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‘स्वप्नदृष्टा’ की समग्र दृष्टि….नेहरू के साथ बीते पलों को साझा करता आलेख….

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आज बाल दिवस है। बच्चों के चाचा नेहरू का जन्मदिवस। पिछले कुछ वर्षों में जवाहर लाल नेहरू के व्यक्तित्व को लेकर तरह–तरह के सवाल उठाए गए। उनके व्यक्तित्व से लेकर दृष्टिकोण तक को परखने की कोशिश की गई वह भी उन लोगों के द्वारा जो नेहरू को पढ़ते-समझते और दिमागी तंगहाली से मुक्त होकर टिप्पणी करते तो शाय़द कहीं बेहतर होता।

बच्चों में भारत के भविष्य को टटोलते थे नेहरू। बाल दिवस का मौका नेहरू की सोच, उनके व्यक्तित्व और भविष्य को लेकर उनकी आशावादी दृष्टि को समझने का अवसर भी है। गणतंत्र भारत, इस मौके पर नेहरू जी से संबंधित एक लेख के प्रसंगों को प्रकाशित कर रहा है जो ‘समाजवाद के प्रहरी’ नामक पुस्तक में लेखक कैलाश चंद्र मिश्र ने अपने संस्मरणों में व्यक्त किया है।

लेखक, काशी हिंदू विश्व विद्यालय में 1954 में छात्र संसद के प्रधानमंत्री रहे थे और वे उत्तर भारत में अंग्रेजी हटाओ छात्र आंदोलन के शीर्ष नेतृत्व में शामिल रहे थे।

जवाहर लाल नेहरू के साथ लेखक कैलाश चंद्र मिश्र ( बीच में हाथ बांधे हुए)। साथ में प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल (नेहरू जी के पीछे)।

नेहरू की दृष्टि     

इतिहास में ऐसे कम लोग होते हैं जो पूरे युग पर प्रभाव डालें। जवाहरलाल नेहरू ऐसे ही युगपुरुष थे। उन्होंने अपने विचारों तथा अपनी सरल-सहज जीवन पद्धति, अपनी कार्यक्षमता और बौद्धिक प्रखरता से अपने युग को ही प्रभावित नहीं किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन भी किया। द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व के राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक वातावरण में जो विराट परिवर्तन उपस्थित हुआ था, उसकी समग्र चेतना को आत्मसात कर अहमद नगर जेल में जवाहर लाल नेहरू ने आचार्य नरेन्द्र देव और मौलाना अबुल कलाम आजाद के साथ इतिहास और संस्कृति का ज्ञान अर्जित किया जो उनकी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में दिखलाई पड़ता है। इसी कारण उनका ध्यान भारत के अतीत गौरव, जीवन दर्शन और सांस्कृतिक संपदा की ओर सतत बना रहता था। किंतु वैज्ञानिक युग की आधुनिकता को ग्रहण करने में भी उनको कोई संकोच नहीं था। उन्हें अपनी मातृभूमि पर गर्व था और वह इससे अथाह अनुराग रखते थे। तभी उन्होंने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में लिखा था- ‘हम किसी घटिया देश के नागरिक नहीं हैं। हमें अपने लोगों पर, अपनी संस्कृति पर, अपने रीतिरिवाजों पर तथा अपनी जन्मभूमि पर गर्व है। हमें यह गर्व इसलिए नहीं होना चाहिए कि हम इसके अतीत से चिपके रहना चाहते हैं और न ही अपनी बहुत सी कमजोरियों तथा असफलताओं को भूलना चाहिए या उससे छुटकारा पाने की लालसा को दबाना चाहिए। सभ्यता तथा प्रगति में दूसरों के साथ चलने के लिए हमें एक लंबा सफर तय करना है। हमें यह सब शीघ्रता से करना होगा क्योंकि हमारे पास समय कम हैं तथा विश्व तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत पहले से ही दूसरों की संस्कृति को आत्मसात करता रहा है। यह अब और भी आवश्यक है क्योंकि कल के विश्व में राष्ट्रीय संस्कृतियां मानव जाति की अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृति के साथ जुड़ जाएंगी।’

