नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए सुहासिनी) : भारतीय सेना में नियुक्ति के लिए घोषित अग्निपथ नाम की योजना पर विवाद खड़ा हो गया है। कई पूर्व वरिष्ठ सैन्य अफसरों, राजनेताओं और रणनीतिकारों ने केंद्र सरकार की इस स्कीम का विरोध किया है। इस बीच, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में कुछेक स्थानों में युवाओं ने इस योजना के विरोध में प्रदर्शन किया है।
क्या अग्निपथ योजना ?
नरेंद्र मोदी सरकार ने ‘अग्निपथ’ नाम की योजना का एलान किया है जिसके तहत भारतीय सेना में छोटी अवधि के लिए नियुक्तियां की जाएंगी। ‘अग्निपथ’ के तहत सेना में युवाओं को चार साल तक काम करने का मौक़ा मिलेगा। इसे जवाइन करने वाले 25 फ़ीसदी युवाओं को बाद में रिटेन किया जाएगा। यानी 100 में से 25 लोगों को पूर्णकालिक सेवा का मौक़ा मिलेगा। इस योजना के तहत चार साल के लिए क़रीब 45000 युवाओं को भर्ती किया जाएगा। अग्निपथ योजना के तहत महिलाएं की भर्ती भी की जाएगी।
अग्निपथ के तहत चुने गए लोगों को अग्निवीर कहा जाएगा। इनका वेतन 40 हज़ार रुपए के क़रीब होगा। अगले 90 दिनों यानी तीन माह के अंदर अग्निपथ योजना के तहत भर्तियां शुरू हो जाएंगी। नए अग्निवीरों की उम्र साढ़े 17 साल से 21 साल के बीच होगी।
रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि, अग्निपथ’, थल सेना, वायु सेना और नौसेना में भर्ती होने के लिए एक अखिल भारतीय योग्यता-आधारित भर्ती योजना है। ये योजना युवाओं को सशस्त्र बलों के नियमित संवर्ग में सेवा करने का अवसर प्रदान करेगी। अग्निवीरों की प्रशिक्षण अवधि सहित 4 वर्ष की सेवा अवधि के लिए एक अच्छे वित्तीय पैकेज के साथ भर्ती किया जाएगा। जाएगा।
योजना के पीछे क्या है मकसद ?
इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश में बेरोज़गारी कम करने के साथ ही रक्षा बजट पर वेतन और पेंशन के बोझ को घटाना है। रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि, इस योजना के तहत सरकार पेंशन के साथ ही अन्य भत्तों पर बचत करेगी। अग्निवीरों के लिए वेतन के लुभावने मोटे पैकेज, पूर्व सैनिकों का दर्जा और स्वास्थ्य स्कीम में अंशदान की ज़रूरत नहीं होगी।
क्या हैं चिंताएं?
सेना के तमाम पूर्व वरिष्ठ अफसरों ने इस योजना पर सवाल उठाएं हैं। अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ ने इस बारे में एक विस्तृत खबर सेना के पूर्व वरिष्ठ अफसर वीरेंद्र धनोआ के ट्वीट के साथ शुरू की। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है कि, पेशेवर सेनाएं आमतौर पर रोज़गार योजनाएं नहीं चलाती…. सिर्फ़ कह रहा हूं। लेफ्टिनेंट जनरल पी. आर. शंकर ने इस योजना को ‘किंडरगार्टन आर्मी’ बताया। उन्होंने कहा कि ये योजना लाना अच्छा विचार नहीं। एक लेख में उन्होंने लिखा कि, ये योजना बिना पर्याप्त कर्मचारी और क्षमता के शुरू की जा रही है। इसके तहत कम प्रशिक्षित युवा किसी सब यूनिट का हिस्सा बनेंगे और फिर बिना किसी भावना के ये अपनी नौकरी सुरक्षित रखने की दौड़ में शामिल हो जाएंगे।
सैन्य विशेषज्ञों ने इस योजना को लेकर कई तरह की चिंताएं जाहिर की हैं।
सबसे पहली चिंता, इससे समाज के सैन्यीकरण के ख़तरे की है। यानी जब बड़ी संख्या में हथियार चलाने के लिए प्रशिक्षित किए गए युवा नौकरी की अवधि पूरी होने पर वापस लौटेंगे तब क़ानून-व्यवस्था से जुड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। अभी तक आमतौर पर एक सेहतमंद जवान 10 से 15 साल सेवा मे रहता है।
दूसरा बड़ा सवाल, इस योजना की वजह से भारतीय सेना में नौसिखिए जवानों की संख्या बढ़ जाएगी जो शत्रु देशों की ओर से मिलने वाली चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ होंगे।
अभी तक प्रशिक्षण की अवधि एक साल की है। नई योजना के तहत भर्ती होने वाले अग्निवीरों को युद्ध के मोर्चे पर भी तैनात किया जा सकता है और उनकी भूमिका किसी अन्य सैनिक से अलग नहीं होगी।
तीसरा बड़ा सवाल ये है कि इस योजना के कारण सशस्त्र बलों की सदियों पुरानी रेजिमेंटल संरचना बाधित हो सकती है।
चौथी चिंता, ठेके पर पर काम करने वाले ये सैनिक जो खुद अपने भविष्य को लेकर असुरक्षित होंगे देश के बारे में कितने समर्पित होंगे ये बड़ा सवाल होगा।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया