Homeअंदरखानेफुटपाथ और सड़कों पर पसरे बाजार की निगरानी जरूरी

फुटपाथ और सड़कों पर पसरे बाजार की निगरानी जरूरी

spot_img

नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष बहुगुणा )

हमारे देश में खाद्य पदार्थों में मानक तय करने के लिए खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण बाजार ( FSSAI )  की स्थापना की गई है।इस संस्था का काम खाने पीने की चीजों के मानक तय करना और उन पर निगरानी रखना है। अब तक प्राधिकरण ने 13000 खाद्य वस्तुओं के मानक निर्धारित कर दिए हैं। मिलावट रोकने की दिशा में इस प्राधिकरण की तरफ से कई कदम उठाए गए हैं और उठाए जा रहे हैं। अभी हाल ही में इस प्राधिकरण ने अपनी स्थापना के 10 वर्ष पूरे किए हैं। इस मौके पर प्राधिकरण ने खाद्य सुरक्षा और मानकों के लिए 10 किस्म की पहल शुरू करने का संकल्प लिया है जिसे 10 @ 10 का नाम दिया गया है। ग्राणतंत्र भारत की टीम ने प्राधिकरण के पूर्व चेयरमैन श्री आशीष बहुगुणा के एक साक्षात्कार के मुख्य अंशों को संपादित किया है। 

खाद्य सुरक्षा को लेकर ग्रामीण उपभोक्ता पत्रिका ने एक सर्वेक्षण कराया था। इस सर्वोक्षण में कई चौंकाने वाले नतीजे मिले। उनमें से एक ये भी है कि एफएसएसएआई संस्था के बारे में ही बहुत कम लोगों को पता है। शहरों में तो तब भी लोग कुछ- कुछ इसके बारे में जानते हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में तो लोगों को बहुत ही कम जानकारी है ?

एफएसएसएआई  एक्ट नया है साथ ही ये संस्था भी नई है जिसकी वजह से लोगों में इसके बारे में जानकारी कम है। ऐसा भी नहीं है कि लोगों को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है। जरूरत इस बात की है कि इसे कैसे व्यापक पैमाने पर एक सकारात्मक रुख के साथ लोगोंतक पहुंचाया जा सके।अब आप देखिए कैसे कंपनियों मे ये होड़ लगी है कि हम एफएसएसएआई के स्टैंडर्ड को पूरा करते हैं।साफ जाहिर होता है कि उन्हें हम पर पूरा भरोसा है। उपभोक्ता से भी पहले इसके बारे में व्यापारी को पता होना चाहिए। वैसे तो व्यापारी जगत में सभी को पता है लेकिन ग्रामीण उपभोक्ताओं तक हम अभी नहीं पहुंच पाए हैं। जितनी जागरूकता होनी चाहिए उतनी हम अभी नहीं पहुंचा पाए हैं। 

खाने पीने की चीजों में मिलावट एक बड़ी समस्या है। व्यापारी ज्यादा से ज्यादा मुनाफे के चक्कर में मिलावट और दोयम दर्जे का उत्पाद लोगों तक पहुंचा रहे हैं। ये एक बड़ी चुनौती है। कैसे निपट रहे हैं ?

ग्रामीण इलाकों में अभी भी ज्यादातर खुली वस्तुएं खरीदी बेची जाती हैं। ऐसी वस्तुओं पर निगरानी रखना थोड़ा मुश्किल है। इसके लिए जरूरी है कि उपभोक्ताओं के साथ-साथ बेचने वालों को भी जागरूक किया जाए। खाद्य पदार्थों को हम दो भागों में बांट सकते हैं। पहला, तो वो जो किसान पैदा करता है। अगर वो स्वयंइसे उपयोग में लाता है तो हमारे दायरे में नहीं आता लेकिन जैसे ही वो इसे बेचता है तभी वो हमारे स्टैंडर्ड का पालन करने के लिए बाध्य है। इस व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्कता है। सभी लोगों को ये जानना होगा कि इसके क्या फायदे हैं और क्य़ा नुकसान हैं और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं।हमें कई विभागों से मदद की जरूरत है। हमारा यही प्रयास है या कहें कि मिशन है कि सबको पौष्टिक और शुद्ध चीजें मिलें।

फिर भी कोई ऐसी बड़ी चुनौती या समस्या जिसके लिए ठोस प्रयास की जरूरत नजर आती है ?