लोकतंत्र और राष्ट्र को समर्पित

जवाहर लाल नेहरू पर बाल गंगाधर तिलक का बड़ा प्रभाव पड़ा जिन्हें 1908 में 8 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गई थी। फेबियन सोसाइटी जो ब्रिटेन का एक विशेष प्रकार का समाजवादी ग्रुप था उसका भी व्यापक प्रभाव उनके किशोर मस्तिष्क पर पड़ा। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण उनमें मौलिक परिवर्तन आया। गांधी जी के बाद भारतीय लोकतंत्र को व्यवहार देने की दिशा में नेहरू ईमानदारी से लगे रहे। यही कारण था जो करोड़ों जनता के वे चहेते बने रहे। जो प्यार उन्हें भारतीय जन ने दिया वह ना तो इसके पहले किसी को मिला था और ना इसके बाद किसी को मिल सका। जनता कभी-कभी पागलपन की हद तक जाकर उन्हें देखने को उमड़ पड़ती थी। वे इसके लिए झल्लाते थे। कभी-कभी मंच से कूद पड़ते थे। कभी किसी को मार बैठते थे। जनता इन सारी बातों को बड़े प्यार के साथ लेती थी। जवाहरलाल हर मामले में आधुनिक भारत के निर्माता थे। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक…कौन सा ऐसा क्षेत्र है जिसमें उनके विशाल व्यक्तित्व की अमिट छाप ना पड़ी हो। स्वतंत्रता संग्राम में और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के विकास में जो भूमिका नेहरू जी ने निभाई वह अविस्मरणीय है।

अर्थतंत्र को छूट, लेकिन अंकुश जरूरी

भारत की आजादी के साथ एशिया और अफ्रीका के अनेक देश अधिनायकवाद के शिकार हुए। नेहरू जी चाहते तो उन्हें डिक्टेटर बनने से कौन रोक सकता था पर उन्होंने लोकतंत्र की जड़ें मजबूत कीं। जब किसी देश में एकाएक विकास हुआ है तो आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग ने उसकी बड़ी कीमत चुकाई है। पर नेहरू जी ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने इस वर्ग को संरक्षण दिया। वे जानते थे कि देश के उस समय के उद्योगपति इतनी पूंजी नहीं लगा सकते कि वे स्टील मिल स्थापित कर सकें, बड़ी-बड़ी मशीनें बनाने वाले कारखाने लगा सकें, आणविक रिएक्टर लगाने की सोच सकें, बड़े-बड़े बांध बना सकें। यदि भिलाई, राउरकेला आदि स्टील मिल तब नहीं लगती, यदि भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स का कारखाना नहीं होता, भाखड़ा जैसे बांध नहीं बने होते तो हम कहां होते? वे कहते थे कि अर्थतंत्र के शिखरों पर सरकार का नियंत्रण होना चाहिए ताकि वे जनहित में काम कर सकें।

दार्शनिक चिंतक और विचारक

जवाहर लाल राजनेता से भी बढ़कर एक दार्शनिक, चिंतक या विचारक थे। वे गलतियां कर सकते थे, करते थे लेकिन उनकी आधारशिला उनकी भावुकता थी। उनके अंदर इतिहास की गर्वोक्तियां और संस्कृति की गरिमा रोम-रोम में बस गई थी। जब भी वे भारत माता का उच्चारण अपने भाषणों में करते थे या भारत के इतिहास, भूगोल, साहित्य, संस्कृति की बातें करते थे तो वे राजनेता से अलग हटकर उपदेशक की शक्ल अख्तियार कर लेते थे। नेहरू का व्यक्तित्व इतना बड़ा ना होता यदि गांधी जी के समान अभिभावक ना मिला होता। दोनों का एक-दूसरे के साथ विचित्र संबंध था जिसकी सबसे अच्छी व्याख्या लुई फिशर ने ‘गांधी की कहानी’ नामक अपनी पुस्तक में इस प्रकार की है-’गांधी जी नेहरू को पुत्र की भांति प्यार करते थे और नेहरू, गांधी जी को पिता की भांति प्यार करते थे।’ अपने तथा गांधी जी के दृष्टिकोणों की गहरी भिन्नता को नेहरू ने कभी नहीं छुपाया। गांधी जी इस स्पष्टवादिता का स्वागत करते थे। दोनों का पारस्परिक स्नेह मतैक्य पर निर्भर नहीं था।

