Homeपरिदृश्यटॉप स्टोरीजानिए, नोबेल विजेता मारक्वेज ने अपनी इस ‘गुप्त’ बेटी का नाम क्यों...

जानिए, नोबेल विजेता मारक्वेज ने अपनी इस ‘गुप्त’ बेटी का नाम क्यों रखा ‘इंदिरा’ ?

spot_img

नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) :  नोबेल पुरस्कार विजेता गैब्रिएल गार्सिया मारक्वेज जब अपनी आत्मकथा ‘गैब्रिएल गार्सिया मारक्वेज : ए लाइफ’ (1998) के बारे में इसे लिखने वाले लेखक जेराल्ड मार्टिन के साथ जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कर रहे थे तभी उन्होंने अपने जीवन से जुड़े एक गुप्त रहस्य की तरफ इशारा किया। उन्होंने कहा था कि हर इंसान तीन तरह का जीवन जीता है, सार्वजनिक, निजी और गुप्त।

नोबेल पुरस्कार विजेता मारक्वेज की ये बात खुद उनके जीवन की एक गोपनीय सच्चाई बन कर सामने आई। मारक्वेज की मौत 2014 में हुई थी। उनकी मौत के 8 साल बाद उनकी एक ऐसी संतान के बारे में पता चला जिसके बारे में सार्वजनिक तौर पर उन्होंने कभी भी कुछ भी नहीं बताया। मारक्वेज की इस गुप्त संतान का भारत से भी एक रूहानी रिश्ता रहा है।

मैक्सिको के एक अखबार ‘एल युनिवर्सल दी कार्तेजेना’ ने मारक्वेज की मौत के आठ साल बाद एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें बताया गया कि नोबेल विजेता लेखक की एक गुप्त संतान भी है और उसका नाम इंदिरा है। हालांकि इस बात की चर्चा मारक्वेज की मौत के बाद उनकी स्मृति में होने वाले आयोजनों में भी गुपचुप तरीके से होती रही थी लेकिन तब उसे सिर्फ एक अफवाह के रूप में ज्यादा जाना गया। लेकिन अखबार में जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई उसमें निकट रिश्तेदारों और मारक्वेज की आत्मकथा लिखने वाले जेराल्ड मार्टिन का हवाला भी दिया गया और उस रिपोर्ट को बाद में एसोशिएटेड प्रेस ने भी पुष्ट किया।

क्या है इंदिरा की कहानी         

हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलिट्यूड (1967 ) के लेखक गैब्रिएल गार्सिया मारक्वेज का भारत से एक रूहानी रिश्ता था। वे भारत और विशेषकर इंदिरा गांधी के नेतृत्व और साहस के कायल थे। वे 1983 में क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के साथ नई दिल्ली आए थे। इंदिरा गांधी ने इसके लिए फिदेल कास्त्रो से विशेष आग्रह किया था कि वे गुट निरपेक्ष सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए नई दिल्ली आते समय अपने साथ नोबेल विजेता मैक्सिको के गैब्रिएल गार्सिया मारक्वेज को ही लेते आएं।  मारक्वेज इस बात के कायल थे कि इंदिरा गांधी दुनिया की पहली नेता थीं जिन्होंने उन्हें नोबेल पुरस्कार जीतने पर सम्मानित करने के लिए भारत आमंत्रित किया। गुट निरपेक्ष सम्मेलन में मारक्वेज ने इंदिरा गांधी को एक देश के प्रधान के तौर पर तो देखा ही साथ ही एक विश्व नेता के रूप में उनकी समझ को भी परखा और वे उनके कायल हो गए। इंदिरा गांधी की छाप उनके मन मस्तिष्क में लगातार बनी रही।

इस बीच, इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। कुछ समय बाद, मारक्वेज के जीवन में एक और महिला का प्रवेश होता है। मैक्सिको की पत्रकार और लेखक सुजाना कातो। 1990 में इसी विवाहेत्तर संबंध के चलते मारक्वेज की एक बेटी पैदा होती है और वे उसे नाम देते हैं इंदिरा। उस बच्ची को सरनेम अपने पिता का नहीं बल्कि मां का ही मिलता है और उसका नाम पड़ता है, इंदिरा कातो। इंदिरा कातो इस समय 30 साल की हैं और ड़ॉक्यूमेंट्री बनाती हैं।  

सुजाना, मारक्वेज और इंदिरा

सुजाना कातो पेशे से पत्रकार और लेखक हैं। पहली बार मारक्वेज से उनकी मुलाकात मैक्सिको से बाहर क्यूबा के एल एंतोनियो शहर में एक लेखन कार्यशाला में हुई थी। बाद में 1996 में कातो ने कंबियन पत्रिका के लिए मारक्वेज का एक इंटरव्यू भी किया था। मारक्वेज नहीं चाहते थे कि इंदिरा के बारे में जानकारियों को साझा किया जाए। इसके बारे में उनकी सुजाना के साथ एक सहमति भी थी। हालांकि, रिपोर्ट में बताया गया है कि, मारक्वेज का परिवार इंदिरा और सुजाना के बारे में पहले से ही सब कुछ जानता था लेकिन उसने इस बारे में हमेशा खामोशी ही बरती। परिवार के निकट संबंधी ये भी बताते हैं कि मारक्वेज जीवन भर सुजाना और इंदिरा के संपर्क में रहे और वे इंदिरा को लेकर कभी-कभी बहुत भावुक हो जाया करते थे।        

इंदिरा मैक्सिको सिटी में आज भी रहती हैं। लेकिन वे आज भी अपनी मां के सरनेम से ही जानी जाती हैं। सुजाना कातो अभी भी लेखन में सक्रिय हैं और कोरोना के महामारी के दौर में उनकी दो किताबें प्रकाशित हुई हैं।

फोटो सौजन्य –सोशल मीडिया  

Print Friendly, PDF & Email
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

- Advertisment -spot_img

Recent Comments