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एआई के दौर में नवप्रवर्तन….

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अमेरिकी वक्ता माइकल शे आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस एवं साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ हैं। उन्होंने मशीन लर्निंग के रुझानों और उनसे अमेरिका-भारत के बीच सहयोग को विस्तार देने एवं व्यापक सामाजिक हित में उसकी भूमिका के बारे में चर्चा की।

गिरिराज अग्रवाल 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) विशेषज्ञ माइकल शे स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल सिक्योरिटी एंड कोऑपरेशन में एक नॉन रेजिडेंट फेलो हैं जहां वे सार्वजनिक हित से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर प्रौद्योगिकी के प्रभाव पर केंद्रित काम करते हैं। शे क्वांटम कंप्यूटेशन के विशेषज्ञ होने के अलावा साइबर सिक्योरिटी  एवं मशीन लर्निग के साथ अर्थव्यवस्था और एआई पर उसके प्रभाव का अध्ययन करते हैं। पहले उन्होंने ट्रांसफॉर्मेटिव साइबर इनोवेशन लैब के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर एवं डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी में एक प्रोग्राम मैनेजर के रूप में काम किया है। यह अमेरिकी रक्षा विभाग की एक ऐसी एजेंसी है जो सैन्य उपयोग से संबंधित उभरती तकनीकों के विकास के लिए जिम्मेदार है।

अनुसंधान, राष्ट्रीय सुरक्षा और उभरती हुई प्रौद्योगिकियों के बीच उनका काम वैश्विक स्तर पर प्रौद्योगिकी साझेदारी के बारे में एक मूल्यवान नजरिया सामने रखता  है। फरवरी 2025 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका-भारत ट्रस्ट (ट्रांसफॉर्मिंग फॉर रिलेशनशिप यूटिलाइजिंग स्ट्रैटेजिक टेक्नोलॉजी) पहल की शुरुआत की घोषणा की।  इस महत्वपूर्ण  प्रयास का उद्देश्य सरकार-से-सरकार के बीच, शैक्षणिक एवं निजी क्षेत्रों के बीच एआई समेत महत्वपूर्ण उभरती प्रौद्योगिकियों में सहयोग के लिए उत्प्रेरित करना है। ट्रस्ट के केंद्रीय स्तंभ के रूप में इन नेताओं ने, इस वर्ष के अंत तक एआई अवसंरचना में तेजी लाने के लिए एक अमेरिका -भारत रोडमैप विकसित करने की प्रतिबद्धता जाहिर की।

साइबर  सुरक्षा नीति और एआई नवप्रवर्तन में शे की पृष्ठभूमि ट्रस्ट पहल के उद्देश्यों के साथ निकटता से जुड़ी हुई है। सरकार, अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम करने का उनका अनुभव उन्हें इस बात के मूल्यांकन के लिए उपयुक्त बनाता है कि अमेरिका-भारत सहयोग से, अत्याधुनिक एआई विकास, डेटा गवर्नेंस एवं सीमाओं के परे नवप्रवर्तन में मदद मिल सकती है।

प्रस्तुत है उनसे साक्षात्कार के अंश :

अमेरिका और भारत के बीच कौन से संभावित एआई सहयोग दोनों देशों को और मजबूत कर सकते हैं?

प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी के रूप में अमेरिका और भारत को जो चीज अलग करती है, वह है बुनियादी अनुसंधान और विकास में उनकी असाधारण ताकत। हाल ही में एक प्रमुख अमेरिकी एआई विशेषज्ञ ने कहा था कि अधिकांश उपलब्ध डेटा पहले ही उपयोग हो चुका है और भविष्य की सफलताओं के लिए नए मौलिक विचारों की आवश्कता पड़ेगी। ऐसी स्थिति में नवाचार को उन्नत अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं द्वारा बढ़ावा दिया जाना चाहिए- यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें अमेरिका और भारत दोनों ही उत्कृष्ट हैं। उनके बीच सहयोग के मजबूत होने से एक सहक्रिया के रूप में दो और दो पांच  का प्रभाव पैदा हो सकता  है जिसमें संयुक्त प्रयास उनके हिस्से के योग से अधिक नतीजे दे सकते हैं।

दोनों देशों ने एआई को लेकर जो पहलें की हैंउनके बारे में आपके क्या विचार हैं?

