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अफसरों-नेताओं पर योगी की अच्छी पहल…सवाल, क्या सचमुच में सूरत बदलेगी ?

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लखनऊ (गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र) : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने निर्देश दिया है कि तीन महीने के भीतर राज्य के सभी आईएएस / आईपीएस और पीसीएस अफसर और उत्तर प्रदेश सरकार के सभी मंत्री अपनी और अपने परिवार के सभी सदस्यों की चल और अचल संपत्ति का ब्यौरा सौंपे। ये ब्यौरा ऑनलाइन होगा और इसे आम लोग भी देख सकेंगे। ये ब्यौरा उन्हें हर साल देना होगा।

मुख्यमंत्री सचिवालय की तरफ से जारी बयान में स्पष्ट किया गया है कि, मुख्यमंत्री का ये आदेश उत्तर प्रदेश सरकार की भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस नीति का हिस्सा है और इस पर सख्ती से अमल की अपेक्षा की गई है। आदेश में ये भी कहा गया कि, मंत्रियों के कामकाज में परिवार के सदस्यों की दखलदांजी नहीं होनी चाहिए और इसे बरदाश्त नहीं किया जाएगा।

क्यों है ये फैसला खास ?

अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों के भारत सरकार के कार्मिक और लोक शिकायत विभाग को हर साल अपनी संपत्ति का ब्यौरा सौंपना होता है जिसे सार्वजनिक भी किया जाता है। लेकिन ब्यौरे को सार्वजनिक करने के बारे में सरकार की कोई प़लिसी नहीं है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ की सरकार ने एक नई पहल ये की है कि इसमें अफसरों के साथ उनके परिजन जिसमें बेटे- बेटी और बहू शामिल हैं को भी इस दायरे में शामिल किया गया है। इसके अलावा. मंत्रियों की संपत्ति की घोषणा सार्वजनिक पटल पर अपने आप में एक नई पहल है। ब्यौरे को ऑनलाइन दाखिल करना और उस तक आमजन की पहुंच भी एक नई बात है।

मुख्यमंत्री की इस घोषणा के बाद ट्विटर पर कई यूजरों ने इसका स्वागत किया तो कुछ ने  इस पर तंज भी कसा। एक यूजर ने सुझाव दिया कि, मुख्यमंत्री जी, अफसरों और नेताओं की अधिकतर संपत्तियां बेनामी होती हैं। आपने परिजनों की संपत्ति का ब्यौरा मांगा लेकिन उसका क्या जो बेनामी है। एक हेल्पलाइन नंबर दीजिए जिस पर ऐसी जानकारी आम लोगों से मांगिए, फिर देखिए क्या होता है।

एक दूसरे यूज़र ने लिखा कि, लोकसेवक के साथ जनसेवक की संपत्ति का ब्यौरा मांगना पहल को अच्छी है लेकिन इस पर प्रभावी अमल हो पाएगा इस पर शक है। नियम तो पहले भी बहुत बने हैं, पर हुआ क्या ?

अतीत समझना भी जरूरी

2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों से अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने की अपील की थी। केंद्र सरकार ने बाकायदा इसके लिए एक प्लेटफॉर्म भी तैयार कराया था। इस घोषणा के पांच साल बीत जाने के बाद भी देश में सैकड़ों ऐसे अफसर हैं जिन्होंने संपत्ति का ब्यौरा नहीं सौंपा। ऐसे करीब 567 अफसरों की सूची केंद्र सरकार के पास मौजूद है जिन्होंने अपनी संपत्ति  का ब्यौरा नहीं सौंपा है।

कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, बड़ी संख्या में आईएएस अधिकारी हर साल अचल संपत्ति से संबंधित रिटर्न (आईपीआर) दाखिल नहीं कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में 135 आईएएस ने आईपीआर जमा नहीं कराई। 2019 में ऐसे अधिकारियों की संख्या 128,  2020 में 146 आईएएस और 2021 में 158 आईएएस ने आईपीआर फाइल करने से पूरी तरह गुरेज किया। खास बात ये है कि सीधी भर्ती से आईएएस में आए अधिकारी भी आईपीआर भरने से बच रहे हैं। दो साल से अधिक समय तक आईपीआर नहीं दाखिल करने वाले अफसरों की संख्या 64 रही है। तीन साल से जिन आईएएस ने आईपीआर नहीं भरी उनकी संख्या 44 है। तीन साल से ज्यादा समय तक आईपीआर भरने से बचने वाले लोकसेवकों की संख्या 32 है।

संपत्ति का ब्यौरा सौंपने में आनाकानी करने वाले अफसरों में उत्तर प्रदेश और बिहार के अफसर सबसे ज्यादा है। जानकारी के अनुसार, यूपी के करीब 100 आईएएस और आईपीएस अफसर ऐसे हैं जिनका प्रमोशन संपत्ति का ब्यौरा न सौंपने के कारण खटाई में पड़ सकता है।

आपको बता दें कि, भारत सरकार के कार्मिक विभाग के नियमों के अनुसार, हर साल 31 जनवरी तक आईएएस और आईपीएस अफसरों को डीओपीटी को अपनी संपत्ति का ब्यौरा जमा करना होता है। इस बारे में विभाग की तरफ से सभी राज्यों के मुख्यसचिवों के अलावा केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के सचिवों को पत्र लिख कर उनसे इसका अनुपालन करवाने का आग्रह भी किया जाता है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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