सुधारवादी व्यक्तित्व

जवाहरलाल जी सामाजिक स्तर पर सुधारवादी व्यक्ति थे। समाज की कुरीतियों के प्रति वे न केवल विचार अपितु व्यवहार में भी विरोध प्रदर्शन करते थे। पर्दा प्रथा के वे बड़े खिलाफ थे। देश में पर्दा प्रथा तोड़ने में उनका बड़ा हाथ था। सुधार पर व्याख्याबाजी में उन्हें विश्वास ना था, कुछ कर दिखाने में विश्वास था। उन्होंने अपने यहां पर्दा प्रथा तोड़ी और हवा चल गई। इलाहाबाद में स्वदेशी प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। फिर तो उसे देखने के लिए एक तरह से इलाहाबाद भर का पर्दा टूट गया और उत्तर प्रदेश के अनेक नगरों से आने वाली दर्शिकाएं भी उसमें शामिल हो गईं। नेहरू जी के आदर्श से स्त्री समाज को बड़ा बल मिला।

पं.जवाहर लाल नेहरू का बहुआयामी व्यक्तित्व था। वे दुर्लभ गुण संपन्न श्रेष्ठ पुरुष थे। उनके व्यक्तित्व के कई पहलू थे। पारिवारिक स्तर पर वे बेहद उदार और उदांत विचार वाले व्यक्ति थे। उस समय जब लड़कियों की शिक्षा विशेषकर उच्च शिक्षा का प्रचलन नहीं था तब उन्होंने इस भावना को प्रोत्साहित किया। यही भावना उन्होंने अपनी दोनों बहनों की शिक्षा में भी दर्शाई और उन लोगों को उच्च स्तर की शिक्षा उपलब्ध कराई। इंदिरा जी को लिखे पत्रों में भी शिक्षा के महत्व को देखा जा सकता है।

1911 में जब गोखले का ‘अनिवार्य शिक्षा बिल’ आया, उसे लेकर बड़ा बवेला मचा। पुराणपंथियों का तर्क था कि जब सभी पढ़-लिख लेंगे तो सेवकाई कौन करेगा। जवाहरलाल जी स्वभावत: बिल के पूर्ण समर्थक थे। नेहरू जी तो कहते थे कि शिक्षित होने पर तो लोग कहीं अच्छी तरह काम करेंगे। मैं इतना जानता हूं कि अगर मैं खिदमतगारी करूं तो मेरे मुकाबले का कोई खिदमतगार नहीं होगा।

वैज्ञानिक और आधुनिक दृष्टि             

देश के आर्थिक उत्थान के लिए जो पंचवर्षीय योजनाएं लागू की गईं उसमें नेहरू जी का महत्वपूर्ण हाथ था। नेहरू आदर्शवादी राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने विज्ञान और टेक्नोलॉजी की शिक्षा पर विशेष बल दिया। वे रूढ़ियों और रूढ़िगत परंपराओं के विरोधी थे। हिंदू कोड बिल के द्वारा उन्होंने हिंदुओं की बहुत सी धार्मिक और सामाजिक असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया। नेहरू के जीवनकाल में दो ऐसी समस्याएं आईं जिन्होंने उन्हें विचलित कर दिया-एक थी कश्मीर समस्या और दूसरा चीन का आक्रमण। इन दोनों ही समस्याओं का सामना नेहरू जी ने बड़े धैर्य, संयम और दृढ़ता के साथ किया।

गुरूर से कोसों दूर

1952 की घटना है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन का उद्घाटन था। मुख्य अतिथि पं.जवाहर लाल नेहरू थे। अध्यक्ष आचार्य नरेन्द्र देव थे। आचार्य जी के साथ नेहरू जी समारोह में भाग लेने पहुंचे। मंच पर मैं पंडित जी को ले गया। उनको मुख्य अतिथि के आसन तक पहुंचाने के बाद भी वह कुर्सी पर तब तक नहीं बैठे जब तक आचार्य जी ने अपना आसन नहीं ग्रहण कर लिया। उम्र में आचार्य जी उनसे केवल पन्द्रह दिन बड़े थे।

1954 में नई दिल्ली के प्रधानमंत्री कार्यालय में मेरी उनसे ऐतिहासिक मुलाकात हुई थी। अभी तक मुझे वह गंभीर चेहरा याद है जो किसी युवक को अपनी उपदेशात्मक शैली से चमत्कृत कर सकता था। भारतीय विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में मैं यूरोप जा रहा था। मेरे साथ काशी हिंदू विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल भी थे। पंडित जी ने एक शिक्षक की तरह भारत के इतिहास, संस्कृति, अंतरराष्ट्रीय संपर्क और विश्व शांति की स्थापना में भारत के योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणी की। जब उठकर जाने लगे तो मुझसे बोले कि वहां की आश्चर्यजनक प्रगति को देखकर भारत से उसकी तुलना मत करने लगना। यह मत कहना कि हमारे यहां तो यह योजना कार्यान्वित ही नहीं हुई। यह भी मत भूलना कि उनके यहां कई पंचवर्षीय योजनाएं पूरी हो चुकी हैं इसीलिए वे तरक्की की दौड़ में दुनिया में सबसे आगे हैं। पंडित जी ने मुझसे कहा कि तुम लोग आपस में हिंदी में बात करना और सभी औपचारिक अवसरों पर वहां हिंदी में ही व्याख्यान देना। हिंदी के प्रति समर्पित भाव देखकर और भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी भावना देखर मैंने पहली बार यह अनुभव किया कि आज देश उन्हें किस बात के लिए याद करता है, गौरव देता है और आदर करता है।

