नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र):
अरब सागर में छोटा सा टापू लक्षद्वीप। आबादी हजारों में, लाख भी नहीं। अधिकतर जनता धर्म से मुसलमान। मेनलैंड से सबसे करीबी राज्य केरल। अपराध ना के बराबर। दशकों से शराबबंदी। यानी कुल मिला कर कहा जाए तो भारत के सबसे शांतिप्रिय इलाकों में से एक। लेकिन इन दिनों लक्षद्वीप में सब कुछ ठीकठाक नहीं है। गुजरात से आने वाले बीजेपी के नेता प्रफुल्ल पटेल को जब से लक्षद्वीप का प्रशासक नियुक्ति किया गया है तब से वहां बवाल मचा हुआ है।
क्या है वजह ?
लक्षद्वीप एक केंद्र शासित प्रदेश है। आमतौर पर यहां आईएएस या आईपीएस अफसर को प्रशासक के रूप में तैनात किया जाता था। इस बार गुजरात से आने वाले बीजेपी के नेता प्रफुल्ल पटेल को लक्षद्वीप का प्रशासक नियुक्त किया गया। पटेल ने वहां जाते ही कई ऐसे फैसले किए जिससे वहां सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से वबाल उठ खड़ा हुआ।
शराबबंदी खत्म
प्रफुल्ल पटेल ने राज्य में दशकों से जारी शराबबंदी को खत्म कर दिया। ऐसा क्यों किया गया ये समझ से परे है। लक्षद्वीप की अधिकांश आबादी मुसलमान हैं और वे शराब से परहेज करते हैं। एक तरफ जहां बिहार, गुजरात जैसे राज्यों में शराबबंदी लागू की गई है वहां लक्षद्वीप जैसे राज्य में जहां शराबबंदी लंबे समय से चली आ रही है वहां शराबबंदी को खत्म करना निश्चित रूप से स्थानीय लोगों में आक्रोश की वजह तो बनेगा।
बीफ पर बैन
दूसरा काम, प्रफुल्ल पटेल ने ये किया कि वहां बीफ खाने, बेचने या उसका कारोबार करने पर रोक लगा दी। लक्षद्वीप के अधिकतर लोग मुसलमान हैं और केरल के करीब होने कारण खानपान और सांस्कृतिक पहचान के नजरिए से लक्षद्वीप पर केरल का गहरा असर है। वहां के भोजन में बीफ एक अहम हिस्सा है। बहुतों की रोजीरोटी भी बीफ के कारोबार से चलती है। जाहिर है, ऐसे आदेश से बहुतों के घर के चूल्हे-चौके पर असर पड़ा होगा। लोगों ने इसका जमकर विरोध किया है।
गुंडा एक्ट
तीसरा काम, जो प्रफुल्ल पटेल ने किया वो था राज्य में गुंडा एक्ट टाइप का कानून लागू करना। जिस राज्य में सबसे ज्यादा शांति हो वहां गुंडा जैसे प्रावधान की क्या जरूरत है इससे समझना मुश्किल है। इसके लागू होने से साल- छह महीने किसी को भी बिना वजह जेल में डाला जा सकता है। ऐसा लक्षद्वीप में क्या हो रहा था कि नए प्रशासक महोदय को इसकी जरूरत महसूस हो गई। वजह साफ है, उनके फैसलों का विरोध करने वालों को जेल में डाल दो। ऐसे कानूनों का भय दिखाओ कि लोग डर के मारे उनके किसी भी ऊल-जलूल फैसले का विरोध ना करें।
दो बच्चे से ज्यादा हैं तो पंचायत चुनाव लड़ने पर रोक
प्रफुल्ल पटेल ने एक और काम किया, अगर किसी के दो बच्चो से ज्यादा संतान हैं तो वो पंचायत चुनाव में नहीं खड़ा हो सकता। प्रशासक के इस फैसले ने इस केंद्र प्रशासित क्षेत्र में राजनीतिक माहौल को गरमा दिया। विरोध में स्वर मुखर होने लगे।
कामधंधे पर चोट
लक्षद्वीप के लोगों का मुख्य व्यवसाय मछलीपालन है। उनके लिए मुख्य बाजार निकटवर्ती राज्य़ केरल है। प्रफुल्ल पटेल ने ऐसे नियम बना दिए हैं कि लक्षद्वीप के लोगों के लिए अब कारोबार का बाजार केरल ना होकर कर्नाटक हो गया है। केरल के वे व्यापारी जो लक्षद्वीप से कारोबार करते थे उन्हें अब ये काम कर्नाटक के जरिए करना पड़ रहा है। इसके चलते लक्षद्वीप के कारोबारियों को बहुत ज्यादा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है।
प्राधिकरणों को अधिकार
प्रसासक बनने के बाद प्रफुल्ल पटेल ने लक्षद्वीप के विकास के नाम पर प्राधिकरणों को ऐसे अधिकार दे दिए हैं जिससे स्थानीय स्तर पर लोगों की संपत्ति छिनने का खतरा पैदा हो गया है। प्राधिकरण को अब ऐसी शक्तियां मिल गई हैं कि वो किसी भी स्थानीय संपत्ति को सांस्कृतिक महत्व और विकास के लिए जरूरी बताते हुए अधिग्रहीत कर सकता है।
क्या कहना है प्रफुल्ल पटेल का
लक्षद्पीव के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल अपने इन कामों को सही ठहराते हैं। उनका कहना है लक्षद्वीप में सब शांति है और विरोध करने वाले राजनीतिक रूप से प्रेरित है। उन्होंने कहा कि मैं लक्षद्वीप के विकास की योजना लेकर आया हूं और उसी हिसाब से काम कर रहा हूं। मेरे कई ऐसे कामों के बारे में नहीं बताया जा रहा जिन्हें प्रचारित किया जाना चाहिए। जैसे कि पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया है। राजधानी कवरत्ती को देश के स्मार्ट सिटी वाले शहरों की सूची में शामिल किया गया है तो उसके हिसाब से यहां काम भी होने हैं। इसीलिए कुछ ऐसे प्राधिकरणों को कुछ ऐसी शक्तियां दी गई हैं कि वे विकास की दृष्टि से जरूरी कदम उठा सकें। जहां तक गुंडा एक्ट टाइप कानून की बात है तो बता दूं कि पिछले दिनों लक्षद्वीप के पास ही ड्रग्स और हथियारों के एक बड़ी खेप पकड़ी गई थी। इन घटनाओँ को देखते हुए ऐसे सख्त कानून की जरूरत थी।
बीजेपी के प्रशासक और विवाद
केंद्र प्रशासित क्षेत्रों में हाल फिलहाल की ये दूसरी घटना है जिसे लेकर काफी विवाद हुआ है। इसके पहले पॉंडिचेरी में लेफ्टिनेंट गवर्नर बनाई गई बीजेपी नेता किरण बेदी ने भी वहां कांग्रेस की निर्वाचित सरकार के कामकाज में काफी रोड़ा लगाया था। बाद में उन्हें वापस बुला लिया गया था। प्रफुल्ल पटेल भी कुछ-कुछ किरण बेदी के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। उनका हश्र किरण बेदी वाला होगा या नहीं ये देखने वाली बात होगी।
फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया