नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : सरकार ने एक बार फिर फिक्स डोज कॉम्बिनेशन (Fixed Dose Combinations या FDC) दवाओं पर प्रतिबंध लगाया है। इस बार ऐसी 156 दवाओं पर बैन लगाया गया है और देश में इनके उत्पादन, बिक्री और स्टोरेज पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। वैसे, आशंका जताई जा रही है कि कहीं एक बार फिर इस तरह का बैन एक मजाक बनकर न रह जाए। सरकार इससे पहले भी ऐसी दवाओं पर प्रतिबंध लगा चुकी है, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया। इस बार जिन दवाओं पर बैन लगाया गया है, उनको बनाने वाली कंपनियों को अगर अदालत से राहत मिल जाती है तो सरकार की कवायद एक बार फिर बेकार जाएगी।
एंटीबायोटिक्स से लेकर बुखार तक की दवाएं
इस बार जिन दवाओं पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें एंटीबायोटिक्स से लेकर कई तरह के संक्रमण, खांसी, बुखार, एलर्जी की दवाओं के साथ ही कई मल्टी विटामिन्स शामिल हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के ड्रग टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड ने इन दवाओं को सेहत के लिए खतरनाक मानते हुए इन पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। सरकार इससे पहले 2018 में 328 FDC पर रोक लगा चुकी थी। इस बार भी यह रोक हेल्थ एक्टिविस्ट्स की मांग पर लगाई गई है। पिछली बार जब यह रोक लगाई गई थी तो कई दवा कंपनियां इसके खिलाफ शीर्ष अदालत में चली गईं थीं। उनका कहना था कि सरकार ने मनमाने तरीके से इन पर रोक लगाई है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। अदालत ने तब कई दवाओं को प्रतिबंध से मुक्त कर दिया था।
क्या हैं FDC दवाएं
FDC वे दवाएं होती हैं, जिन्हें एक से ज्यादा दवाओं को मिलाकर बनाया जाता है। मिसाल के तौर पर पैरासिटामॉल और एस्पिरिन दो अलग-अलग दवाएं हैं। इन्हें मिलाकर अगर कोई नई दवा बनाई जाती है तो उसे FDC कहा जाएगा। देश में ऐसी दवा को एक नई दवा माना जाता है। इसके उत्पादन और बिक्री के लिए भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल (डीसीजीआई) की मंजूरी जरूरी होती है। नई दवा होने के कारण इसका क्लिनिकल ट्रायल होना चाहिए और दवा की दक्षता और सेफ्टी भी साबित होनी चाहिए। लेकिन आरोप है कि राज्यों ने इस नियम की अनदेखी करते हुए मनमाने तरीके से हजारों FDC को बाजार में उतारने की अनुमति दे दी। आरोप है कि भारत में ये दवाएं बिना ठोस रिसर्च के बनाई जा रही हैं।
कैसे टूटी नींद
भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल की नींद इस मामले में पहली बार तब टूटी जब हेल्थ वर्कर्स के साथ ही स्वास्थ्य मामलों की संसदीय समिति ने FDC के मामले में कड़ा रुख अपनाया और इन्हें अवैज्ञानिक करार देने के साथ ही सेहत के लिए खासा खतरनाक बताया। उसका यह भी कहना था कि कई कॉम्बिनेशंस में तो एक से ज्यादा एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया गया है, जो कि बैक्टीरिया और वायरस में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध बढ़ा सकता है। उसका यह भी कहना था कि अवैज्ञानिक तरीके से बनाई जा रही दवाओं का सेवन करने से देश में बैक्टीरिया और वायरस के खिलाफ प्रतिरोध बढ़ रहा है। दवाएं अपना काम करने में नाकाम होती जा रही हैं। इसके बाद ही ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफिस ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए दवा कंपनियों को नोटिस भेजने शुरू किए और इस पूरे मामले की जांच शुरू कर दी। इस सिलसिले में एक पैनल का गठन भी किया गया।
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