नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : हाल के सालों में विभिन्न तरह के प्रचार माध्यमों में ऐसे बेसिर पैर के विज्ञापनों की बाढ़ आ गई है, जिनमें हर्बल दवाओं से कैंसर, डायबिटीज, दिल के रोगों, मोटापे, गंजेपन और इनफर्टिलिटी आदि के इलाज का दावा किया जाता है। कई में तो सरकारी संस्थानों की संस्तुति का भ्रामक दावा तक किया जाता है।
कमाई का धंधा
कुल मिलाकर इन विज्ञापनों के जरिए करोड़ों रुपये की कमाई की जा रही है। 1954 का ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट इस तरह के विज्ञापन देने की इजाजत नहीं देता। बावजूद इसके इस तरह के विज्ञापन देने का सिलसिला जारी है। इस मामले में कोई कड़ी कार्रवाई न होने से इस तरह के विज्ञापनों की अब सोशल मीडिया और इंटरनेट पर भी बाढ़ आ गई है।
इसी तरह के विज्ञापनों पर हाल में ही एक कंपनी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया था और उससे अपने सभी विज्ञापन और इनसे संबंधित उत्पाद वापस लेने और माफी मांगने को कहा था। कोर्ट ने सरकार से मामले की छानबीन के साथ ही स्पष्ट नीति बनाने को भी कहा।
सरकार का बेतुका जवाब
केंद्र सरकार का कहना है कि पिछले छह साल के दौरान राज्य सरकारों से इस तरह के विज्ञापनों के मामले में 38539 शिकायतें की गई हैं। यह बड़ा आंकड़ा है,.मगर सरकार का कहना है कि ये शिकायतें गंभीर प्रकृति की नहीं हैं और जिन उत्पादों के बारे में शिकायतें की गई हैं, उनसे किसी की जान नहीं गई। सरकार का यह जवाब दिलचस्प है। यानी जान नहीं भी गई, तो भी उपभोक्ता को भ्रमित तो किया ही गया। उसे कोई फायदा नहीं हुआ और उसका पैसा तो बर्बाद हुआ ही। सरकार का कहना है कि देश में कोविड फैलने के बाद इस तरह के भ्रामक विज्ञापनों में तेजी आई।
भ्रामक विज्ञापनों पर चेतावनी
कुछ अर्सा पहले आयुष मंत्रालय के बाद सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन ने देसी दवाओं के भ्रामक विज्ञापन देने वालों को कड़ी चेतावनी दी थी। उसने आयुर्वेद, यूनानी और सिद्ध पद्धति के डॉक्टरों से कहा कि अगर वे ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल पाए गए तो उनका रजिस्ट्रेशन कैंसल किया जा सकता है। काउंसिल ने सभी राज्यों के रजिस्ट्रेशन बोर्ड्स और आयुष अधिकारियों से इस तरह के विज्ञापनों पर कड़ी नजर रखने को कहा है। काउंसिल ने कहा कि वह अब खुद भी इस तरह के विज्ञापनों पर नजर रखेगी।
आयुष मंत्रालय की पहल
आयुष मंत्रालय ने भी इस तरह के विज्ञापनों को रोकने के लिए पहल की है। उसने एडवरटाइजमेंट स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया से इस बाबत एक करार किया है। मंत्रालय ने लोगों से कहा है कि वह किसी भी भ्रामक विज्ञापन के बारे में उससे शिकायत कर सकते हैं। वह इस तरह के मामलों को इस काउंसिल के सामने रखेगा और इन्हें रोकने के प्रयास करेगा। उसने दवा कंपनियों और डॉक्टरों से भी ऐसे विज्ञापन न देने को कहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को इस तरह के विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए सख्त सजा और जुर्माने का प्रावधान करना होगा। सिर्फ चेतावनी देने या हल्की-फुल्की कार्रवाई करने से लोगों को ठग रही कंपनियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा और लोग लुटते रहेंगे।
फोटो सौजन्य-सोशल मीडिया