लोगों की भीड़ पूरी तरह से प्रायोजित थी और उसे भाड़े पर लाया गया था।

फ्रेंड्स ऑफ इंडिया-ऑस्ट्रेलिया

इस संगठन की वेबसाइट पर लिखा है कि, यह एकल स्कूल का सहयोगी है। एकल स्कूल को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ संचालित करता है। इसका संबंध हिंदू स्वयंसेवक संघ से भी है जिसका आरएसएस से करीबी रिश्ता है।

इंडियन-ऑस्ट्रेलियन डाय़स्पोरा फाउंडेशन

इस संगठन के निदेशक हैं निहाल आगर, प्रकाश मेहता, जय शाह और राहुल जेठी। निहाल आगर हिंदू काउंसिल ऑफ ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख हैं जबकि प्रकाश मेहता इसके सदस्य हैं। जय शाह और राहुल जेठी ओवरसीज़ फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी के सदस्य हैं। इंडियन-ऑस्ट्रेलियन डायस्पोरा फाउंडेशन के सहयोगियों में हिंदू काउंसिल, सेवा इंटरनेशनल ( आरएसएस चालित संगठन) विश्व हिंदू परिषद, ओवरसीज़ फ्रैंड्स ऑफ बीजेपी और दूसरे हिंदू संगठन शामिल हैं। ये सभी संगठन भारतीय़ जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संचालित हैं।

आयोजन पर सवाल क्यों ?

आयोजन के पीछे इन संगठनों का नाम सामने आने पर सवाल उठने लाजमी थे और उठे भी। वरिष्ठ पत्रकार मैथ्यू ज़ॉर्ज का कहना है कि, ‘भारत में प्रायोजित सर्वे, ओपिनियन पोल जैसी चीजें तो लोग जानते हैं लेकिन विदेश में किसी की छवि को चमकाने और पार्टी विशेष को फाय़दा पहुंचाने के लिए ऐसे आयोजन गलत हैं। भाड़े पर लोगों को लाना और उनसे मोदी-मोदी के नारे लगवाना तो सस्ती लोकप्रियता को जाहिर करने का तरीका लगता है।’

मैथ्यू इस मामले में संघ के नेता राम माधव के एक कथित पत्र का भी हवाला देते हैं जिसमें वे प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और दूसरे हिंदू संगठनों द्वारा भीड़ जुटाने की बात कर रहे हैं।

राजनीति विज्ञानी और ऑस्ट्रेलिया में प्रवासी रश्मि गेरा खुद इस बात को स्वीकार करती हैं कि ‘सिडनी के आयोजन में हिंदू संगठनों की भूमिका थी। उन्होंने भीड़ जुटाने के लिए लोगों को प्रेरित किया, लालच भी दिया और खर्च भी उठाय़ा। आय़ोजन के बहाने कोशिश नरेंद्र मोदी की छवि को चमकाने की थी।’ रश्मि कहती हैं कि, ‘किसी देश के प्रधानमंत्री को अपने और अपनी पार्टी के लिए सरकारी खर्चे पर विदेश में जाकर ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से बचना चाहिए।’

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिय़ा       

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