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राहुल की टीशर्ट और मोदी की जैकेट..स्टाइल तो है ही, रंगों के पीछे का दर्शन अलग

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : राजनीति में रंगों का खेल निराला है ठीक वैसे ही जैसे नेता रंग बदलने में माहिर होते हैं। गिरगिटान भी शायद शर्मा जाए। लेकिन आज गणतंत्र भारत नेताओं के इस रंग की बात नहीं करने जा रहा। आज बात राजनीति और राजनीति के नायकों के साथ जुड़े रंगों पर होगी।

राहुल गांधी हमेशा सफेद रंग की टीशर्ट ही क्यों पहनते हैं? 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के साथ राहुल ने जो सफेद टीशर्ट पहनी तो जाड़ा-गर्मी बरसात उसे उतारने का नाम ही नहीं ले रहे। ऐसा क्यों?  दरअसल, राहुल की इस सफेदी के पीछे उनकी और कांग्रेस की सोच का दर्शन है। सफेद रंग महात्मा गांधी के समय से ही कांग्रेस की पहचना बन गया। पहले गांधी की चरखा खादी और बाद में मशीनों से तैयार खादी। इस खादी को भारत की राजनीत में हर किसी ने अपनाय़ा बस उसमें कुछ नया जोड कर अपनी पहचान को अलग रंग देने की कोशिश की। सफेद रंग शांति और समावेशिता का प्रतीक है और राहुल ने सफेद टीशर्ट के जरिए बदलते समय के अनुरूप समावेशिता और शांति की जरूरत के साथ पारदर्शिता को एक नई पहचान दी है।

नेहरू के समय को लीजिए। नेहरू जैकेट तो अलग ब्रांड ही था। नरेद्र मोदी ने भी नेहरू की तर्ज पर जाकर एक खास तरह की जैकेट पहनना शुरू किया जिसे अब मोदी जैकेट नाम दिया गया। फर्क ये हैं नेहरू की जैकेट सफेद रंग की थी जबकि मोदी ने इसमें केसरिया तड़का लगाया। समाजवादियों ने लाल टोपी लगाई तो ममता दीदी ने सफेद साड़ी पहनी और वह भी नीले बॉर्डर के साथ। आरएसएस ने काली टोपी लगाई तो मुस्लिम संगठनों और कट्टरपंथी लाइन लेने वाले मुस्लिम नेताओं ने भी काली टोपी पहन ली।

अब बात राजनीतिक दलों के रंग प्रेम की करते हैं। केसरिया रंग बीजेपी और हिंदुत्व की पहचान बन गय़ा है। बीजेपी ने इस रंग को उठाने के पीछे शौर्य और बलिदान का दर्शन समझाया। वैसे शिवाजी ने भी मुगलों के खिलाफ मोर्चा लेते हुए मराठा साम्राज्य की पहचान को केसरिया झंडे से जोड़ा।

वामपंथी पार्टियों ने लाल रंग अपनाया और उसे क्रांति और प्रतिरोध से जोड़ा। वाम दल इसे मजदूरों के खून से भी जोड़ते हैं। समाजवादी पार्टी भी लाल और हरा रंग अपनाती है। पार्टी लाल रंग को जीवन के प्रतीक और हरे रंग को किसानों से जोड़ कर देखती है।

तमिलनाडु में द्रविण मुन्नेत्र कजगम अपने झंडे पर काला और लाल रंग रखती है। पार्टी का कहना है कि काला रंग गुलामी का प्रतीक है जबकि लाल रंग आजादी और संपन्नता की निशानी है।

जेडीयू, आरएलडी और आरजेड़ी ने अपने झंडों पर हरे रंग को रखा है जो उनकी नजर में खेतों और किसानों के अलावा ग्रामीण भारत का भी प्रतीक है। वैसे हरा रंग एआईएमआईएम और आईयूएमएल के झंड़ों पर भी प्रमुखता से है और इस रंग को एक मुस्लिम पहचान से जोड़ कर देखा जाता है।

बीआरएस (भारतीय राष्ट्रवादी समिति) के झंड़े का रंग गुलाबी है। पार्टी इसे सफेद और लाल रंग का मिश्रण बताती है। पार्टी का तर्क है कि सफेद रंग गरिमा और पारदर्शिता  का प्रतीक है जबकि लाल रंग उसके जुनून का।

तेलुगू देसम पार्टी को लीजिए, उसके झंडे का रंग पीला है। पार्टी का कहना है कि, पीला रंग उम्मीद और आशाओं का प्रतीक है। पार्टी का कहना है कि, ये रंग कृषि, ताकत और पिछड़े वर्ग के विकास से जुड़ा  है।

इसी कड़ी में नीले रंग की कहानी भी जान लेते हैं। पंजाब में अकाली नीली पगड़ी पहनते हैं जिसे सिख धर्म के त्याग और शौर्य का  प्रतीक बताया जाता है। उत्तर प्रदेश में बहन मायावती की पार्टी बहुजन  समाज पार्टी ने इस रंग को दलित अस्मिता के  साथ जोड़ कर एक नई पहचान दी है।

फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया       

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