24 अक्टूबर 1955 को मैं कभी नहीं भूल सकता हूं। उस दिन संयुक्त राष्ट्र छात्र संघ के तत्वावधान में संयुक्त राष्ट्र दिवस का आयोजन सत्यदेव शर्मा अध्यक्ष छात्र संघ ने चेम्सफोर्ड क्लब दिल्ली में कर रखा था। कुमारी पूरबी डे ने अपने स्वागत भाषण में जब यह कहा कि पंडित जी आप रोज कारों के काफिले के साथ मेरे घर के सामने से निकलते हैं। एक ही रंग की कारों से मैं यह भी नहीं ढूंढ पाती कि आप किस कार में बैठे हैं। आज मैं कितनी खुशकिस्मत हूं कि आपको केवल देख ही नहीं छू भी सकती हूं। पंडित जी का भावुक हृदय इतना द्रवित हुआ कि उन्होंने अपनी कुर्सी से उठकर उसे गले लगा लिया।

1956 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय स्वरूप की रक्षा के लिए मुदालियर कमीशन ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में जन्मे डॉक्टर हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ.राजबली पांडेय,  राम व्यास ज्योतिषी, डॉ.गोपाल त्रिपाठी, डॉ.राम यश राय आदि विद्वानों को विश्वविद्यालय से निकालने की संस्तुति की। जब नेहरू जी को पता चला कि यह अंग्रेजी परस्त लोगों का षड़यंत्र था कि भोजपुरी क्षेत्र के लोगों से विश्वविद्यालय को मुक्त किया जाए तो पंडित जी को बड़ा दुख पहुंचा और उन्होंने सभी विद्वानों को सम्मानजनक स्थानों पर नियुक्ति की इच्छा व्यक्त की। डॉ.हजारी प्रसाद द्विवेदी चंडीगढ़ के प्रतिकुलपति, डॉ.राजबली पांडेय को जबलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति, डॉ.गोपाल त्रिपाठी को लखनऊ विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। दिल्ली में हम लोगों को आश्वासन दिया कि उत्तर प्रदेश के शिक्षकों के साथ न्याय होगा। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्ययन-अध्यापन के वातावरण के लिए छात्रों को नेतृत्व प्रदान करने की नसीहत देते हुए डॉ.के.एल श्रीमाली को विश्वविद्यालय कोर्ट की बैठक में भाग लेने के लिए बनारस भेजा गया। पंडित नेहरू ने इस प्रकार महामना मगन मोहन मालवीय के इस विद्या मंदिर को अंग्रेजीपरस्त लोगों के षड़यंत्र से निकाला।

बच्चों से अगाध प्रेम

जवाहर लाल जी बच्चों से अगाध प्रेम करते थे। वे कहा करते थे कि बच्चे देश का भविष्य़ हैं। उन्हें सही रास्ता दिखाना ही सुरक्षित भविष्य की गारंटी है। वे कहा करते थे बच्चे निर्मल विचारों को होते हैं। वे सहजता और सरलता से बहुत कुछ कह जाते हैं जो बड़े-बड़े पंडितों के लिए भी बहुत मुश्किल होता है। उनकी दृष्टि वैज्ञानिक और प्रगतिशील होगी तभी देश विकास करेगा।

अटल जी की श्रद्धांजलि

नेहरू जी के निधन पर राज्यसभा में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि,  ‘एक सपना था जो अधूरा रह गया, एक गीत था जो गूंगा हो गया, एक लौ थी जो अनंत में विलीन हो गई। सपना था- एक ऐसे संसार का जो भय और भूख से रहित होगा। गीत था एक ऐसे महाकाव्य का जिसमें गीता की गूंज और गुलाब की गन्ध थी। लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रात भर जलता रहा और हमें रास्ता दिखाकर प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गया।‘
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

 

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