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10 मिनट में डिलीवरी देने वाली कंपनियों का दम फूला… जानिए क्या है वजह..?

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए चारू ) : सुनील ओल्ड फरीदाबाद के निवासी हैं। बच्चे की फीस नहीं चुका पाए तो स्कूल से नोटिस आ गया। काफी मान-मनव्वल के बाद कुछ दिनों की मोहलत तो ले ली है, फीस भरेंगे कहां से पता नहीं। घर का किराया भी देना है। सुनील डिलीवरी सेवा देने वाली कंपनी ब्लिंकिट में काम करते हैं। कंपनी में पिछले दिनों हड़ताल चर रही थी। हालत बहुत खराब है। सुनील का कहना है कि पहले प्रति ऑर्डर डिलीवरी पर 50 रूपया कमा लेते थे, फिर कंपनी ने उसे 25 कर दिया और अब तो बात 12 –साढ़े बारह रुपए पर आ गई है। ऊपर से पेट्रोल और बाइक का खर्चा आपका। कैसे संभव है। कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी। आगे देखिए बात कितनी सुनी जाती है। सुनील बताते हैं कि पहले वे ग्रॉफर्स के साथ काम करते थे। सामान डिलीवरी में थोड़ा वक्त लगता था लेकिन हालात ठीक थे । ग्राहकों को भी अच्छी छूट मिलती थी लेकिन ब्लिंकिट के टेकओवर के बाद स्थिति खराब ही हुई। 10 मिनट में सामान पहुंचाने का दावा करने वाली कंपनी ने कर्मचारियों पर पड़ने वाले दबाव के बारे में कुछ नहीं सोचा। ग्राहकों को भी बमुश्किल 10 प्रतिशत तक छूट मिलती है। पहले यही छूट 25 से 30 प्रतिशत तक थी। यानी न ग्राहक को फायदा न कर्मचारी को।

ये कहानी अकेले सुनील की नहीं है। भारत में पिछले साल कई बड़ी कंपनियों ने दस-दस मिनट में घर के सामान और खाने की डिलीवरी वाली सेवाएं शुरू की थीं। इनमें जोमैटो जैसी स्थापित कंपनी से लेकर जेप्टो और ब्लिंकिट जैसे स्टार्टअप तक शामिल थे। लेकिन किसी भी कंपनी को अपक्षित सफलता नहीं मिली।

इसी साल जनवरी में जोमैटो ने अपनी 10 मिनट की डिलीवरी सर्विस जोमैटो इंस्टैंट को बंद कर दिया। इसका कारण रहा कि कंपनी को इस बाजार में न तो विस्तार नजर आ रहा था, न मुनाफा। हालांकि कंपनी ने कहा कि वो अपनी रिब्रांडिंग कर रही है लेकिन एक अखबार में कंपनी के एक अधिकारी के हवाले से जानकारी दी गई है कि कंपनी को ये सेवा फायदे की लग नहीं रही और इसके रोजमर्रा का खर्च निकालना भी मुश्किल साबित हो रहा है ऐसे में ये फिर शुरू होगी इसमें संदेह है।

इकोनॉमिक टाइम्स अखबार ने कुछ दिनों पहले एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें विभिन्न शहरों में 10 मिनट में डिलीवरी देने वाली सेवाओं की पड़ताल की गई थी। हालात बहुत खऱाब पाए गए। टाइम से लेकर सेवा तक कई तरह की दिक्कतें थी। जोमेटो के अलावा भी स्थानीय स्तर पर काम करने वाली सेवाएं भी बाजार में टिक पाएंगी, संदेह है।

जोमेटो ने पिछले साल गुरुग्राम में ये सेवा शुरू की थी फिर इसे बेंगलुरू में शुरू किया गया। इस बाजार के अन्य बड़े खिलाड़ियों में डुंजो भी है जो हाइपर-लोकल डिलीवरी मॉडल पर काम करती है और छोटी-छोटी जगहों से ही डिलीवरी करती है। उसकी सेवाएं बेंगुलुरू के अलावा मुंबई और दिल्ली में भी हैं और उसे गूगल व अन्य निवेशकों ने 4 करोड़ डॉलर की फंडिंग दी है। स्विगी गो और फ्लिपकार्ट क्विक जैसी सेवाएं भी उपलब्ध हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में हाल के वर्षो में ऑनलाइन डिलीवरी का बाजार बहुत तेजी से बढ़ा है और अगले दो वर्षों में इस कारोबार में 50 फीसदी से अधिक बढ़ोतरी के साथ इसके 15 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।

लेकिन, कोविड बाद के हालात में इसके लिए कई तरह की चुनौतियां भी पैदा हो गई हैं। एक कम्यूनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स की रिपोर्ट थी कि कोविड लॉकडाउन के दौरान भारत में होम डिलीवरी का बाजार 200 फीसदी बढ़ा था लेकिन कोविड के बाद बदले हालात और दुनिया भर में छाए वित्तीय संकट ने इन अनुमानों को आशंकाओं में बदल दिया है।

शेखर रामचंद्र दिल्ली में एक डिलीवरी सेवा में मैनेजर का काम देखते हैं। वे कहते हैं कि, ऐसी कंपनियों पर दबाव बहुत है। मुनाफा कम हो रहा है, लोगों का भरोसा टूट रहा है। वे डिस्काउंट भी चाहते हैं, समय पर डिलीवरी भी और क्वालिटी भी। महंगाई बढ रही है। कर्मचारियों को भी देखना है। कैसे संभव है ?  वे बताते हैं कि, आजकल रोज एक नया स्टार्ट अप नए –नए दावों के साथ बाजार में आ जाता है। कुछ दिन चलता है, नया होता है तो छूट भी देता फिर सब गायब। बिजनेस प्लान कोई होता नहीं, थोडे़ समय़ में दम छूट जाता है।

विश्व में हालात  

जर्मन समाचार वेबसाइट डी डब्लू वर्ल्ड ने इस बारे में दुनिया के हालात के बारे में एक रिपोर्ट छापी है। रिपोर्ट के अनुसार, कोविड के दौरान दुनिया भर में दस मिनट में डिलीवरी करने का आइडिया चरमराता नजर आ रहा है। कई कंपनियां जो खाने की डिलीवरी कर रही थीं, उन्होंने भी दस मिनट में डिलीवरी के वादे किए और अब वे दम तोड़ रही हैं। अभी हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में 10 मिनट में डिलीवरी का दावा करने वाली एक और स्टार्ट अप कंपनी मिल्करन बंद हो गई और उसके 400 कर्मचारी बेरोजगार हो गए। मिल्करन से पहले भी 10 मिनट में ऑर्डर डिलीवर करने वाली कई कंपनियां दीवालिया हो चुकी हैं। इनमें तीन तो ऑस्ट्रेलिया की ही स्टार्टअप कंपनियां थीं। सेंड नाम की कंपनी पिछले साल मई में बंद हुई। उसके बाद नवंबर में वोली ने दरवाजे बंद किए और इसी महीने कोलैब ने अपने आपको दीवालिया घोषित करने के लिए कागजी कार्रवाई शुरू की। इसके अलावा जर्मनी की कंपनी फूडोरा 2018 में बाजार छोड़ गई थी और ब्रिटिश कंपनी डिलीवरू ने पिछले साल ऑस्ट्रेलिया में काम बंद कर दिया।

वेबसाइट ने इस सिलसिले में न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में फाइनेंस पढ़ाने वाले एसोसिएट प्रोफेसर मार्क हंफ्री-जेनेर के शोध के हवाले से बताया है कि घर तक 10 मिनट  में सामान डिलीवरी का आइडिया दरअसल इस ख्याल से प्रेरित रहा होगा कि बाजार का विस्तार होगा और आकार बढ़ने से मुनाफा आएगा। लेकिन बहुत सारी स्टार्टअप कंपनियों को मुनाफा कमाने में वक्त लग जाता है। प्रोफेसर जेनेर के अनुसार, अमेजॉन 1994 में स्थापित हुई थी और उसे मुनाफे में आने के लिए 2003 तक का इंतजार करना पड़ा।

भारत में 10 मिनट की डिलीवरी सेवाओं के बारे में अर्थशास्त्र के प्रोफोसर रमेश आर प्रसाद कहते हैं कि, भारत में कोविड के दौरन ये सेवाएं चलीं और ऐसी कंपनियां भी खूब खुलीं। इन कंपनियों ने बड़े-बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े कर लिए। खूब भर्तियां कर लीं लेकिन शायद उन्हें बाजार का अनुमान नहीं था। जैसे कोविड का उबाल आया और चला गया वैसे ही इन कंपनियों के लिए भी उफान का दौर आया अब शायद हालात उनके पराभव के हैं।

फोटो सौजन्य –सोशल मीडिया

 

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