अपने देश में जिस तरह से खाद्य पदार्थों का फैलाव हो रहा है स्वच्छ और पौष्टिक खाद्य पदार्थ सबको मिले हमारी यही कोशिश है। इसके लिए निरंतर प्रयास और सुधार की जरूरत है। सबसे बड़ी समस्या आज हमारे खाद्य पदार्थों के 90 प्रतिशत विक्रेताओं का असंगठित होना है। उनकी कोई एक पहचान नहीं है। इसकी वजह से खाद्य पदार्थों में मिलावट गंभीर समस्या बनी हुई है। हम कार्रवाई उस पर ही कर सकते हैं जिसका कोई पता ठिकाना हो, कहीं कोई पंजीकरण हो। ये विक्रेता आज यहां कल वहां काम करते हैं। इनके नियमन की जरूरत है। साथ ही जरूरत इस बात की भी है कि किस पदार्थ में क्या मिलावट होती है उसकी समझ लोगों में विकसित की जा सके। खाद्य सुरक्षा हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। हमारा मानना है कि स्टैंडर्ड में सबकुछ ठीक है, लेकिन देश के हालात के हिसाब से स्टैंडर्ड बनें तो बेहतर होगा। अब देखिए हमारे स्वास्थ्य के लिए सबसे जरूरी चीज है पानी। लेकिन पानी एफएसएसएआई एक्ट से बाहर है। सबसे ज्यादा बीमारियां दूषित पानी की वजह से होती हैं। हमारे प्रधानमंत्री स्वच्छता अभियान चला कर एक अच्छा काम कर रहे हैं क्योंकि स्वच्छता सबसे जरूरी  है। सच तो ये है कि हम खुद को साफ रखने के महत्व को अच्छी तरह से नहीं समझ रहे हैं। हम सबको मिल कर अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी।

अगर आंकड़ों पर जाएं तो देखेंगे कि मिलावट के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती। तमाम मामलों में दोषी, कानूनी दांवपेचों का सहारा लेकर बच निकलते हैं। क्या आपको नहीं लगता कि कहीं न कहीं कोई बात तो है जिसका फायदा ऐसे लोग उठा लेते हैं ?

कुछ हद तक ये बात सही हो सकती है। कार्रवाई तो होती है। ऐसा नहीं है कि कार्रवाई नहीं होती। लेकिन हमारे पास लोगों की बहुत कमी है। ऐसे मामलों में हमारे साथ-साथ राज्य सरकारों की भूमिका बहुत अहम होती है। हम कोई भी कार्रवाई करें हमें राज्य सरकारों पर ही निर्भर रहना होगा। नया विभाग है तो थोड़ा समय लगता है। सबको ये समझना होगा कि इसके क्या परिणाम हो सकते हैं।

मिलावट के खिलाफ राज्यों की इतनी खास भूमिका है तो व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त बनाने  लिए कदम उठाने होंगे। इस बारे में आगे क्या कुछ खास किया जा रहा है ?

राज्यों में रेगुलेटरी वर्क के लिए उनकी अपनी व्यवस्था कमजोर है। हमारी कोशिश मिलावट को पकड़ने के लिए राज्यों में ज्यादा से ज्यादा लैब्स और मोबाइल लैब्स की व्यवस्था करने की है। हम चाहते हैं कि हर राज्य में कम से कम दो मोबाइल लैब जरूर होनी चाहिए। अगर किसी का पहला टेस्ट फेल हो जाता है तो मेरा सुझाव है कि वो अपने क्षेत्र के सरकारी लैब से दोबारा टेस्ट करवा ले। मेबाइल लैब का सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि इसे गांवों और दूरदराज के इलाकों तक ले जाया जा सकता है और इसका लाभ विशेष तौर पर गांव देहात के लोग उठा सकते हैं। हां ये प्रयास जरूर करना होगा कि लोग इसका फायदा उठाने में सक्षम बन सकें और इसके महत्व को समझ सकें। 

ग्रामीण क्षेत्रों में मिलावट की समस्या बहुत बड़ी है। वहां तो कोई नियम कायदा चलता नहीं है। लोगों की क्रय शक्ति भी कम होती है। उन्हें सस्ते में जो चीज मिल जाती है उससे काम चला लेते हैं। उन्हें तो मिलावट क्या है, उसके क्या नुकसान हैं, इसका पता ही नहीं होता। कैसे उन लोगों को मिलावट औरर उसके खतरों के बारे में समझाया जाए ?

इसीलिए हमारा फोकस ऐसी चीजों पर है जो रोजमर्रा खाने के इस्तेमाल में आनी वाली होती हैं। आटा, तेल, नमक, दूध। आप लोगों को पता होगा कि गांवों में आज भी खाने का तेल खुला बेचा जाता है और ज्यादातर गांव के लोग उसी तेल का इस्तेमाल खाना पकाने के लिए करते हैं। हम लोगों को इसके बारे में बता रहे हैं। हम चाहते हैं कि एक गाइडलाइन बने। गांव में ऐसे लोग हैं जो रोजाना अपनी जरूरत के हिसाब से राशन और खाने का सामान खरीदते हैं।वे लोग खुदरा खरीदारी करते हैं और ऐसे खुले सामानों के सबसे बड़े खरीदार होते हैं। आमतौर पर ये लोग गरीब होते हैं और अपनी जरूरत भर का सामान रोजाना खरीदते हैं। खुला तेल, आटा, नमक, चाय, दाल। ये ही लोग मिलावटखोरों के सबसे ज्यादा शिकार बनते हैं। हम तो स्कूली स्तर से इस विषय में जागरूकता चाहते हैं और इसे पाठ्यक्रम में शामिल कराना चाहते हैं। इसके लिए हम शिक्षा विभाग को चिठ्ठी लिख रहे हैं। 

एक बात और चर्चा में आती है, मिलावट की जांच के लिए संसाधनों की कमी की। देश भर में लैब्स की कमी है। अगर किसी में जांच हो भी गई तो महीनों रिपोर्ट आने में लगते हैं। अगर ऐसी व्यवस्था है तो कैसे मिलावट को रोक पाएंगे ?

ये बात सही है कि सरकारी स्तर पर लैब्स की कमी है। भारत जैसे इतने बड़े देश में संसाधन भी काफी चाहिए। देश में प्राइवेट लैब्स भी हैं और उनकी कोई कमी नहीं है। वहां भी टेस्ट करवाया जा सकता है। जहां तक रिपोर्ट में देरी का सवाल है तो आपको बता दूं कि कानूनन दो हफ्तों के भीतर ऐसी जांच रिपोर्ट देना अनिवार्य है। जैसा कि मैंने आपको पहले बताया है कि हम मिलावट की जांच के लिए राज्य सरकारो से आपसी तालमेल बढ़ा रहे हैं और संसाधनों को मजबूत करने के लिए उनकी सहायता कर रहे हैं। मिलावट की जांच के लिए हम खुद मोबाइल जांच वैन का बंदोबस्त करा रहे हैं। हमारी कोशिश है कि कम से कम दो मोबाइल जांच वैन हर राज्य में मौजूद हो। 

ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता में मिलावट को लेकर जागरूकता की कमी है। इसके पीछे बहुत से कारण हैं। लोगों के रहन-सहन से लेकर उनकी जीवनचर्या तक कहीं न कहीं मिलावट की वजह हैं। उनको ध्यान में रख कर क्या कदम उठाए जा रहे हैं ?

जहां तक जागरूकता का सवाल है तो लोग शहर और गांव दोनों ही जगह इस मामले में कमी का शिकार हैं। शहरों को ले लीजिए यहां दिल्ली जैसे शहर में 90 फीसदी लोगों में विटामिन डी कमी पाई जाती है। कैसे ?  हमारे देश में सूरज की रोशनी की तो कोई कमी नहीं। उसकी रोशनी ही इस कमी को पूरा कर देती है लेकिन फिर भी ये दिक्कत है। लोगों में जागरूकता की कमी है। हां मिलावट को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा काम करने की जरूरत है। हमारा ज्यादा फोकस असंगठित और ग्रामीण इलाकों में जागरूकता पर है। हमारे ऐसे प्रयासों में उपभोक्ता संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। हम इस बारे में एक कार्ययोजना तैयार कर रहे हैं। समस्या वहीं होती जहां लाचारी होती है परंतु हमारी कोशिश है कि कानून का हाथ सख्त बना रहे। 

आपने चर्चा की थी पैदावार यानी उत्पादन में मिलावट की। इसका क्या मतलब है और इससे कैसे बचा जा सकता है ?

पैदावार में मिलावट से हमारा मतलब उस उत्पादन से है जो किसान अपने खेत में पैदा कर रहा है। आजकल खेती के लिए तरह तरह की रासायनिक खादें और कीटनाशक इस्तेमाल में लाए जा रहे हैं। कई जगह लोग दूषित पानी से फसल की सिंचाई कर देते हैं। नतीजा क्या होता है फसल में ही मिलावट हो जाती है। उसमें कीटनाशक से लेकर रसायन तक की कम या अधिक मात्रा अनाज को खराब कर देती है। यही अनाज जब बाजार में आता है तो पहले से ही मिलावटी होता है। इससे बचने के लिए खेती के तरीके में सुधार की जरूरत है। फसल की शुद्ध पैदावार के लिए जरूरी है कि खेती की जमीन की मैपिंग हो ताकि ये पता लगाया जासके कि किस जगह के लिए कौन सी फसल उपयुकत है। तब पैदावार में मिलावट को काफी हद तक काबू किया जा सकेगा।

10 खास बातें

  • खाद्य पदार्थों के मानक तय करने का काम एफएसएसएआई का
  • 13000 खाद्य वस्तुओं के मानक तय किए गए
  • खुदरा बाजार का नियमन सबसे बड़ी चुनौती
  • मिलावट को रोकने में राज्य सरकारों से बेहतर तालमेल जरूरी
  • राज्य के संसाधनों में मजबूती के लिए सहायता
  • ग्रामीण इलाकों में खुली खाद्य सामग्री में मिलावट ज्यादा
  • अनाज उत्पादन में जमीन की मैपिंग जरूरी
  • खुले सामानों की बिक्री के नियमन की आवश्कता
  • मोबाइल वैन से गांवों में भी मिलावट की जांच
  • स्कूली शिक्षा में मिलावट पर पाठ्यक्रम की सिफारिश
Print Friendly, PDF & Email
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

- Advertisment -spot_img

Recent Comments