नई दिल्ली, 23 अगस्त ( गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : बुखार उतारने के लिए दी जाने वाली दवा- डोलो पर पैदा हुए विवाद से कई सवाल पैदा हुए हैं। आयकर विभाग ने हाल में ही इसे बनाने वाली कंपनी पर छापेमारी की और कहा कि कोरोना काल में डोलो-650 की बिक्री को बढ़ाने के लिए इसे बनाने वाली कंपनी ने डॉक्टरों को एक हजार करोड़ रुपए विभिन्न रूपों में दिए। इसके कारण इसकी बिक्री में जबरदस्त उछाल आया और बाजार में इसका मिलना भी मुश्किल हो गया था। इस मामले में अब फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका दायर की है और ऐसे मामलों पर लगाम लगाने की अपील की है। वैसे, डोलो को बनाने वाली कंपनी इन आरोपों को नकारती है।
गौरतलब है कि डोलो-650 पैरासिटामॉल है। अगर इसे 500 एमजी की डोज में बेचा जाता है तो यह दवा 2013 के ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर के दायरे में आती है और सरकार इसकी कीमत तय करती है। लेकिन 650 एमजी की डोज मूल्य नियंत्रण के दायरे में नहीं आती। सरकार ने 354 बल्क ड्रग्स और इनके संयोजन से बनने वाली करीब 650 दवाओं के रेट तय किए हुए हैं। दवा कंपनियां इनकी कीमतों में हर साल 10 प्रतिशत तक का इजाफा कर सकती हैं। ये इंतजाम सिर्फ एलोपैथी की दवाओं के लिए ही है।
लेकिन, आयुष कंपनियां बेलगाम
आयुष की दवाओं के लिए सरकार ने हेल्थ एक्टिविस्ट्स और जनता की तमाम मांगों के बावजूद ऐसा कोई इंतजाम नहीं किया है। आयुष क्षेत्र में आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी, सिद्ध और सोवारिग्पा आते हैं। इनकी दवाओं के दामों पर कोई नियंत्रण नहीं है। इसका नतीजा ये है कि हाल के सालों में इनकी कीमतों में बहुत तेजी से इजाफा हो रहा है। देश में ही नहीं, विदेश में लोग एलोपैथिक दवाओं से होने वाले नुकसान को देखते हुए आयुष की ओर आकर्षित हो रहे हैं और इसकी दवाओं की मांग बढ़ रही है। इसका फायदा उठाते हुए आयुष की दवाएं बनाने वाली कंपनियां अपनी दवाओं के दाम तेजी से बढ़ा रही हैं। खासकर आयुर्वेद और होम्योपैथी की दवाओं के दामों में हाल के सालों में बहुत तेजी आई है और धीरे-धीरे ये आम आदमी की पहुंच से दूर हो रही हैं।
लागत से तय हो दवा का दाम
भारत सरकार के आयुर्वेद के एक पूर्व सलाहकार का कहना है कि सरकार को एलोपैथी की तरह ही आयुष की दवाओं को भी मूल्य नियंत्रण के दायरे में लाना चाहिए, वरना लोग इन्हें नहीं खरीद पाएंगे और आयुष को बढ़ावा देने का सरकार का सपना धरा का धरा रह जाएगा। उनका ये भी कहना कि इनकी कीमत लागत के आधार पर तय की जानी चाहिए और कंपनी से लेकर रिटेलर तक का मार्जिन तय किया जाना चाहिए। उनका मानना है कि दवाएं लग्जरी नहीं, जरूरत हैं, इसलिए इस क्षेत्र में मनमानी कीमतों और मुनाफाखोरी को मंजूरी नहीं दी जा सकती।
उनके मुताबिक, सरकार ने दवाओं की बिक्री बढ़ाने के लिए डॉक्टरों को किसी भी रूप में रिश्वत देने पर रोक लगाई हुई है, लेकिन बावजूद इसके डोलो बनाने वाली कंपनी पर गंभीर आरोप लगे हैं। सूत्र कहते हैं कि आयुष की दवाएं बनाने वाली कंपनियां भी डीलर्स और रिटेलर्स को मोटा कमीशन देने के साथ ही ऐसे ही हथकंडे अपना रही हैं कि नहीं, इसकी भी पड़ताल जरूरी है। उनका ये भी कहना है कि कुछ सरकारी अफसरों की कृपा से इन दवाओं के दामों पर लगाम लगाने की हर कोशिश नाकाम हो जाती है।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया