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जानिए, यूपी में अफसरी के ‘पॉवर सेंटरों ’ की शिफ्टिंग के ‘खेल’ के पीछे का ‘खेल’!

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लखनऊ, 02 सितंबर (गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र) : उत्तर प्रदेश में नौकरशाही के स्तर पर बड़ा और अप्रत्याशित फेरबदल हुआ। कई ताकतवर अफसरों के पंख कतर दिए गए जबकि कुछेक अफसरों की ताकत अचानक बढ़ गई। योगी आदित्य नाथ के सबसे पसंदीदा अफसरों में शुमार अवनीश अवस्थी सेवानिवृत्त हो गए। सत्ता के गलियारों में इन हलचलों को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है।

कयास कई हैं। सबसे पहला तो यही कि अफसरों की इस अदलाबदली में दिल्ली अपना खेल खेल गई। दूसरा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नौकरशाही को ये संदेश देना चाहते थे कि उनकी सरकार चंद अफसरों के सहारे ही नहीं चल रही बल्कि उनके पास हर किसी का विकल्प मौजूद है। एक और चर्चा ये है कि, पिछले दिनों अफसरों और कुछेक मंत्रियों के बीच तबादलों के लेकर हुए घमासान के बाद मुख्यमंत्री के लिए ये संदेश देना भी जरूरी था कि मंत्री मंत्री है, अफसर की अपनी हदें हैं और उन्हें अपनी सीमाओं को पहचानना होगा।

दिल्ली का खेल ?

उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र केंद्र सरकार से सेवा विस्तार देकर भेजे पिछले साल राज्य में भेजे गए। आखिर ऐसा हुआ क्यों ? चर्चा थी कि अवनीश अवस्थी मुख्यमंत्री की पहली पसंद हैं और वे उन्हें ही मुख्य सचिव बनाना चाहते हैं। लेकिन दुर्गाशंकर मिश्र को केंद्र से उत्तर प्रदेश निर्यात कर दिया गया। मिश्र एक महीन नौकरशाह हैं और फिलहाल उन्होंने किसी तरह के विवाद से खुद को दूर रखा है।

इसी तरह से, उत्तर प्रदेश में राज्य के डीजीपी का मसला केंद्र और राज्य सरकार के बीच टसल में उलझा हुआ है। उत्तर प्रदेश में फिलहाल कार्यवाहक डीजीपी के रूप में देवेंद्र सिंह चौहान काम कर रहे हैं। वे मुख्यमंत्री की पसंद हैं लेकिन उनकी अभी तक पूर्णकालिक डीजीपी के रूप में तैनाती नहीं हो पाई है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक केंद्र सरकार के पास डीजीपी की नियुक्ति के लिए पैनल के नाम ही नहीं भेजे हैं। इसकी वजह सिर्फ वो खतरा है कि अगर ऐसा पैनल भेजा गया तो उसमें डीएस चौहान से भी वरिष्ठ अफसर मौजूद हैं और ऐसे में कहीं केंद्र सरकार डीएस चौहान की जगह किसी दूसरे अफसर को डीजी न बना दे। फिलहाल, मुख्यमंत्री अपने पसंदीदा अफसर को कार्यवाहक बना कर ही काम चला रहे है। वरना उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में बिना पूर्णकालिक डीजीपी के शासन  की कल्पना थोड़ी मुश्किल थी।

अब पेंच, दुर्गाशंकर मिश्र के रिटायरमेंट के बाद के हालात पर फंसने वाला है। अवनीश अवस्थी रिटायर भले हो चुके हैं लेकिन, ऐसा मान कर चला जा रहा है कि वे जल्द ही किसी ताकतवर जगह पर फिर से प्रतिष्ठित होंगे। संभव है उनकी स्थित अफसरों में कुछ उसी तरह से हो जो मायावती के शासनकाल में कैप्टेन शंशाक शेखर सिंह की थी।

जोभी हो लेकिन ये एकदम साफ है कि दिल्ली और लखनऊ के बीच रस्साकशी जारी है। राजनीति के साथ, नौकरशाही में भी अब ये प्रयोग अपने फुल फॉर्म में है।

नो वन इज़ इनन्डिस्पेंसेबल ?

इन हलचलों के दूसरे संदेश को देखा जाए तो नौकरशाही में ताकत का केंद्र बन चुके इन अफसरों को ताश के पत्तों की तरह फेंट कर मुख्यमंत्री ने खुद ये संदेश देने की कोशिश की है कि उनके लिए कोई भी अफसर इनडिस्पेंसेबल नहीं है। अतिरिक्त मुख्यसचिव के रूप में सूचना और जनसंपर्क विभाग संभाल रहे नवनीत सहगल के जिम्मे सरकार की छवि को संभालने का दायित्व था। माना जाता है कि उन्होंने बखूबी अपनी इस जिम्मेदारी को निभाया भी लेकिन अचानक उन्हें इस पद से हटा दिया गया। उनकी ये जिम्मेदारी अब गृहसचिव संजय प्रसाद को सौंप दी गई है।

इसी तरह से, अतिरिक्त मुख्य सचिव और स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा संभाल रहे अमित मोहन प्रसाद से भी स्वास्थ्य विभाग ले लिया गया। हालांकि, कोविड काल और हाल फिलहाल में उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक से तबादलों को लेकर उनकी तनातनी सामने आई थी। अमित मोहन प्रसाद की ब्रजेश पाठक से अदावत काफी पुरानी है। कोरोना काल में पाठक जब कानून मंत्री थे तब उन्होंने राज्य में कोविड के बदहाल प्रबंधन को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था और उनके निशाने पर थे अमित मोहन प्रसाद। पाठक जब उपमुख्यमंत्री के साथ स्वास्थ्य मंत्री बने तब भी अमित मोहन प्रसाद ही उनके विभाग के सबसे बड़े अफसर बने रहे।

अफसरों को हद में रहने का संदेश ?

बीजेपी के अंदरखाने इस बात की चर्चा है कि नौकरशाही में इन हलचलों के पीछे सरकार ने ये संदेश भी देने की कोशिश की है कि राज्य में नौकरशाही बेलगाम नहीं है बल्कि उसकी हदें भी तय हैं। पिछले दिनों विभागीय तबादलों और कार्रवाई को लेकर कई मंत्री नाराज हो गए थे। उनके अफसर ही उनकी नहीं सुन रहे थे और मंत्री को दरकिनार कर काम किया जा रहा था। जितिन प्रसाद और ब्रजेश पाठक ने तो इस पर खुल कर नाराजगी जाहिर की थी। मामला दिल्ली दरबार तक पहुंच गया था।  संदेश बहुत साफ है कि सरकार को तालमेल के साथ चलना है। मंत्रियों और अफसरों के विवाद से सरकार की छवि को बट्टा लगता है और इससे बचना होगा।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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