अमेरिका-भारत सहयोग का एक खास फायदा यह है कि समय के साथ इसमें और अधिक गहराई आने की संभावना है। दोनों देशों के लोगों के बीच मजबूत आपसी संबंध हमारे मजबूत सहयोग के आगे बढ़ाने वाले कारकों में से एक हैं। हम विचारों का आदान-प्रदान करते हैं और अपनी नवाचार संपत्तियों का लाभ उठाते हैं। 20वीं सदी की तकनीक का इतिहास दर्शाता है कि महान प्रगति संयोग से नहीं होती। उदाहरण के लिए इंटरनेट की शुरुआत अमेरिकी रक्षा विभाग की परियोजना के रूप में हुई थी। मौजूदा समय के कई एआई मॉडल तमाम दूरदर्शी सरकारी नीतियों पर केंद्रित निवेश के कारण आए हैं। इस संदर्भ में अमेरिका और भारत दोनों ही देश, इस क्षेत्र में अनुयायी होने के बजाए विश्व का नेतृत्व करने के महत्व को पहचानते हैं।

थिंक टैंक फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज़ में साइबर इनेबल्ड इकोनॉमिक वॉरफेयर एडवाइज़री ग्रुप के हिस्से के रूप में आपने किस तरह की पहलें कीं?

उस समय- और आज भी यही सच है कि- हमने माना कि आर्थिक सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रमुख घटक है। हाल के समय के और ऐतिहासिक, दोनों ही तरह के साक्ष्य बताते हैं कि सबसे उन्नत तकनीकी शक्ति अक्सर भू-राजनीति में अग्रणी होना होती है। 21 सदी में अमेरिका उन प्रतिस्पर्धियों की चुनौतियों का सामना कर रहा है जो तेजी के साथ नवाचार कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य रचनात्मकता के साथ ऐसी चुनौतियों का सामना करने का था। हमने यह सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी. निवेश और राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों में तालमेल बैठाया ताकि अमेरिका अपनी तकनीकी बढ़त को बरकरार रख सके।

भारत में एआई जिस तरह के अवसर प्रस्तुत करता है, उसके बारे में विभिन्न श्रोता समूहों के साथ हुए आपके संवाद के अनुभव को क्या आप साझा कर सकते हैं?

मुझे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान सहित शीर्ष तकनीकी विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ बातचीत करने का सौभाग्य मिला। यह एक रोमांचक अनुभव था, क्योंकि विज्ञान की सार्वभौमिकता ही इसे इतना सम्मोहक बनाती है। मुझे भारत के रचनात्मक समुदाय के सदस्यों के साथ बातचीत करने का भी मौका मिला, जो उतना ही दिलचस्प था। दिल्ली पहुंचने से पहले मुझे जयपुर की कुछ उल्लेखनीय वेधशालाओं और शाही महलों का दौरा करने का सौभाग्य मिला। सबसे खास बात यह थी कि यहां के शासकों ने न केवल ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए बल्कि ब्रह्मांड के मूलभूत सत्यों का पता लगाने के लिए भी राज्य के संसाधनों का इस्तेमाल किया। ये राजा, एक खगोलशास्त्री भी थे और उन्होंने ऐसे उपकरण बनाए जो दो सेकंड तक की सटीकता के साथ समय को मापने में सक्षम थे।

तकनीकी विद्यार्थियों और एआई इनोवेटर्स के साथ आपकी परिचर्चा के दौरान आपसे किस तरह के सवाल पूछे गए

तकनीकी विद्यार्थियों ने एआईकी वजह से नौकरियों पर पड़ने वाले असर से संबंधित स्वाभाविक चिताओं को व्यक्त किया। हमने एआई विकास की तेज गति पर चर्चा की, जो इतनी तेजी से आगे बढ़ी है कि सिर्फ एक साल पहले तक, मैं उच्च गुणवत्ता वाले कंप्ययूटर कोड लिखने की एआई की क्षमता को लेकर शंकालु था। हालांकि, पिछले तीन से छह महीनों ने यह दिखाया है कि यह क्षेत्र कितनी तेजी से विकसित हो रहा है और इसी के चलते मुझे अपने नजरिए की समीक्षा करनी पड़ी है। निवेशक और नवाचार समुदाय के सहकर्मी और संपर्क मुझे बताते हैं कि 20 वीं सदी में जूनियर सॉफ्टवेयर डवलपर जैसी भूमिका जो अस्तित्व में थी, बहुत संभव है कि वैसी न रहे।  भविष्य के सॉफ्टवेयर डवलपर पारंपरिक कोड लिखने के बजाए एआई प्रणालियों के प्रशिक्षण पर ज्यादा समय खर्च करेंगे।

एक सकारात्मक बात ये है कि एआई बहुत से नीरस कामों को संभाल सकता है जिससे लोगों को अपने काम में अधिक रचनात्मक और अभिव्यंजक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी। मुझे विश्वास है कि ऐसा काम जिसमें तर्क की ज़रूरत होती है और जिसे मशीन अच्छे से कर सकती है उसकी शक्ल 21वीं सदी में पहले से बहुत अलग होने वाली है।

(साभार: स्पैन)

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