नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : आठ अरब लोगों की दुनिया- हर किसी के लिए बेहतर भविष्य तय करने की ओर बढ़ते कदम, जहां अवसर हों, अधिकार हों और सब के पास अपनी पसंद का विकल्प हो- संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड ने इस बाद विश्व जनसंख्या दिवस पर इसी सोच को आधार बनाया है। दुनिया की जनसंख्या यहां समस्या नहीं समाधान है।
11 जुलाई को हर वर्ष विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। इस दिन को जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने का फैसला 1989 में यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम की गवर्निंग काउंसिल ने किया। था। इसके अगले साल यानी 1990 में पहली बार दुनिया के 90 देशों में विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया।
बढ़ती आबादी – दो नजरिए
दुनिया की बढ़ती आबादी को दो नजरिए से देखा जाता है। एक नजरिया इस सोच का है कि बढ़ती आबादी पहले से स्वस्थ, दीर्घजीवी और कार्यशील इंसानी समाज के वजूद के विकास की कहानी है जबकि दूसरा नजरिया बढ़ती आबादी को संसाधनों पर एक बोझ के रूप में देखता है।
अभी हाल-फिलहाल दुनिया की आबादी को लेकर कई तरह की चर्चाएं और विचार समाने रखे गए। एक सवाल ये भी उठा कि क्या वास्तव में दुनिया की आबादी बढ़ रही है या इसे सिर्फ आंकड़ों का खेल समझा जाए ? अगर तथ्यों की तरफ देखा जाए तो वास्तव में अब दुनिया के तकरीबन सभी देशों में आबादी की रफ्तार मंद पड़ चुकी है लेकिन इसे स्थिर होने और फिर कम होने में वक्त लगेगा। यूरोप के कुछ देशों में ये कम हो रही है लेकिन भारत जैसे देश में रफ्तार घटने के वाबजूद इसे स्थिर होने और फिर घटने में वक्त लगेगा।
वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स, 2019 के मुताबिक़, दुनिया की कुल आबादी में 60 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी एशिया की है। चीन और भारत दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश हैं। अनुमान के मुताबिक़, 2027 के आसपास आबादी के मामले में भारत, चीन को पीछे छोड़ देगा और दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। इस वक्त चीन की आबादी क़रीब 1 अरब 44 करोड़ है जबकि भारत की आबादी 1 अरब 40 करोड़ के आसपास है।
11 जुलाई 1987 को दुनिया की आबादी जब 5 अरब तक पहुंची तभी पहली बार बढ़ती जनसंख्या से जुड़े मुद्दों के अलावा पर्यावरण और विकास पर इसके असर को लेकर दुनिया भर के लोगों को जागरूक करने की ज़रूरत महसूस हुई। इसी को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत की।
यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड का कहना है कि विश्व जनसंख्या दिवस को मानवीय प्रगति के जश्न के तौर पर मनाया जाना चाहिए क्योंकि तमाम चुनौतियों के बावजूद दुनिया में इस वक्त, इतिहास के किसी भी दौर के मुक़ाबले ज्यादा उच्च शिक्षित और सेहतमंद लोग रहते हैं। फंड का कहना है कि, जनसंख्या को समस्या नहीं समाधान के तौर पर देखा जाना चाहिए।
आंकड़ों के मुताबिक़, दुनिया की कुल आबादी आठ अरब के आसपास है। इसमें 65 प्रतिशत आबादी 15 से 64 साल की उम्र के लोगों की है। 65 साल से ऊपर के लोगों की कुल 10 प्रतिशत और 14 साल से कम उम्र के लोगों की 25 प्रतिशत हिस्सेदारी है। आबादी को देखते हुए आंकडे भी बड़े दिलचस्प हैं। दुनिया की आबादी एक अरब तक पहुंचने में लाखों साल लग गए। लेकिन एक अरब से सात अरब तक पहुंचने में सिर्फ 200 साल ही लगे। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2100 तक दुनिया की आबादी करीब 11 अरब पहुंच जाएगी।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इस तरह की जनसंख्या वृद्धि के पीछे लोगों का दीर्घ जीवन, प्रजनन दर में बदलाव और शहरीकरण जैसे कारण हैं। पिछले कुछ दशकों में प्रजनन दर और लोगों के जीवन प्रत्याशा में भारी बदलाव देखने को मिले हैं। 1970 के दशक की शुरुआत में औसतन प्रति महिला 4.5 बच्चों का औसत था जो 2015 तक 2.5 बच्चों से भी कम हो गया।
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